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Showing posts from February, 2020

नास्तिक मत समीक्षा

नास्तिक मत समीक्षा लेखक- पण्डित हरिदेव जी तर्क केसरी प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ प्रश्न १- नास्तिक का क्या लक्षण है? अर्थात् नास्तिक किसे कहते हैं? उत्तर- जो ईश्वर की सत्ता से इन्कार करे वह मुख्य रूप से नास्तिक कहा जाता है। परन्तु स्वामी दयानन्द सरस्वती ने दस प्रकार के लोगों को नास्तिक संज्ञा दी है। यथा- (१) जो ईश्वर को न माने। (२) जो आत्मा और पुनर्जन्म स्वीकार न करे और यह कहे कि अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी से आत्मा उत्पन्न होता और मृत्यु के पश्चात् इसका नाश हो जाता है इसलिए परलोक की चिन्ता करना व्यर्थ है। (३) जो ईश्वरीय ज्ञान वेद को न माने अर्थात् ज्ञान का विरोधी हो। (४) जो अभाव से भाव की उत्पत्ति माने, नेस्ति से हस्ती की पैदायश पर विश्वास रखता हो। (५) जो ईश्वर को बिना कर्मों के स्वेच्छा से फल प्रदाता मानता हो अर्थात् यह कहे कि ईश्वर अपनी मर्जी से जिसको चाहे जैसा बना दे लूला-लँगड़ा, अंधा, कोढ़ी इत्यादि। (६) स्वभाव-वादी, जो कहे कि स्वभाव से ही अपने आप ही सब कुछ बन बिगड़ रहा है, बनाने बिगाड़ने वाला कोई नहीं, जैसे जैन मत। (७) जो अपने आपको ब्रह्म या भगवान माने, "अहं ब्रह्मा अस्मि

यजुर्वेद के पितर

यजुर्वेद के पितर लेखक- प्रोफेसर विश्वनाथ विद्यालंकार, लाहौर भूतपूर्व वेदोपाध्याय गुरुकुल कांगड़ी प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ पंचमहायज्ञ प्रत्येक गृहस्थी को करने चाहियें- यह विधान मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में मिलता है। इन पञ्चमहायज्ञों में पितृयज्ञ भी है। पौराणिकों के मतानुसार पितृयज्ञ मृत-पितरों के सम्बंध में किया जाता है। परन्तु ऋषि दयानन्द का यह मन्तव्य है कि पितृयज्ञ का विधान जीवित पितरों के सम्बंध में है, नकि मृत पितरों के सम्बंध में। यजुर्वेद में पितरों का बहुत स्पष्ट रूप से वर्णन है। इस लिए इस लेख में "यजुर्वेद के पितरों" पर कुछ विचार किया जाएगा। (१) पितर का अर्थ 'पितर' शब्द से केवल पिता-व्यक्तियों का अर्थात् केवल पुरुष-व्यक्तियों का ही ग्रहण नहीं होता, अपितु माता और पिता इन दोनों व्यक्तियों का अर्थात् पुरुष और स्त्री इन दोनों व्यक्तियों का ग्रहण होता है। व्याकरण की दृष्टि से पितृयज्ञ शब्द में "पितृ" शब्द का एक शेष मानना चाहिए। जैसे कि माता च पिता च = पितरौ; तथा मातरश्च पितरश्च = पितर:। इसलिए पितृयज्ञ का अर्थ हुआ "वह यज्ञ जो कि मा