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Showing posts from May, 2021

ईश्वर का स्वरूप

ईश्वर का स्वरूप [ईश्वर के स्वरूप को लेखनीबद्ध करना सागर से जल को खाली करने के तुल्य है। मनुष्य ईश्वर की अनुभूति तो कर सकता है लेकिन उसके समस्त गुणों को लेखनीबद्ध करना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। ईश्वर अनन्त गुणोंवाला है। हम लेखनी के माध्यम से उसके स्वरूप के कुछ भाग का ही वर्णन कर सकते हैं। ईश्वर के स्वरूप को परिभाषित करते हुए आर्यसमाज के अद्वितीय विद्वान् 'शास्त्रार्थ महारथी श्री पण्डित शान्तिप्रकाश जी' ने एक बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख लिखा था। यह लेख 'आर्योदय' के श्रावणी माह, विक्रम संवत् २०२१ के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस लेख की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। -प्रियांशु सेठ] (१) ईश्वरीय सत्ता सर्वमान्य है। नास्तिक भी उसके संचालित नियमों का उल्लंघन नहीं कर पाते। ईश्वर नियामक होने से यम कहलाता है। यम का दूत मृत्यु है- मृत्युर्यमस्यासी द् दूत: प्रचेत:। चेताने वाला मृत्यु, यम नाम के नियामक परमेश्वर का दूत है। जो सर्वत्र मनुष्य और चौपाए पर छाया हुआ है। मृत्युरी द्वि पदां चतुष्पदाम्। मृत्यु दो पाऊं और चार पाऊं वाले सभी

प्रतिवादी-भयंकर व्याख्यान-वाचस्पति श्री पं० गणपति शर्मा - एक संस्मरण

प्रतिवादी-भयंकर व्याख्यान-वाचस्पति श्री पं० गणपति शर्मा - एक संस्मरण लेखक- स्व० श्री पं० नरदेव जी शास्त्री वेदतीर्थ [स्व० श्री पण्डित गणपति शर्मा आर्यजगत् में अवतीर्ण शास्त्रार्थ कला के अतुल्य महारथी और व्याख्यान-वाचस्पति जाने जाते हैं। शास्त्रार्थ में आपके शास्त्रीय प्रणिनाद से विपक्षी घुटने टेक देते थे। आपने वैदिक धर्म के ध्वज की गरिमा को अपनी प्रौढ़ विद्वत्ता से जनमानस के हृदय में प्रतिष्ठित कर दिया था। दुबले-पतले होने के बावजूद ओजस्विनी भाषा में लगभग ५ घण्टे धाराप्रवाह व्याख्यान देना आपकी अद्भुत कला थी। आपका जन्म राजस्थान के चूरू नगर में सं० १९३० वि० में पण्डित भानीरामजी वैद्य नामक ब्राह्मण के घर हुआ था। २२ वर्ष की अल्पायु में ही आप काव्य और व्याकरण दर्शन साहित्य आदि विविध विषयों के तलस्पर्शी प्रगल्भ विद्वान् बन गये। महर्षि दयानन्द के समकालीन वैदिक धर्म के प्रचारक रामगढ़ शेखावटी निवासी ब्र० पं० कालूराम जी योगी ने आपको वैदिक धर्म में दीक्षित किया था। कतिपय वर्षों तक आपने काशी तथा कानपुर में रहकर अध्ययन किया था। आपकी विद्वता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि तार्किकशिरोम

वैदिक काल में तोप व बन्दूक

वैदिक काल में तोप व बन्दूक लेखक- वैदिक गवेषक आचार्य शिवपूजनसिंहजी कुशवाहा 'पथिक', विद्यावाचस्पति, साहित्यालंकार, सिद्धान्तवाचस्पति प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ वैदिक काल में आर्यों की सभ्यता अत्यन्त उन्नति के शिखर पर थी। वेदों में सम्पूर्ण विज्ञानों का मूल प्राप्त होता है। वैदिक काल में 'तोप' व 'बन्दूक' का प्रचार था कि नहीं? देखिये इस विषय में महर्षि दयानन्द जी महाराज स्पष्ट रूप में लिखते हैं कि- प्रश्न- जो आग्नेयास्त्र आदि विद्याएं लिखी हैं वे सत्य हैं वा नहीं? और तोप तथा बन्दूक तो उस समय में थी या नहीं? उत्तर- यह बात सही है, ये शस्त्र भी थे क्योंकि पदार्थ विद्या से इन सब बातों का सम्भव है। पुनः- 'तोप' और 'बन्दूक' के नाम अन्य देशभाषा के हैं। संस्कृत और आर्यावर्त्तीय भाषा के नहीं, किन्तु जिसको विदेशीजन तोप कहते हैं संस्कृत और भाषा में उसका नाम 'शतघ्नी' और जिसको बन्दूक कहते हैं उसको संस्कृत और आर्यभाषा में 'भुशुण्डी' कहते हैं। इसकी पुष्टि स्वयं महर्षि दयानन्द जी महाराज वेद मन्त्र के द्वारा स्वयं इस प्रकार करते हैं। यथा- स्थ

क्या सांख्यकार कपिल मुनि अनीश्वरवादी थे?

क्या सांख्यकार कपिल मुनि अनीश्वरवादी थे? लेखक- स्वामी धर्मानन्द प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ माननीय डॉ० अम्बेदकरजी से गत २७ फर्वरी को मेरी जब उनकी कोठी पर बातचीत हुई तो उन्होंने यह भी कहा कि सांख्यदर्शन में ईश्वरवाद का खण्डन किया गया है। यही बात अन्य भी अनेक लेखकों ने लिखी है किन्तु वस्तुतः यह अशुद्ध है। सांख्य दर्शन में ईश्वर के सृष्टि के उपादान कारणत्व का निम्न सूत्रों द्वारा खण्डन किया गया है उसका यह अर्थ समझ लेना कि यह ईश्वरवाद मात्र का खण्डन है, अशुद्ध है। उदाहरणार्थ निम्न सूत्रों को देखिए- तद्योगेऽपि न नित्य मुक्त:।। सांख्य ५/७ अर्थात् यदि ईश्वर को इस सृष्टि का उपादान कारण माना जाएगा तो ईश्वर नित्य मुक्त नहीं समझा जाएगा, क्योंकि उपादान कारण मानने से उसमें रागादि की प्रवृत्ति माननी पड़ेगी जो नित्य मुक्त में नहीं हो सकती। प्रधान शक्ति योगाच्चेत् संगापत्ति:।। सांख्य ५/८ अर्थात् यदि ईश्वर और प्रकृति की शक्ति का योग मान लिया जाए तो संग की प्राप्ति से अन्योन्याश्रय होगा। ईश्वर को किसी आश्रय की आवश्यकता नहीं। सत्तामात्राच्चेत् सर्वैश्वर्यम्।। सांख्य ५/९ अर्थात् यदि ईश्वर को इस जग