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Showing posts from February, 2019

ऋषि की मथुरा जन्म-शताब्दी का ऐतिहासिक भाषण श्री पं० चमूपति जी का व्याख्यान

ऋषि की मथुरा जन्म-शताब्दी का ऐतिहासिक भाषण श्री पं० चमूपति जी का व्याख्यान देवियो और भद्र पुरुषो! मैं तो मथुरा नगरी में शिष्य रूप से आया था, न कि इस वेदी पर खड़ा होकर व्याख्यान देने के लिए। मैं तो यह विचार मन में रखकर आया था कि अब गुरु की नगरी में चलता हूं। वहां पद-पद पर शिक्षा ग्रहण करूंगा और उन शिक्षाओं को अपने जीवन का आधार बनाकर घर को लौटूंगा, परन्तु अब यह कार्य सौंपा गया है कि इस वेदी पर खड़ा होऊं। मैं लिखने प्रयत्न कर अपने को उपदेशक नहीं बना सका। मेरे हृदय का इस समय यही भाव है जो इधर-उधर प्रचार करके अपने माता-पिता के घर पर पहुंचने वाले व्यक्ति का होता है। मैं लाखों बार उपदेशक बनने का विचार करता हूं, परन्तु नहीं बन पाता। यह वही स्थान है, जहां मैंने उपदेश धारण किया और हमारे गुरु ने उपदेश दिया था। यह स्थान कृष्ण का मकसूद समझा जाता है। जब यहां कंस राजा था, तब यहां की प्रजा दुखी थी और प्रजा के कष्ट निवारणार्थ एक तंग कोठरी में कृष्ण ने जन्म लिया था। वे ब्रजपाल थे। लोगों के ऊपर होने वाले बलात्कारों और अत्याचारों को दूर करने के लिए उनका जन्म हुआ था। मुरली द्वारा स्वाधीनता के सन्देश

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती प्रियांशु सेठ आजकल सदैव देखने में आता है कि संस्कृत-व्याकरण से अनभिज्ञ विधर्मी लोग संस्कृत के शब्दों का अनर्थ कर जन-सामान्य में उपद्रव मचा रहे हैं। ऐसा ही एक इस्लामी फक्कड़ सैयद अबुलत हसन अहमद है। जिसने जानबूझकर द्वेष और खुन्नस निकालने के लिए गायत्री मन्त्र पर अश्लील इफ्तिरा लगाया है। इन्होंने अपना मोबाइल नम्बर (09438618027 और 07780737831) लिखते हुए हमें इनके लेख के खण्डन करने की चुनौती दी है। मुल्ला जी का आक्षेप हम संक्षेप में लिख देते हैं [https://m.facebook.com/groups/1006433592713013?view=permalink&id=214352287567074]- 【गायत्री मंत्र की अश्लीलता- आप सभी 'गायत्री-मंत्र' के बारे में अवश्य ही परिचित हैं, लेकिन क्या आपने इस मंत्र के अर्थ पर गौर किया? शायद नहीं! जिस गायत्री मंत्र और उसके भावार्थ को हम बचपन से सुनते और पढ़ते आये हैं, वह भावार्थ इसके मूल शब्दों से बिल्कुल अलग है। वास्तव में यह मंत्र 'नव-योनि' तांत्रिक क्रियाओं में बोले जाने वाले मन्त्रों में से एक है। इस मंत्र के मूल शब्दों पर गौर किया जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही अश्लील व

महामृत्युञ्जय मन्त्र में खरबूजे की उपमा का मार्मिक सन्देश

महामृत्युञ्जय मन्त्र में खरबूजे की उपमा का मार्मिक सन्देश प्रियांशु सेठ वेदों की विश्व-विश्रुति का अन्यतम कारण यह भी है कि जिस किसी भी कोण से हम इस अद्भुत ग्रन्थ का अध्ययन करें, यह अपने प्रस्तार से अमाप्य है। इसके एक मन्त्र का सम्पूर्ण आकलन समग्र जीवन-साधना की अपेक्षा रखता है। ईश्वर प्रदत्त ज्ञान की यही तो विशेषता रही है कि यह ज्ञान के अक्षय मधुकोष से सम्पृक्त होकर हृदय व आत्मा दोनों को आह्लादित कर देता है। यदि वेद-मन्त्रों के अलंकरण पर दृष्टि किया जाए तो यह अलंकारों का कुबेर कोष प्रतीत होगा। जिस प्रकार सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित और अलंकृत स्त्री और भी अधिक शोभायमान प्रतीत होती है तथा पति के चित्त को आह्लादित करती है, उसी प्रकार वेद के मन्त्र भी अलंकृत होने से अत्यधिक सुन्दर और हृदय-ग्राह्य होती है। इसी सम्बन्ध में एक कवि-उक्ति भी है- युवतेरिव रूपमंग काव्यं स्वदते शुद्धगुणं तदप्यतीव। विहितप्रणयं निरन्तराभि: सदलंकारविकल्पकल्पनाभि:।। अलम् पूर्वक कृ धातु से भाव का कारण अर्थ में धञ् प्रत्यय करके अलंकार शब्द निष्पन्न होता है, इस प्रकार जो भूषित करे वह अंलकार है। अलंकारों

वीर सावरकर का आर्यसमाज से लगाव

वीर सावरकर का आर्यसमाज से लगाव प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ मुस्लिम-लीग कराची के अधिवेशन में सत्यार्थप्रकाश को जब्त कराने का कुछ स्पष्ट सा प्रस्ताव पेश हुआ। मि० जिन्ना ने भी व्यक्त किया कि इससे हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा होना का भय है, जिसके कारण साम्प्रदायिक कलह की जड़ें ही केवल जमेंगी। फिर १५-१६ नवम्बर १९४३ में दिल्ली में मुस्लिम लीग की एक कौंसिल हुई और उसमें सत्यार्थप्रकाश के विरुद्ध एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें भारत सरकार से जोर के साथ कहा गया कि सत्यार्थप्रकाश के वे समुल्लास जिनमें धर्म-प्रवर्त्तकों, विशेषकर इस्लाम के पैगम्बरों के बारे में आपत्तिजनक और अपमानकर बातें हैं, तुरन्त जब्त कर लिए जायें। इसके बाद सिन्ध के मन्त्रिमण्डल में से भी यह आवाज आई कि सत्यार्थप्रकाश को जब्त कर लिया जाय। फिर हिन्दुओं के विरोध को देखकर सिन्ध सरकार ने सत्यार्थप्रकाश के प्रश्न को अखिल भारतीय प्रश्न बताकर भारत-सरकार के पास भेज दिया। इस सबका परिणाम यह हुआ कि आर्यसमाजी अपने धर्म ग्रन्थ पर यह आघात कैसे सहन कर सकते थे, चारों ओर हलचल-सी मच गई और सभा, प्रदर्शन, विरोध और प्रस्ताव पास होने लगे, सिन्ध के गवर्नर

वेद ही क्यों?

वेद ही क्यों? पं० क्षितिश कुमार वेदालंकार [संसार के सभी मत वाले अपने-अपने धर्म ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान कहते हैं, तब प्रश्न उठता है कि वेद ही क्यों? इस प्रश्न का सुलझा उत्तर आर्यसमाज के उच्च कोटि के विद्वान्, वक्ता और पत्रकार लेखक की लेखनी से पढ़िए। -डॉ० सुरेन्द्र कुमार] इस प्रश्न को उपस्थित करने वाले दो प्रकार के वर्ग हैं। एक वर्ग को हम आस्तिक या धार्मिक लोगों का वर्ग कह सकते हैं और दूसरे वर्ग को नास्तिक या अधार्मिक लोगों का वर्ग। जो नास्तिक या अधार्मिक लोग हैं वे तो ईश्वर या धर्ममात्र के विरोधी हैं। उनकी दृष्टि में सभी धर्मग्रन्थ त्याज्य हैं, इसलिए वे किसी भी धर्मग्रन्थ के गुणावगुण पर विचार करने को भी तैयार नहीं, परन्तु जो धार्मिक लोग हैं, वे भी नाना सम्प्रदायों और अनेक मत-मतान्तरों में बँटे हुए हैं और हरेक मतवादी अपने ही धर्मग्रन्थ को सर्वश्रेष्ठ मानता है। ऐसा मानना स्वाभाविक भी है। मतवादियों को अपने मत से मोह होता ही है। इस मोह के वशीभूत होकर यदि कोई अपने मत को अन्य मतों से तथा अपने धर्मग्रन्थ को अन्य धर्मग्रन्थों से उत्कृष्ट समझे तो इसे अनुचित कैसे कहा जाए? प्रत्येक म

देवभाषा व राष्ट्रभाषा के प्रति क्रान्तिकारी वीर सावरकर के अमूल्य विचार

देवभाषा व राष्ट्रभाषा के प्रति क्रान्तिकारी वीर सावरकर के अमूल्य विचार प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ "संस्कृतनिष्ठ हिंदी जो संस्कृत से बनायी गयी है और जिसका पोषण संस्कृत भाषा से हो, वह हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा होगी। संस्कृत भाषा संसार की समस्त प्राचीन भाषाओं में सब से अधिक संस्कृत और सब से अधिक सम्पन्न होने के अतिरिक्त हम हिंदुओं के लिए सब से अधिक पवित्र भी है। हमारे धर्मग्रन्थ, इतिहास, तत्वज्ञान और संस्कृति, संस्कृत भाषा से इतनी अधिक परस्पर मिली हुई है और इसके अंतर्भूत है कि यही हमारी हिंदू जाति का वास्तविक मस्तिष्क है। हमारी अधिकांश मातृ-भाषाओं की यह माता है, इस ने उन्हें अपने वक्ष का दूध पिलाया है। आज हिंदुओं की समस्त भाषाएं जो या तो संस्कृत से ही निकली हैं या उसमें दूसरी भाषा मिला कर बनायी गयी हैं, वे सब तभी उन्नत और संवृद्ध हो सकती हैं जब वे संस्कृत-भाषा से पोषित की जायें। इसलिये प्रत्येक हिंदू युवक के प्राचीन भाषा के पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा आवश्यक रूप से रहनी चाहिये। संस्कृत हमारी देवभाषा है और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा। हिंदी को राष्ट्रीय भाषा स्वीकार करने में अन्य प

महर्षि दयानन्द हिन्दी साहित्यकारों की दृष्टि में

महर्षि दयानन्द हिन्दी साहित्यकारों की दृष्टि में संकलनकर्ता- डॉ० भवानीलाल भारतीय प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ •आचार्य पं० रामचन्द्र शुक्ल (१८८४-१९४०) (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- हिन्दी समीक्षा को नवीन रूप देने वाले आचार्य शुक्ल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक थे। वे अपने मनोवैज्ञानिक निबंधों तथा सूर, तुलसी एवं जायसी पर लिखी समीक्षाओं के कारण विशेष ख्याति अर्जित कर सके। रसवादी समीक्षा शैली के प्रवर्तक।) पैगम्बरी एकेश्वरवाद की ओर नवशिक्षित लोगों को खिंचते देख स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक एकेश्वरवाद लेकर खड़े हुए और सं० १९२० से उन्होंने अनेक नगरों में घूम-घूम कर व्याख्यान देना आरम्भ किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये व्याख्यान देश में बहुत दूर तक प्रचलित साधु हिन्दी भाषा में ही होते थे। स्वामीजी ने अपना सत्यार्थप्रकाश तो हिन्दी 'आर्यभाषा' में प्रकाशित किया ही, वेदों के भाष्य भी संस्कृत और हिन्दी दोनों में किये। स्वामीजी के अनुयायी हिन्दी को आर्यभाषा कहते थे। स्वामीजी ने सं० १९३२ में आर्यसमाज की स्थापना की और आर्यसमाजियों के लिए हिन्दी या आर्यभाषा का पढ़ना आ

'जिहाद' मुंशी प्रेमचंद की कहानी

'जिहाद' मुंशी प्रेमचंद की कहानी -खजानचंद ने मृत्यु को स्वीकार किया पर नहीं बना मुसलमान -मुंशी प्रेमचंद बहुत पुरानी बात है। हिंदुओं का एक काफिला अपने धर्म की रक्षा के लिए पश्चिमोत्तर के पर्वत-प्रदेश से भागा चला आ रहा था। मुद्दतों से उस प्रांत में हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रहते चले आये थे। धार्मिक द्वेष का नाम न था। पठानों के जिरगे हमेशा लड़ते रहते थे। उनकी तलवारों पर कभी जंग न लगने पाती थी। बात-बात पर उनके दल संगठित हो जाते थे। शासन की कोई व्यवस्था न थी। हर एक जिरगे और कबीले की व्यवस्था अलग थी। आपस के झगड़ों को निपटाने का भी तलवार के सिवा और कोई साधन न था। जान का बदला जान था, खून का बदला खून; इस नियम में कोई अपवाद न था। यही उनका धर्म था, यही ईमान; मगर उस भीषण रक्तपात में भी हिंदू परिवार शांति से जीवन व्यतीत करते थे। पर एक महीने से देश की हालत बदल गयी है। एक मुल्ला ने न जाने कहां से आकर अनपढ़ धर्मशून्य पठानों में धर्म का भाव जागृत कर दिया है। उसकी वाणी में कोई ऐसी मोहिनी है कि बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष खिंचे चले आते हैं। वह शेरों की तरह गरज कर कहता है-खुदा ने तुम्हें इस

इस्लाम की विचित्र दयालुता

इस्लाम की विचित्र दयालुता -सन्नाटा सिंह इस्लाम मत के विद्वान् अपने मत को महिमा मण्डित करने में प्रायः अतिशयोक्ति कर देते हैं। इस्लाम जगत के सुविख्यात विद्वान् डॉ० ज़ाकिर नाइक ने उन विद्वानों में विशेष भूमिका निभाई है। जाकिर जी ने इस्लाम पर गैर-मुस्लिमों द्वारा किये सवालों के जवाब में "Answers to Non-muslims' common Questions about Islam" नामक एक लघु पुस्तक लिखा है। इस पुस्तक में लेखक महोदय Eating Non-Vegetarian Food शीर्षक देते हुए लिखते हैं- Islam enjoins mercy and compassion for all living creatures. At the same time Islam maintains that Allah has created the earth and its wondrous flora and fauna for the benefit of mankind. It is upto mankind to use every resource in this world judiciously, as a niyamat (Divine blessing) and amanat (trust) from Allah. अर्थ- इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता है। साथ ही इस्लाम इस बात पर भी जोर देता है कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इन्सान के लाभ के लिए