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Showing posts from November, 2018

असत्य-पराजय

असत्य-पराजय अर्थात् वामपंथी मौलाना अहसन फिरोजाबादी के 'हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ रामायण की असल हकीकत' नामक अश्लील और उच्छृंखलतापूर्ण लेख का मुंहतोड़ जवाब लेखक- प्रियांशु सेठ प्राचीनकाल के ऋषि हमें वेद के उपदेश 'पापीरप वेशया धिय: (अथर्व० ९/२/२५)' पर चलने की प्रेरणा देते हैं। मन्त्र का भाव है कि 'हे प्रभो! पापमय बुद्धियों को- विचारों को अन्यत्र हमसे दूर अन्य स्थानों पर ही रखिये।' वेद का सन्देश है कि मानव को न अपने कर्म से अपितु अपने विचारों से भी पाप-वासना को दूर रखना चाहिए, यथा- 'हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटो, मैं तुझे नहीं चाहता (अथर्व० ६/४५/१)।' वेद के इस महान् सन्देश को ऋषियों ने अपने जीवन का अंग बनाया। ऋषियों की दृष्टि में धन-नाश कोई हानि नहीं, स्वास्थ्य-नाश एक बड़ी हानि है और चरित्र-नाश सर्वनाश है। आदिकवि 'महर्षि वाल्मीकि' भी इन ऋषियों में से ही थे। वाल्मीकि जैसे प्रतिभा-सम्पन्न, धर्मज्ञ, सत्य-प्रतिज्ञ और उच्च विचारों वाला कवि आज तक नहीं हुआ। उनका आदिकाव्य 'श्रीमद्वाल्मीकी-रामायण' भूतल का प्रथम ऐति