Skip to main content

Posts

Showing posts from 2023

स्वामी श्रद्धानन्द का वध और गवर्नमेंट

स्वामी श्रद्धानन्द का वध और गवर्नमेंट लेखक- प्रियरत्न शास्त्री प्रस्तुतकर्ता- प्रियांशु सेठ गवर्नमेन्ट! प्राचीन काल में यह प्रथा थी कि जब राजा अन्याय पर तुल जाता या भ्रान्त हो जाता था तो संन्यासिवृन्द और उच्च कोटि के ब्राह्मण राजा को उपदेश कर के सीधे मार्ग पर लाते थे। राजा लोगों को भी उनकी उपदिष्ट धर्म-पद्धति पर चलना पड़ता था क्योंकि उन्होंने धर्म युक्त नीति का अनुष्ठान करना अपना कर्तव्य समझा हुआ था, तथा उन संन्यासी और ब्राह्मणों से भय भी करते थे इसलिए कि यह निष्पज्ञ और निर्लोभ साधु हम से प्रजा को विमुख कर सकते हैं। ब्राह्म बल के सामने अपने क्षात्र बल को अल्प समझते थे। अत एव इस प्राचीन प्रथा नुसार आर्य संन्यासी और ब्राह्मण तेरी वर्तमान अन्याय पद्धति को विस्पष्ट और अति वृद्ध देख कर तेरे समझाने और असंतुष्ट हिन्दू प्रजा को यथोचित कर्तव्य का आदेश करने के लिये उठ खड़े हुए हैं। यद्यपि मैं एक वैदिक विद्यार्थी हूँ तथापि उक्त मार्ग का पथिक होने से कुछ कहना कर्तव्य समझता हूं- गवर्नमेंट! क्या तुझे ज्ञात है कि तेरे शासन काल में एक बड़ी भारी व्यक्ति हिन्दू धर्म के सम्राट तथा परिव्राट् स

दयामय दयानन्द

दयामय दयानन्द लेखक- प्रो० ताराचन्द डेऊमल गाजरा प्रस्तुतकर्ता- प्रियांशु सेठ भगवान् दयानन्द के जीवन चरित्र के एक लेखक महोदय कहते हैं- एक अत्यन्त माधुर्य्यता की लहर उनके जीवन में प्रवाहित होती थी। जिस समय वे प्रेममय बैठे होते थे, उस समय उनके मित्र जीवन की कठिनाइयों की समस्या हल करते थे। उस समय उनकी आकृति से एक ज्ञानमय आभा प्रज्वलित होती थी। वे एक वृद्धमय विचार रूप में पशुवत कार्य प्रणाली का निदान अपनी विद्वत्ता से दमन करते थे। और उनके भिन्न प्रकार के अनुचित कृत्यों के उत्तरदायत्व का भर उन पर आरोपण करते थे। वे अपने अमूल्य विचारों द्वारा उन अंधकारमय समस्याओं को जिन में जनता लिप्त थी, भी प्रकाश भी करते थे। उनका विशाल हृदय दीन, अनाथों की दशा तथा निसहाय निधनों की अधःपतन रूपी दशा को देखकर सदैव अश्रुपात किया करता था। वे नित्य उन ही के प्रति जीवित रहे और उन्हीं के लिए कार्य करते रहे। उनके हृदय की विशालता तथा दयालुता का परिचय भली प्रकार मिलता है। निसंदेह यह सत्य है कि वीरवर दयानंद ने लगातार अनाथ तथा निसहाय-अबलाओं के लिए अनन्य कार्य किए। वे अनुभव करते थे कि भारत की देवियों ने अपने प्रा

स्वामी श्रद्धानंद जी का सच्चा बलिदान और अंतिम संदेश

धर्मवीर श्रद्धेय स्वामीजी का सच्चा बलिदान और अंतिम संदेश लेखक- स्वामी चिदानंद संन्यासी (भूतपूर्व महासचिव, भारतीय हिंदू शुद्धि सभा) [भूमिका- क्या आप जानते हैं कि शुद्धि व्यवस्था जिसे आजकल हम घर-वापसी कहते हैं, को आंदोलन बनाने की शुरुआत आर्यसमाज के विद्वान् संन्यासी स्वामी श्रद्धानंद ने की थी। भारत में जब ईसाई और मुसलमानों की कपटी और क्रूरता भरी नीति ने लाखों हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन कर डाला था, तो उस दौर में स्वामी श्रद्धानंद जी ने लाखों की तादाद में ईसाई और मुसलमान बन चुके हिंदू भाइयों और माताओं की शुद्धि करके हिंदू समाज की रक्षा की। वास्तव में, स्वामी दयानंद की आर्यसमाज रूपी क्रांति ने हिंदू समाज को जीना सीखा दिया । -प्रियांशु सेठ] आज से एक हज़ार वर्ष पूर्व मोहम्मदी आक्रमणकारियों ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया। जो-जो अन्याय और अत्याचार उन्होंने आर्य जाति के साथ किये हैं, उन्हें सभी इतिहास वेत्ता जानते हैं। उन अत्याचारों और अन्यायों का सान्मुख्य करने के लिये ही आर्य जाति ने, राणा प्रताप और क्षत्रपति शिवाजी से नररत्न, समर्थ गुरु रामदास और गुरु नानक से साधु, गुरु तेगबहादुर और गुर

माता की लाज पुत्रियों के हाथ में

माता की लाज पुत्रियों के हाथ में लेखक- श्रीयुत् स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराज प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ भारत माता का विलाप सन्तान के लिए असह्य हो गया, इसी लिए सन्तान माता की रक्षा और उसके पुनरुत्थान के लिए हाथ पैर मार रही है। अबतक पुरुष ही यत्न करते रहे थे, कुछ दिनों से स्त्रियों ने मातृ-सेवा का व्रत लेना शुरू कर दिया है। मन कितना ही उठने वाला विशाल क्यों न हो बिना दृढ़ बलवान शरीर और आत्मा के वह विवश ही रहता है। भारतीयों में मानसिक भाव बड़े व्यापक हैं, परन्तु आत्मा और शरीर की निर्बलता के कारण उनके संकल्प केवल संकल्प मात्र ही रहते हैं। फिर निर्बल, तेजहीन शरीर के अन्दर तेजस्वी आत्मा का निवास भी दुस्तर है। कहा जायगा कि सुशिक्षित पुरुषों ने शारीरिक उन्नति और दृढ़ता की ओर ध्यान देना आरम्भ कर दिया है। परन्तु सन्तान वही कुछ बनती है जो उसे पिता माता (विशेषत: माता) बना दें। भारत को वीर सिंह सन्तान चाहिए, वेद के आदेशानुसार- अस्य यजमानस्य वीरो जायताम्। राष्ट्र में वीर सन्तान उत्पन्न होनी चाहिए। वह वीर सन्तान कैसे उत्पन्न होगी? आजकल की विदेशी शिक्षापद्धति ने जहां भारतीय बालकों के शरीर निस

ज़न्नत और दोज़ख़ के नज़ारे

ज़न्नत और दोज़ख़ के नज़ारे रचयिता - पं० प्रियव्रत विद्यालंकार प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ इधर है ज़न्नत उधर है दोज़ख़ है जाग्हे दोनों जाने वाले। विमान पर बैठ चल दिये इक बँधे खड़े हैं सताने वाले।। इधर गले में हैं फूलमाला उधर यह हाथों में हथकड़ी हैं। नज़र हैं आते नज़ारे दोनों ओ देख गोली चलाने वाले।। थी गोद ख़ाली प्रभु की जिनके लिए वह जा बैठे जाने वाले। पड़ा है दोज़ख़ की कोठड़ी में बँधा हुआ जेलख़ाने वाले।। गई अक़ल अब बने हो पागल खुला है दोज़ख़ का पहिला दर यह। वह देखो ज़न्नत में हँस रहे हैं अक़ल का सिक्का जमाने वाले।। खुला जो दोज़ख़ का दूसरा दर नजा़रा कुछ और आयेगा तब। लटकते फाँसी पै कैसे वह हैं बशर जो दोज़ख़ के जाने वाले।। पड़े सड़ोगे क़बर में तुम जब खुला जो दोज़ख़ का तीसरा दर। न उठने पावोगे तुम वहाँ से कुराँ पै ईमान लाने वाले।। पुराना चोला बदल के वह तो नया ही रँग आजमायेंगे कुछ। तुझे क़यामत के दिन तलक यह न कीड़े छोड़ेंगे खाने वाले।। तुझे जलाने को देख दोज़ख़ की भट्टी शोले उगल रही है। क़दम से ज़न्नत भी पाक़ उनके हुई जो हैं ख़ूँ बहाने वाले।। न नाम लेवा न पानी देवा उधर कोई होगा चन्द दिन में

क़लम तलवार है

क़लम तलवार है कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए० प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ काग़ज़ के रावण पै आग की बौछाड़ देख, हँसते हँसौड़ यह वीरता अपार है। कौन कौन रोक सके इन वाणी के बवण्डरों को? वेग में गिराके तेज़ तर्कणा की धार है। है नवीन युद्ध-युग नीति की निपुणता का, वीर वागभट्ट, बाण वेधक विचार है। निरा ठाठ बाठ युद्ध का हैं तोप औ' विमान, काग़ज़ का खेत है, क़लम तलवार है। लेखराम राजपाल जय-माल पा निहाल, वीर श्रद्धानन्द-उर विकासी बाहर है। धर्मवीर की चिता है? या खिली अमरता है। अमरपुरी में जयनाद् की ग़ुंजार है। शीघ्र प्रतिकार करो शत्रु का संहार करो। आर्य हों अनार्य - यह आर्य प्रतिकार है। वैर कुविचार से है काम सुप्रचार से है, आर्य वीर की उठी क़लम तलवार है।।

श्रद्धानन्द-सप्तक

श्रद्धानन्द-सप्तक कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए० प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ स्वदेश स्वजाति का, सीस वार उद्धार।    अश्रद्धा-युग में हुए, श्रद्धा के अवतार।। लोग वकील हा! छोड़ रहा घरबार।    हिमगिरि सुरसरि सोचते, अहो! बढ़ा परिवार।। भारत के सब जाय हैं, जग जननी के पूत।    छूमन्तर से शुद्धि के, करदी छूत अछूत।। घर में जा अल्लाह के, दिया खूब उपदेश।    अल्लह औ' प्रभु एक हैं, तजो द्वैत औ' द्वेष।। घुस न सकी सरकार की, जिस उर में संगीन।    देश-बन्धु की गोलियां, हुई वहीं लव-लीन।। दयानन्द की वेदी पर, दिया सीस-बलिदान।    लेखराम के सत्सखा, मुन्शीराम महान्।। आर्य-तत्व के स्नेह का, जलता जहां प्रदीप।    उस निज प्रिय कुल के रहो, स्वामिन्! सदा समीप।।

ब्रह्म पारायण यज्ञ का आर्यसमाज से क्या सम्बंध है?

ब्रह्म पारायण यज्ञ का आर्यसमाज से क्या सम्बंध है? -प्रियांशु सेठ आजकल आर्यसमाज में पारायण यज्ञों की चर्चा जोरों पर है। हमारे कुछ आचार्य गणों का सुझाव है कि पारायण यज्ञ वैदिक है। इससे वेदमंत्रों की रक्षा होती है। इसमें प्रमुख रूप से आचार्य शिवदत्त पाण्डेय/शुचिषद् मुनि जिनसे पौराणिकता की बू आती है, को कुछ तथाकथित लोगों ने सिर चढ़ा रक्खा है। दरअसल ऐसे ही लोग आर्यसमाज में आपसी मतभेद पैदा करके अपना रास्ता काट लेते हैं। श्री शिवदत्त जी तो यहां तक लिख दे रहे हैं कि आर्यसमाज के बड़े-बड़े विद्वानों ने पारायण यज्ञ का कहीं पर विरोध व निषेध तक नहीं किया है। इसके अतिरिक्त झूठ की हद पार करके श्री तथाकथित आचार्य जी लिखते हैं- "मेरी जानकारी के अनुसार पहला चतुर्वेद पारायण यज्ञ सन् 1948 के अप्रैल मास में एटा में स्वतंत्रता संग्राम में विजई होने पर विजय यज्ञ के रूप में किया गया था। इसके ब्रह्मा पदवाक्यप्रमाणज्ञ पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु थे...।" अस्तु! मैं पूछना चाहता हूं, यह श्री शिवदत्त पाण्डेय ने आर्यसमाज को कितना पढ़ लिया? रही बात वेदमंत्रों की रक्षा की तो क्या ऋषि-मुनियों या महा

नमस्ते और स्वामी दयानंद

नमस्ते और स्वामी दयानंद -प्रियांशु सेठ भारत के केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह जी ने दिनांक 21 मार्च 2023 को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया- "क्या आप जानते हैं कि 'नमस्ते' शब्द महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने हमको दिया? वरना शायद हम आज अभिवादन के लिए किसी विदेशी शब्द का इस्तेमाल कर रहे होते।" मंत्री जी की यह बात कुछ महानुभावों को सुई जैसी चुभ गई और उन्होंने पेट भरकर इसकी निंदा की। वेद और स्वामी दयानंद जी को कभी न पढ़ने वाले प्रसिद्ध पत्रकार व लेखक श्री संदीप देव एवं श्री संजय तिवारी मणिभद्र ने एक विशेषज्ञ की तरह अपनी टिप्पणी उछाल दी। संजय तिवारी जी लिखते हैं- "...नमस्ते शब्द का उल्लेख यजुर्वेद में है। यह रुद्र के अभिवादन के लिए प्रयुक्त हुआ है।... अब इस बात से तो अमित शाह भी इंकार नहीं करेंगे कि यजुर्वेद स्वामी दयानंद सरस्वती के पहले लिखा गया होगा।..." दूसरी ओर संदीप देव जी लिखते हैं- "...दयानंदजी जिन वेदों को केवल मानते हैं, उन वेदों में 'नमस्ते' कहां-कहां आया है, कभी पृष्ठ पलट कर देखा है आपने।..." १. अब जर

स्वामी दयानंद और राजधर्म

स्वामी दयानंद और राजधर्म [स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती पर विशेष रूप से प्रकाशित] -प्रियांशु सेठ उन्नीसवीं शताब्दी के महान् दार्शनिक चिन्तक स्वामी दयानंद सरस्वती भारतवर्ष में आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता और संप्रभुता का संचार करना चाहते थे। सन् 1947 से पूर्व का भारत तो पराधीनता की बेड़ियों में बंधा था, लेकिन महाभारत के बाद का भारत तो कुप्रथाओं की कटपुतली बनकर झूम रहा था। स्वामी दयानंदजी ने अपने दूरदर्शी चिन्तन से इन कुप्रथाओं (Malpractices) को मनुष्य जाति से मुक्त करने का प्रयास किया। उन्होंने स्वराज्य, स्वधर्म, स्वभाषा का आंदोलन चलाया और अंधविश्वास (Superstition), हीनदेवतावाद (Pantheism) या अनेकेश्वरवाद (Polytheism), मूर्तिपूजा (Iconolatry), छुआछूत (Untouchhability), बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद और वेदों के निरंतर ह्रास आदि का पुरजोर विरोध करते हुए वेदों का सही स्वरूप, वर्ण-व्यवस्था, पुनर्विवाह, स्त्री-शिक्षा, शूद्राधिकार, अग्निहोत्र, एकेश्वरवाद, गौरक्षा, कृषि इत्यादि का शंखनाद किया। इसी क्रम में स्वामीजी ने अपना चिंतन राजधर्म पर भी प्रकट किया- "(त्रीणि राजाना)