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Showing posts from June, 2018

महात्मा बुद्ध पर मांसाहार का मिथ्या दोषारोपण : एक जटिल समस्या

महात्मा बुद्ध पर मांसाहार का मिथ्या दोषारोपण : एक जटिल समस्या लेखक- शास्त्रार्थ महारथी डॉ० शिवपूजनसिंह कुशवाहा जी प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ सहयोगी- वैदिक विद्वान् डॉ० ब्रजेश गौतम जी तथागत (महात्माबुद्ध) का जन्म कपिलवस्तु नगर में सूर्यवंशान्तर्गत शाक्यवंश में हुआ था। सुमंगलविलासिनी और 'महावंश' की कथाओं में शाक्यों का राजा इक्ष्वाकु का वंशज बताया गया है। 'विष्णुपुराण' से भी इसी मत की पुष्टि होती है। 'महावस्तु' में शाक्यों को आदित्यबन्धु कहा गया है। आदित्यबन्धु और सूर्यवंशी एक ही बात है। सम्प्रति शाक्यवंश के प्रतिनिधि 'शाक्यसेनी मुराव' हैं। महात्मा बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई, इसपर विद्वानों के भिन्न-भिन्न विचार हैं। कहा जाता है कि उन्हें 'सूकर मद्दवम्' खिलाया गया था जो कि सुअर का मांस था। उसे वे पचा न सके। उन्हें अतिसार हो गया और अन्त में उसी रोग से उनका कुशीनगर (वर्तमान कसियाँ जिला देवरिया) में देहावसान हो गया। 'सूकर मद्दवम्' क्या पदार्थ हैं? इसके सम्बन्ध में 'महापरिनिब्वानसूक्त' के भाष्यकारों ने अपने-अपने विभिन्न मत प्रकट किए ह

मृत्यु पर विजय

मृत्यु पर विजय प्रियांशु सेठ हम सभी को ज्ञात है कि जो इस सृष्टि में जन्म लिया है उसे एक दिन मरना ही होगा । यही सृष्टि का नियम है किन्तु क्या मृत्यु पर भी विजय प्राप्त किया जा सकता है ? यह प्रश्न स्वामी दयानन्द जी की भी आत्मकथा का एक हिस्सा है तो आइए पढ़ें कि किस प्रकार स्वामी जी का उद्देश्य मृत्यु पर विजय प्राप्त करना हो गया था ? भारत की संस्कृति वर्ण - व्यवस्था पर आधारित है । यहां गुणों के आधार पर वितरण होता है । जो जैसा कर्म करता है , वैसा ही वर्ण उसे मिल जाता है । इसी प्रकार यहां आश्रम व्यवस्था भी सृष्टि के आदिकाल से चली आ रही है । 25 साल तक ब्रह्मचारी , फिर 25 से 50 तक गृहस्थी और 50 से 75 तक वानप्रस्थ और उसके बाद संन्यास आश्रम । ये चारों आश्रम जीवन के आधार हुआ करते थे । लेकिन संन्यास आश्रम के बारे में कहा जाता है कि यह तभी सार्थक है , जब वैराग्य उत्पन्न हो जाए और यदि वैराग्य बचपन या जवानी में भी उत्पन्न हो जाए तो व्यक