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Showing posts from September, 2018

मानवता को महर्षि मनु की देन

मानवता को महर्षि मनु की देन लेखक- डॉ० सुरेन्द्र कुमार (मनुस्मृति भाष्यकार) प्राचार्य, राजकीय महिला महाविद्यालय, महेन्द्रगढ़ (हरि०) प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ, डॉ विवेक आर्य 'मनुस्मृति नामक धर्मशास्त्र और संविधान के प्रणेता राजर्षि मनु 'स्वायम्भुव' न केवल भारत की, अपितु सम्पूर्ण मानवता की धरोहर हैं। आदिकालीन समाज में मानवता की स्थापना, संस्कृति-सभ्यता का निर्माण और इनके विकास में राजर्षि मनु का उल्लेखनीय योगदान रहा है। यही कारण है कि भारत के विशाल वाङ्मय के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों के साहित्य में मनु और मनुवंश का कृतज्ञतापूर्ण स्मरण तथा उनसे सम्बद्ध घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। यह उल्लेख इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि प्राचीन समाज में मनु और मनुवंश का स्थान महत्वपूर्ण और आदरणीय था। जिस प्रकार विभिन्न कालखण्डों में उत्पन्न विशिष्ट व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने तथा उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये उनका नाम स्थानों, नगरों आदि के साथ जोड़ दिया जाता है उसी प्रकार प्राचीन समाज ने मनु और मनुवंश का नाम सृष्टि के कालखण्डों के साथ जोड़कर चौदह मन्वन्तरों क

महर्षि दयानन्द का यज्ञ विषयक् वैज्ञानिक पक्ष

महर्षि दयानन्द का यज्ञ विषयक् वैज्ञानिक पक्ष लेखक- पं० वीरसेन वेदश्रमी प्रस्तोता- डॉ विवेक आर्य, प्रियांशु सेठ यज्ञ में मन्त्रोच्चारण कर्म के साथ आवश्यक है- महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने यज्ञ की एक अत्यन्त लघु पद्धति या विधि हमें प्रदान की जो १० मिनट में पूर्ण हो जावे। उसमें मन्त्र के साथ कर्म और आहुति का योग किया। बिना मन्त्र के यज्ञ का कोई कर्म, यज्ञ का अंग नहीं बन सकता। बिना मन्त्र उच्चारण किये किसी भी पदार्थ को अग्नि में जला देने से, वह यज्ञाहुति का स्वरूप प्राप्त नहीं कर सकती और न वह उस महान् लाभ को भी उत्पन्न करने में उतनी समर्थ हो सकती है। इसलिए विधिवत् यज्ञ करने से ही यथोचित लाभ होगा, अन्यथा नहीं। यज्ञ की प्रथम क्रिया और प्रथम मन्त्र का भाव- भगवान् दयानन्द ने प्राणिमात्र पर अपार दया करके यज्ञ की प्रथम क्रिया प्रारम्भ करने के लिए एक छोटा सा मन्त्र दिया। कहा कि इस महान् कार्य के लिये अग्नि प्रदीप्त करना हो तो- ओ३म् भूर्भुवः स्व:- यह छोटा सा मन्त्र बोलकर घृत का दीपक प्रज्वलित कर लेना। क्योंकि यही घृत दीप की मूलाधार प्रारम्भ ज्योति ही व्याप्त रूप में विराट बनकर भू अर