स्वामी श्रद्धानन्द का वध और गवर्नमेंट लेखक- प्रियरत्न शास्त्री प्रस्तुतकर्ता- प्रियांशु सेठ गवर्नमेन्ट! प्राचीन काल में यह प्रथा थी कि जब राजा अन्याय पर तुल जाता या भ्रान्त हो जाता था तो संन्यासिवृन्द और उच्च कोटि के ब्राह्मण राजा को उपदेश कर के सीधे मार्ग पर लाते थे। राजा लोगों को भी उनकी उपदिष्ट धर्म-पद्धति पर चलना पड़ता था क्योंकि उन्होंने धर्म युक्त नीति का अनुष्ठान करना अपना कर्तव्य समझा हुआ था, तथा उन संन्यासी और ब्राह्मणों से भय भी करते थे इसलिए कि यह निष्पज्ञ और निर्लोभ साधु हम से प्रजा को विमुख कर सकते हैं। ब्राह्म बल के सामने अपने क्षात्र बल को अल्प समझते थे। अत एव इस प्राचीन प्रथा नुसार आर्य संन्यासी और ब्राह्मण तेरी वर्तमान अन्याय पद्धति को विस्पष्ट और अति वृद्ध देख कर तेरे समझाने और असंतुष्ट हिन्दू प्रजा को यथोचित कर्तव्य का आदेश करने के लिये उठ खड़े हुए हैं। यद्यपि मैं एक वैदिक विद्यार्थी हूँ तथापि उक्त मार्ग का पथिक होने से कुछ कहना कर्तव्य समझता हूं- गवर्नमेंट! क्या तुझे ज्ञात है कि तेरे शासन काल में एक बड़ी भारी व्यक्ति हिन्दू धर्म के सम्राट तथा परिव्राट् स
दयामय दयानन्द लेखक- प्रो० ताराचन्द डेऊमल गाजरा प्रस्तुतकर्ता- प्रियांशु सेठ भगवान् दयानन्द के जीवन चरित्र के एक लेखक महोदय कहते हैं- एक अत्यन्त माधुर्य्यता की लहर उनके जीवन में प्रवाहित होती थी। जिस समय वे प्रेममय बैठे होते थे, उस समय उनके मित्र जीवन की कठिनाइयों की समस्या हल करते थे। उस समय उनकी आकृति से एक ज्ञानमय आभा प्रज्वलित होती थी। वे एक वृद्धमय विचार रूप में पशुवत कार्य प्रणाली का निदान अपनी विद्वत्ता से दमन करते थे। और उनके भिन्न प्रकार के अनुचित कृत्यों के उत्तरदायत्व का भर उन पर आरोपण करते थे। वे अपने अमूल्य विचारों द्वारा उन अंधकारमय समस्याओं को जिन में जनता लिप्त थी, भी प्रकाश भी करते थे। उनका विशाल हृदय दीन, अनाथों की दशा तथा निसहाय निधनों की अधःपतन रूपी दशा को देखकर सदैव अश्रुपात किया करता था। वे नित्य उन ही के प्रति जीवित रहे और उन्हीं के लिए कार्य करते रहे। उनके हृदय की विशालता तथा दयालुता का परिचय भली प्रकार मिलता है। निसंदेह यह सत्य है कि वीरवर दयानंद ने लगातार अनाथ तथा निसहाय-अबलाओं के लिए अनन्य कार्य किए। वे अनुभव करते थे कि भारत की देवियों ने अपने प्रा