क्या वास्तु-पूजा वैदिक है?
प्रियांशु सेठ
पौराणिक समाज में
प्रायः हम यह
देखते हैं कि
'वास्तु पूजा' घर-मकान,
इमारतें, फैक्टरी,
दुकान इत्यदि
के सम्बन्ध
में पूजा कराए
जाने में प्रचलित है। उनकी यह
मान्यता है कि
वास्तु शास्त्र
से घर, दुकान
आदि पर लगे
दोष या ऊपरी
शक्ति (जादू-टोना-टोटका)
या दुकान पर
आने वाला कोई
खतरा खत्म होकर
टल जाता है
इत्यादि। सर्वप्रथम
तो हम यह
बता दें कि
कोई जादू-टोना-टोटका
जैसा शक्ति नहीं
होता, यह पोपजनों ने लोगों को
मूर्ख बनाकर अपना
पेट भरने का
धंधा बना रखा
है। यदि वास्तव में ऐसा कुछ
है तो पोपजी
मेरे कुछ प्रश्नों के उत्तर दें-
१. आप अपने
अलमारी में कीमती
सामान रखकर घर
और अलमारी
का ताला खुला
छोड़ दीजिये।
अब कुछ देर
के लिए घर
से कहीं दूर
घूमने चले जाएं,
अब आकर देखें
कि अलमारी
में कीमती सामान
गायब हुए हैं
या नहीं?
यदि गायब हुए
तो क्यों?
पोपजी का वास्तु पूजा तो खतरे
को टालता है
न!
२. जब किसी
नए मन्दिर
का निर्माण
होता है तो
उसमें वास्तु
नहीं देखा जाता।
तो क्या उसमें
दोष नहीं होता
है? यदि पोपजी
यह कहें कि
वहां तो भगवान
का वास है
तो क्या ईश्वर
कण-कण में
विद्यमान नहीं है?
है न! तो
फिर जमीन, मकान,
दुकान आदि में
दोष कैसे?
ऐसे तो पोपजी
ईश्वर को ही
दोषपूर्ण बता रहे
हैं।
३. ऊपरी शक्ति
(जादू-टोने-टोटके)
को लेकर लोगों
का कहना है
कि आपके दुकान
या घर पर
कीमती सामान,
रुपये-पैसे इत्यादि को नजर न
लगने पाये इसके
लिए मुख्य द्वार
पर निम्बू-मिर्च
लटकाये तो नजर
नहीं लगेगा।
ऐसी बचकानी
हरकतों से ही
आज समाज की
दुर्गति है। लोग
अपने बुद्धि
का प्रयोग
नहीं करते बस!
सुनी-सुनाई बातों
पर आंख-बंद
करके भरोसा कर
लेते हैं। यदि
आपसे कोई कह
दे कि चूहे
को लड्डू खिलाओ
मोक्ष मिल जाएगा
तो आप यही
करने लगते हैं,
अस्तु!
यह बताइये
कि नजर का
क्या कार्य है,
देखना या लगना?
यदि लगता है
तो पोपजी वास्तु पूजा के साथ-साथ
वास्तु दोष पर
भी लगा कर
दिखाओ? हम भी
तो वास्तविकता
देखें।
वास्तुपूजा क्या है?
सर्वप्रथम हम पूजा
के सही अर्थ
को जान लेते
हैं:- "पूजनं
नाम सत्कार:"
अर्थात् यथोचित
व्यवहार करना, पूजा
कहलाता है।
भूखा बालक जब
भूख के कारण
भूख-भूख चिल्लाता है तो मां
कहती हैं कि
दो मिनट रुक,
तेरी पेट-पूजा
करती हूँ।
अब आप बताइये कि क्या मां
उसके पेट को
अगरबत्ती दिखाएंगी,
पेट की आरती
करेंगी? नहीं न!
भोजन खिलाएंगी
न. अर्थात्
यथोचित व्यवहार
करना या सेवा
करना पूजा कहलाता है।
वास्तुपूजा:-
वस्तु से सम्बंधित पूजा, पूजा अर्थात् यथायोग्य उपयोग लेना,
वास्तु के अंतर्गत इमारतें आदि बनाने
की कला= आर्किटेक्चर (architecture) वस्तुओं को व्यवस्थित रखने, सुविधानुसार,
सही प्रकार
से प्रयोग
करने आदि का
विज्ञान आता है।
पाठकगण! ध्यानपूर्वक
पढ़ेंगे-
"सुविधानुसार" लिखा है...।
वस्तुओं को व्यवस्थित रखने का अर्थ
"दिशाओं के बारे
में आग्रह करना
नहीं अपितु अपनी
सुविधा देखना चाहिए।
अब सुविधा
किस प्रकार
की होने चाहिए
कुछ उदाहरण
देता हूँ:-
१. घर में
यज्ञशाला अवश्य होना
चाहिए क्योंकि
यज्ञ करने से
वातावरण शुद्ध होता
है। वेदमन्त्रों
का नित्य रूप
से पाठ हो
और उसकी ध्वनि
घर के प्रत्येक स्थान पर गुंजायमान हो। इससे दरिद्रता और अज्ञानता
का नाश होगा
और ज्ञान की
वृद्धि होगी जिससे
मनुष्य का कल्याण सम्भव है।
२. घर बन्द-बन्द
(पैक) न होकर
खुला-खुला होना
चाहिए जिससे स्वच्छ वायु घर में
निरन्तर आता रहे
और यह घर
विस्तृत भूमि पर
बनाया जाए। जहां
सूर्य का प्रकाश आना चाहिए जिससे
अच्छे स्वास्थ्य
की प्राप्ति
भी हो।
३. अतिथि के
ठहरने के लिए
पर्याप्त स्थान और
उचित प्रबंध
भी होना चाहिए,
सभी प्रेमपूर्वक
होकर रहें। घर
के बुजुर्ग
सदस्यों का अपमान
न करें क्योंकि यह मत भूलियेगा "बूढ़ा पेड़ फल
दे या न
दे, छाया अवश्य
देता है।"
घर में गाय
तो विशेष रूप
से होना चाहिए।
४. शौचालय
घर के पीछे
वाले भाग में
हो। यदि आगे
ही रहेगा तो
कीटाणु फैलेंगे
और परिवार
को रोग से
ग्रस्त करेंगे।
५. घर में
सुगन्धित, रोगनाशक,
पुष्टिकारक पौधे या
वृक्ष होने चाहिए;
जैसे- नीम, तुलसी,
गिलोय आदि।
वेद में इसके
सम्बन्ध में क्या
आज्ञा है?
वेद में घर
बनाने के सम्बन्ध में यह उपदेश
है:-
भूताय त्वा नारातये स्वरभिविख्येषं दृँहन्तां
दुर्या: पृथिव्यामुर्वन्तरिक्षमन्वेमि।
पृथिव्यास्त्वा नाभौ सादयाम्यदित्याऽउपस्थेऽग्ने हव्यँ रक्ष।।
-यजु० १/११
इस मन्त्र
में ईश्वर ने
मनुष्यों को आज्ञा
दी है कि
"हे मनुष्य
लोगों! मैं तुम्हारी रक्षा इसलिए करता
हूँ कि तुम
लोग पृथिवी
पर सब प्राणियों को सुख पहुंचाओ तथा तुम को
योग्य है कि
वेदविद्या, धर्म के
अनुष्ठान और अपने
पुरुषार्थ द्वारा
विविध प्रकार
के सुख सदा
बढ़ाने चाहिए।
तुम सब ऋतुओं
में सुख देने
के योग्य,
बहुत अवकाशयुक्त,
सुन्दर घर बनाकर,
सर्वदा सुख सेवन
करो और मेरी
दृष्टि में जितने
पदार्थ हैं, उनसे
अच्छे-अच्छे गुणों
को खोजकर अथवा
अनेक विद्याओं
को प्रकट करते
हुए फिर उक्त
गुणों का संसार
में अच्छे प्रकार प्रचार करते रहो
कि जिससे सब
प्राणियों को उत्तम
सुख बढ़ता रहे
तथा तुम को
चाहिए कि मुझको
सब जगह व्याप्त, सब का साक्षी, सब का मित्र,
सब सुखों को
बढ़ानेहारा, उपासना
के योग्य और
सर्वशक्तिमान् जानकर सब
का उपकार,
विविध विद्या
की वृद्धि,
धर्म में प्रवृत्ति, अधर्म में निवृत्ति, क्रियाकुशलता की सिद्धि और यज्ञक्रिया
के अनुष्ठान
आदि करने में
सदा प्रवृत्त
रहो।
स्मृतियों में भी
लिखा है:-
यस्यैकाऽपि गृहे नास्ति धेनुर्वत्सानुचारिणी।
मङ्गलानि कुतस्तस्य
कुतस्तस्य तमः क्षयः।।
यन्न वेदध्वनिश्रान्तं
न च गोभिरलंकृतम्।
यन्न बालैः परिवृत्तं श्मशानमिव तद्गृहम्।।
-अत्रिस्मृति २२०,३१३
भावार्थ:- जिस घर
में बछड़े से
युक्त एक भी
गाय न हो
उस घर में
मङ्गल कैसे हो
सकता है और
उस घर के
तामस भावों का
क्षय भी कैसे
हो सकता है?
जिस घर में
वेद की ध्वनि
न होती हो,
जो घर गायों
से सुशोभित
न हो और
जिस घर में
छोटे-छोटे बच्चे
न हों वह
घर, घर नहीं
अपितु श्मशान
ही है।
उपरोक्त सभी बातों
से स्पष्ट
है कि यह
सुविधा, हमारे अनुकूल है, जिसका संकेत
है सुविधानुसार
वस्तुओं को व्यवस्थित रखना, अतः वास्तुपूजा वैदिक हो सकती
है।
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