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Showing posts from April, 2021

महर्षि दयानन्द की दृष्टि में धर्म क्या है?

महर्षि दयानन्द की दृष्टि में धर्म क्या है? लेखक- श्री आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ धर्म क्या है और अधर्म क्या है? यह एक विवेच्य विषय है। नीतिवादों का विचार यह है कि भक्षण और रक्षण आदि चेतनमात्र में स्वभावतः है और पशु एवं मानव इन विषयों में समान है। परन्तु रक्षण का विषय एक ऐसी विशेषता है जो मानव में ही पायी जाती है। मानव रक्षण करने में अपनी विशेषता रखता है। धर्म का मानव से सीधा सम्बन्ध है अतः इसका भी लक्षण करना उसके लिए अनिवार्य था। विविध लक्षण धर्म हमारे शास्त्रों में पाये जाते हैं। जो अपने अपने दृष्टिकोणों में परिपूर्ण हैं। परन्तु जहां अन्य आचार्यों ने इस धर्म के विविध सुन्दर लक्षण किये हैं वहाँ भगवान् दयानन्द ने लक्षणों को स्वीकार करते हुए धर्म का सुधरा और निखरा हुआ स्वरूप रखा है। वे स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश में लिखते हैं- "जो पक्षपात रहित न्यायाचरण सत्यभाषणादियुक्त ईश्वराज्ञा वेदों से अविरुद्ध है, उसको धर्म और जो पक्षपात सहित, अन्यायाचरण मिथ्याभाषणादि ईश्वराज्ञा भंग वेद-विरुद्ध है उसको अधर्म मानता हूं।" इसके अतिरिक्त अपने ग्रन्थों में उन्ह

Brave daughters of Raja Dahir - Suraj Devi and Parimal Devi

Brave daughters of Raja Dahir - Suraj Devi and Parimal Devi [Instead of teaching false history we must teach the original history and the bravery of INDIAN WOMAN. This is the story of the daughters who very cleverly killed the first barbarous and brutal Muslim looter. Who destroyed the great kingdom of Indian king DAHIR.] Tuhman Hamadani, accompanied by Abyssinian servants. One night the Khalif had the two girls brought into his haram, and he then gave them into the charge of the bedchamber attendants, with orders to pay them every attention, and present them when they had recovered from the fatigues of their journey. Two months afterwards the Khalif remembered these two Hindi slaves, and ordered them to be brought into his presence. An interpreter accordingly summoned them. When their veils were thrown back, the Khalif, on seeing them, became distracted with admiration of their great beauty. He then asked them their names; one said her name was Parmal-Devi, the other said

आर्यसमाज

आर्यसमाज लेखक- श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' उन्नीसवीं सदी के हिन्दू नवोत्थान के इतिहास का पृष्ठ-पृष्ठ बतलाता है कि जब यूरोप वाले भारतवर्ष में आये तब यहां के धर्म और संस्कृति पर रूढ़ि की पर्तें जमी हुई थीं एवं यूरोप के मुकाबले में उठने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि ये पर्तें एकदम उखाड़ फेंकी जाएँ और हिन्दुत्व का वह रूप प्रकट किया जाए जो निर्मल और बुद्धिगम्य हो। स्वामी जी के मत से यह हिन्दुत्व पौराणिक कल्पनाओं के नीचे दबा हुआ था। उस पर अनेक स्मृतियों की धूल जम गयी थी एवं वेद के बाद के सहस्रों वर्षों में हिन्दुओं ने जो रूढ़ियां और अन्धविश्वास अर्जित किये थे उनके ढूहों के नीचे यह धर्म दबा पड़ा था। राममोहन राय, रानाडे, केशवचन्द्र और तिलक से भिन्न स्वामी दयानन्द की विशेषता यह रही कि उन्होंने धीरे-धीरे पपड़ियां तोड़ने का काम न करके उन्हें एक ही चोट से साफ कर देने का निश्चय किया। परिवर्तन जब धीरे-धीरे आता है, तब सुधार कहलाता है किन्तु वही जब वेग से पहुंच जाता है, तब उसे क्रान्ति कहते हैं। दयानन्द के अन्य समकालीन सुधारकमात्र थे, किन्तु दयानन्द क्रान्ति के वेग से आये और उन्होंने निश्छ