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Showing posts from January, 2019

फलित ज्योतिष

फलित ज्योतिष की अमान्य मान्यताओं से मानव जगत् से सबसे बड़ा भ्रामिक वैचारिक शोषण लेखक- पण्डित उम्मेद सिंह विशारद, वैदिक प्रचारक उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे महान् समाजिक सुधारक आर्ष और अनार्ष मान्यताओं का रहस्य बताने वाले युगपुरुष महर्षि दयानन्द सरस्वती जी अपने अमरग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के द्वितीय समुल्लास के प्रश्नोत्तर में लिखते हैं। प्रश्न- तो क्या ज्योतिष शास्त्र झूठा है? उत्तर- नहीं, जो उसमें अंक, बीज, रेखागणित विद्या है, वह सब सच्ची, जो फल की लीला है, वह सब झूठी है। फलित ज्योतिष के द्वारा अवैदिक व सृष्टिक्रम विज्ञान के अमान्य अनार्ष मान्यताओं को चतुर लोगों द्वारा भारत की जनता का वैचारिक शोषण करके अपना मनोरथ तो पूर्ण किया ही है, अपितु भारत वर्ष को गुलामी के दलदल में धकेलने का भी कार्य किया है। बड़े अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि यह पाखण्ड इस वैज्ञानिक युग में भी दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। स्वार्थी और चतुर किन्तु ज्ञान विज्ञान से शून्य लोग भोली-भाली जनता को फलित ज्योतिष की आड़ में कई प्रकार से लूट रहे हैं। इस माह का लेख फलित ज्योतिष पर लिखने का मन बना इसलिए प्रस्तुत लेख में क्ल

मेरे भाई 'बिस्मिल'

मेरे भाई 'बिस्मिल' श्रीमती शास्त्री देवी (अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की बहिन) मेरा जन्म सन् १९०२ में हुआ था। भाई रामप्रसाद बिस्मिल के चार साल बाद मैं पैदा हुई थी। भाई जी मुझ पर बहुत स्नेह रखते थे। मेरे पिता के खानदान में लड़कियों को होते ही मार डालते थे। मेरे मारने के लिये बाबा और दादी ने मेरी माताजी को कहा, मगर माताजी ने नहीं मारा। भाई बहुत रोते थे कि बिटिया को मत मारो। मैं तीन महीने की हो गई थी, तब दादी ने माता जी से फिर ताना मार कर कहा कि क्या लड़का है, जो इसकी इतनी हिफाजत करती है। माताजी ने बाबा के यहां से अफीम मंगाकर मुझे पिला दी। पड़ोस में थानेदार का मकान था। उनकी पत्नी हमारे घर आती थीं। उन्होंने मेरी खराब हालत देखी और कहा कि इसे क्या दे दिया? मैं दरोगाजी से कहूंगी। उन्होंने दरोगाजी से कह भी दिया। दरोगाजी ने दादी को बुलाकर कहा कि मैं सबको गिरफ्तार करा दूंगा। तुम लोगों ने कन्या की हत्या क्यों की? तब बहुत से इलाज किए। तीसरे दिन मुझे होश आया। फिर मां का दूध नहीं पिलाने दिया। कभी-कभी गाय का दूध छिपकर माताजी पिला देती थीं। तीन साल तक अफीम के नशे में रखा। मुझे बैठना तक नह

निराकार ब्रह्म की उपासना कैसे करें?

निराकार ब्रह्म की उपासना कैसे करें? लेखक- स्वामी वेदानन्द सरस्वती इस शंका का समाधान हमें वेदों में ही मिलता है। इसको पढ़िये और मनन कीजिये। ओ३म् तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रत:। तेन देवा अजयन्त साध्या ऋषयश्च ये।। -यजु० ३१/९ अर्थात्- (तम्) उस (यज्ञम्) पूजनीय (पुरुषम्) परमेश्वर को जो (अग्रत: जातम्) सृष्टि के पूर्व से ही विराजमान है तथा (ये) जो (देवा:) ज्ञानी (साध्या:) साधक (च) और (ऋषयः) ऋषिजन थे (तेन) उन्होंने (बर्हिषि) मानव ज्ञानयज्ञ में (प्रौक्षन्) सींचकर अर्थात् धारण करके (अजयन्त) उसकी पूजा की। भावार्थ- ज्ञानी, साधक और ऋषिगण सभी उस परमात्मा का अपने अन्तर-हृदय में ध्यान करते हैं। ज्ञान स्वरूप उस परमात्मा की आज्ञानुसार अपने आचरण को पवित्र बनाते हैं। उस परमात्मा की आज्ञा का पालन करना ही उसकी पूजा है। वह परमात्मा ज्ञानस्वरूप है। मानव मात्र के कल्याण के लिए वह अपने ज्ञान का वेदों के रूप में श्रद्धालु भक्तों के हृदय में प्रकाश करता है। तस्मात् यज्ञात्सर्वहुत ऋच: सामानि जज्ञिरे। छन्दांसि जज्ञिरे तस्मात् यजुस्तस्मादजायत।। -यजु० ३१/७ अर्थात्- उस (सर्वहुत: यज्ञ