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Showing posts from April, 2023

माता की लाज पुत्रियों के हाथ में

माता की लाज पुत्रियों के हाथ में लेखक- श्रीयुत् स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराज प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ भारत माता का विलाप सन्तान के लिए असह्य हो गया, इसी लिए सन्तान माता की रक्षा और उसके पुनरुत्थान के लिए हाथ पैर मार रही है। अबतक पुरुष ही यत्न करते रहे थे, कुछ दिनों से स्त्रियों ने मातृ-सेवा का व्रत लेना शुरू कर दिया है। मन कितना ही उठने वाला विशाल क्यों न हो बिना दृढ़ बलवान शरीर और आत्मा के वह विवश ही रहता है। भारतीयों में मानसिक भाव बड़े व्यापक हैं, परन्तु आत्मा और शरीर की निर्बलता के कारण उनके संकल्प केवल संकल्प मात्र ही रहते हैं। फिर निर्बल, तेजहीन शरीर के अन्दर तेजस्वी आत्मा का निवास भी दुस्तर है। कहा जायगा कि सुशिक्षित पुरुषों ने शारीरिक उन्नति और दृढ़ता की ओर ध्यान देना आरम्भ कर दिया है। परन्तु सन्तान वही कुछ बनती है जो उसे पिता माता (विशेषत: माता) बना दें। भारत को वीर सिंह सन्तान चाहिए, वेद के आदेशानुसार- अस्य यजमानस्य वीरो जायताम्। राष्ट्र में वीर सन्तान उत्पन्न होनी चाहिए। वह वीर सन्तान कैसे उत्पन्न होगी? आजकल की विदेशी शिक्षापद्धति ने जहां भारतीय बालकों के शरीर निस

ज़न्नत और दोज़ख़ के नज़ारे

ज़न्नत और दोज़ख़ के नज़ारे रचयिता - पं० प्रियव्रत विद्यालंकार प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ इधर है ज़न्नत उधर है दोज़ख़ है जाग्हे दोनों जाने वाले। विमान पर बैठ चल दिये इक बँधे खड़े हैं सताने वाले।। इधर गले में हैं फूलमाला उधर यह हाथों में हथकड़ी हैं। नज़र हैं आते नज़ारे दोनों ओ देख गोली चलाने वाले।। थी गोद ख़ाली प्रभु की जिनके लिए वह जा बैठे जाने वाले। पड़ा है दोज़ख़ की कोठड़ी में बँधा हुआ जेलख़ाने वाले।। गई अक़ल अब बने हो पागल खुला है दोज़ख़ का पहिला दर यह। वह देखो ज़न्नत में हँस रहे हैं अक़ल का सिक्का जमाने वाले।। खुला जो दोज़ख़ का दूसरा दर नजा़रा कुछ और आयेगा तब। लटकते फाँसी पै कैसे वह हैं बशर जो दोज़ख़ के जाने वाले।। पड़े सड़ोगे क़बर में तुम जब खुला जो दोज़ख़ का तीसरा दर। न उठने पावोगे तुम वहाँ से कुराँ पै ईमान लाने वाले।। पुराना चोला बदल के वह तो नया ही रँग आजमायेंगे कुछ। तुझे क़यामत के दिन तलक यह न कीड़े छोड़ेंगे खाने वाले।। तुझे जलाने को देख दोज़ख़ की भट्टी शोले उगल रही है। क़दम से ज़न्नत भी पाक़ उनके हुई जो हैं ख़ूँ बहाने वाले।। न नाम लेवा न पानी देवा उधर कोई होगा चन्द दिन में

क़लम तलवार है

क़लम तलवार है कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए० प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ काग़ज़ के रावण पै आग की बौछाड़ देख, हँसते हँसौड़ यह वीरता अपार है। कौन कौन रोक सके इन वाणी के बवण्डरों को? वेग में गिराके तेज़ तर्कणा की धार है। है नवीन युद्ध-युग नीति की निपुणता का, वीर वागभट्ट, बाण वेधक विचार है। निरा ठाठ बाठ युद्ध का हैं तोप औ' विमान, काग़ज़ का खेत है, क़लम तलवार है। लेखराम राजपाल जय-माल पा निहाल, वीर श्रद्धानन्द-उर विकासी बाहर है। धर्मवीर की चिता है? या खिली अमरता है। अमरपुरी में जयनाद् की ग़ुंजार है। शीघ्र प्रतिकार करो शत्रु का संहार करो। आर्य हों अनार्य - यह आर्य प्रतिकार है। वैर कुविचार से है काम सुप्रचार से है, आर्य वीर की उठी क़लम तलवार है।।

श्रद्धानन्द-सप्तक

श्रद्धानन्द-सप्तक कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए० प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ स्वदेश स्वजाति का, सीस वार उद्धार।    अश्रद्धा-युग में हुए, श्रद्धा के अवतार।। लोग वकील हा! छोड़ रहा घरबार।    हिमगिरि सुरसरि सोचते, अहो! बढ़ा परिवार।। भारत के सब जाय हैं, जग जननी के पूत।    छूमन्तर से शुद्धि के, करदी छूत अछूत।। घर में जा अल्लाह के, दिया खूब उपदेश।    अल्लह औ' प्रभु एक हैं, तजो द्वैत औ' द्वेष।। घुस न सकी सरकार की, जिस उर में संगीन।    देश-बन्धु की गोलियां, हुई वहीं लव-लीन।। दयानन्द की वेदी पर, दिया सीस-बलिदान।    लेखराम के सत्सखा, मुन्शीराम महान्।। आर्य-तत्व के स्नेह का, जलता जहां प्रदीप।    उस निज प्रिय कुल के रहो, स्वामिन्! सदा समीप।।

ब्रह्म पारायण यज्ञ का आर्यसमाज से क्या सम्बंध है?

ब्रह्म पारायण यज्ञ का आर्यसमाज से क्या सम्बंध है? -प्रियांशु सेठ आजकल आर्यसमाज में पारायण यज्ञों की चर्चा जोरों पर है। हमारे कुछ आचार्य गणों का सुझाव है कि पारायण यज्ञ वैदिक है। इससे वेदमंत्रों की रक्षा होती है। इसमें प्रमुख रूप से आचार्य शिवदत्त पाण्डेय/शुचिषद् मुनि जिनसे पौराणिकता की बू आती है, को कुछ तथाकथित लोगों ने सिर चढ़ा रक्खा है। दरअसल ऐसे ही लोग आर्यसमाज में आपसी मतभेद पैदा करके अपना रास्ता काट लेते हैं। श्री शिवदत्त जी तो यहां तक लिख दे रहे हैं कि आर्यसमाज के बड़े-बड़े विद्वानों ने पारायण यज्ञ का कहीं पर विरोध व निषेध तक नहीं किया है। इसके अतिरिक्त झूठ की हद पार करके श्री तथाकथित आचार्य जी लिखते हैं- "मेरी जानकारी के अनुसार पहला चतुर्वेद पारायण यज्ञ सन् 1948 के अप्रैल मास में एटा में स्वतंत्रता संग्राम में विजई होने पर विजय यज्ञ के रूप में किया गया था। इसके ब्रह्मा पदवाक्यप्रमाणज्ञ पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु थे...।" अस्तु! मैं पूछना चाहता हूं, यह श्री शिवदत्त पाण्डेय ने आर्यसमाज को कितना पढ़ लिया? रही बात वेदमंत्रों की रक्षा की तो क्या ऋषि-मुनियों या महा