Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2018

आत्मा के दर्शन के उपाय

आत्मा के दर्शन के उपाय प्रियांशु सेठ संसार में यदि कोई दर्शन के योग्य वस्तु है, तो वह केवल आत्मा है। याज्ञवल्क्य ने इसके तीन उपाय बताए हैं जो इस प्रकार हैं- (१) श्रवण, (२) मनन, और (३) निदिध्यासन। १. श्रवण ब्रह्मविद्या को क्रियात्मक रूप से जानने वाले किसी विद्वान गुरु से या किसी मोक्ष-शास्त्र से उपदेश लेना 'श्रवण' कहलाता है। सच्चे गुरु के बिना और सत्य-शास्त्र के बिना सन्मार्ग का मिलना कठिन है। कठोपनिषद् में कहा है- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत ! "उठो, जागो! चुने हुए आचार्यों के पास जाओ और समझो!" यही कारण है कि आर्य-हिन्दुओं में यह कहा जाता है कि "गुरु बिना गति नहीं।" इसीलिए गुरु धारण करने की प्रथा अब तक चली आती है; परन्तु जिस प्रकार संसार के दूसरे क्षेत्रों में त्रुटियाँ आ गई हैं, इस क्षेत्र में भी ढोंग अधिक हो गया है। अतएव बड़ी सावधानी से गुरु को चुनना चाहिए। सच्चे अनुभवी और पहुंचे हुए गुरुओं का अभाव नहीं है। ऐसे महानुभावों के पास पहुँचकर सबसे पहला प्रभाव यह होता है कि हृदय को शान्ति-सी मिलती है। ऐसे ही गुरु आत्मा के द

गायत्री-महिमा

गायत्री-महिमा प्रियांशु सेठ वेदों, उपनिषदों, पुराणों, स्मृतियों आदि सभी शास्त्रों में गायत्री मन्त्र के जप का आदेश दिया है। यहां गायत्री जप के सम्बन्ध में 'देवी भागवत' के ये श्लोक देखिये- गायत्र्युपासना नित्या सर्ववेदै: समीरिता। यया विना त्वध: पातो ब्राह्मणस्यास्ति सर्वथा।।८९।। तावता कृतकृत्यत्वं नान्यापेक्षा द्विजस्य हि। गायत्रीमात्रनिष्णातो द्विजो मोक्षमवाप्नुयात्।।९०।। "गायत्री ही की उपासना सनातन है। सब वेदों में इसी की उपासना और शिक्षा दी गई है, जिसके बिना ब्राह्मण का सर्वथा अध:-पतन हो जाता है।।८९।। द्विजमात्र कि लिए इतने से ही कृतकृत्यता है। अन्य किसी उपासना और शिक्षा की आवश्यकता नहीं। गायत्रीमात्र में निष्णात द्विज मोक्ष को प्राप्त होता है।।९०।।" गायत्री-मन्त्र को जो गुरु-मन्त्र कहा गया है, तो इसमें विशेष तथ्य है। चारों वेदों में इसका वर्णन है। ऋग्वेद में ६/६२/१० का मन्त्र गायत्री मन्त्र ही है। सामवेद के १३/३/३ उत्तरार्चिक में और यजुर्वेद में दो-तीन स्थानों में गुरुमन्त्र का आदेश है। ३/३५, ३०/२ और ३६/३ पर अथर्ववेद में तो यह सारा र

वेदों के शिव

वेदों के शिव प्रियांशु सेठ हिन्दू समाज में मान्यता है कि वेद में उसी शिव का वर्णन है जिसके नाम पर अनेक पौराणिक कथाओं का सृजन हुआ है । उन्हीं शिव की पूजा - उपासना वैदिक काल से आज तक चली आती है । किन्तु वेद के मर्मज्ञ इस विचार से सहमत नहीं हैं । उनके अनुसार वेद तथा उपनिषदों का शिव निराकार ब्रह्म है । पुराणों में वर्णित शिव जी परम योगी और परम ईश्वरभक्त थे । वे एक निराकार ईश्वर " ओ३म् " की उपासना करते थे । कैलाशपति शिव वीतरागी महान राजा थे । उनकी राजधानी कैलाश थी और तिब्बत का पठार और हिमालय के वे शासक थे । हरिद्वार से उनकी सीमा आरम्भ होती थी । वे राजा होकर भी अत्यंत वैरागी थे । उनकी पत्नी का नाम पार्वती था जो राजा दक्ष की कन्या थी । उनकी पत्नी ने भी गौरीकुंड , उत्तराखंड में रहकर तपस्या की थी । उनके पुत्रों का नाम गणपति और कार्तिकेय था । उनके राज्य में सब कोई सुखी था । उनका राज्य इतना लोकप्रिय हुआ कि उन्हें कालांतर में स