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Showing posts from May, 2020

आत्मा के साकार-निराकार विषयक पक्ष का निर्णय

आत्मा के साकार-निराकार विषयक पक्ष का निर्णय लेखक- प्रियांशु सेठ [इस लेख में प्रमाण-संग्रह में स्वाध्यायशील विद्वान् श्री भावेश मेरजा जी ने मेरी पर्याप्त सहायता की है। अतः उनको सहर्ष धन्यवाद देता हूं।] अनेक दार्शनिक विद्वानों का आत्मा के साकार-निराकार विषयक पक्ष में विचार भेद है। एक पक्ष आत्मा के निराकार होने का दावा करता है, तो दूसरा पक्ष आत्मा के साकार होने का दावा करता है। दर्शन का सिद्धान्त है कि जिस पक्ष का प्रतिषेध हो गया, वह निवृत्त हो जाता है; जो अवस्थित रह गया, निर्णय का स्वरूप उसी से अभिव्यक्त होता है। न्यायदर्शन में कहा है कि जिन हेतुओं से अपने पक्ष की सिद्ध का प्रमाण और दूसरे के पक्ष का खण्डन करना है, वह निर्णय कहलाता है। इस सैद्धान्तिक दृष्टि से हम दोनों पक्षों को तर्क और प्रमाण की कोटि में रखकर सत्याऽसत्य का निर्णय करेंगे। पूर्वपक्षी- आत्मा एकदेशी होने से साकार है। उत्तरपक्षी- यह आवश्यक नहीं है कि यदि एकदेशी वस्तुएं साकार होती हैं, तो व्यापक वस्तुएं साकार नहीं होती हैं। प्रकृति पूरे ब्रह्माण्ड में व्यापक है फिर भी वे साकार है; अतः आपका पक्ष हेत्वाभास के होने से अग्राह्य है

यह विद्या का समय है

यह विद्या का समय है 【राजर्षि शाहू महाराज का दि० १९ अप्रैल १९१९ में उत्तर प्रदेश के कानपुर में अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय १३वीं समाजिक परिषद् का ऐतिहासिक भाषण】 हिंदी अनुवाद [मूल मराठी से]- महेश आर्य सम्पादक- प्रियांशु सेठ प्रिय क्षत्रिय बंधुओं! मैं आपमें से ही एक हूं। मुझे मजदूर समझो या किसान समझो, हमारे पूर्वज यही काम करते थे। जो काम मेरे पूर्वज करते थे वही काम करने वाले लोगों का अध्यक्ष बनने के लिए मुझे आमंत्रित किया, उसके लिए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं कोई ज्ञानी या विद्वान् नहीं, मेरे से ज्यादा विद्वान् लोग हैं। मेरी गुणवत्ता की तरफ ध्यान न देते हुए मैं केवल किसान और पराक्रमी छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी स्नुषा ताराबाई महारानी साहिबा उनके वंश का हूं, इसलिए अध्यक्ष पद का बड़ा सम्मान मुझे आपने दिया है। जिस समय आपकी आज्ञा मुझे मिली उस समय मुंबई में मुझे बहुत तेज बुखार था। लेकिन आप सबके आशीर्वाद से मैं जल्द ही ठीक हो गया। उसके साथ मेरे सामने पहाड़ जितनी आपत्ति आ खड़ी हुई। वह आपत्ति कौन-सी है, आपको लगता है, तो वह थी हिन्दी में भाषण करने की। तीन दिनों तक रेलगाड़ी में स्वाध्याय करके आप

TikTok भारत में क्यों प्रतिबंधित होना चाहिए?

TikTok भारत में क्यों प्रतिबंधित होना चाहिए? प्रियांशु सेठ चीन के मोबाइल एप्लीकेशन TikTok के बारे में आप सबने सुना ही होगा। इस एप्लिकेशन ने आज केवल भारतीय युवावर्ग को ही नहीं बल्कि विश्वभर के युवावर्ग को अपना शिकार बनाया है। लगभग 141 देशों में यह एप्लीकेशन उपलब्ध है और अकेले भारत में इसके 120 मिलियन उपयोगकर्ता हैं। इस एप्लीकेशन के अन्तर्गत युवावर्ग एक संक्षिप्त वीडियो (Short Video) बनाते हैं और उसे विश्वभर में फैलाते हैं। युवाओं का मानना है कि यह मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। क्या आप जानते हैं कि इस एप्लीकेशन पर मुस्लिमों द्वारा जिहाद के समर्थन में वीडियो बनाकर किस प्रकार षड्यन्त्र रचा जा रहा है? वर्ष 2019 में TikTok प्रोफाइल 'Team 07' (मुस्लिम युवाओं द्वारा संचालित) ने एक वीडियो प्रसारित किया था जिसमें हिन्दुओं की भीड़ द्वारा झारखण्ड में तबरेज अंसारी को चोरी के संदेह में पीटने पर इन लोगों ने कहा था- "यदि अंसारी के बच्चे बड़े हुए और अपने पिता की मौत का बदला लिया तो यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक मुस्लिम एक आतंकवादी है।" यद्यपि मैं भी भीड़ द्वारा किसी की हत्या का समर्थन नहीं

फिल्मी-दुनिया की होड़

फिल्मी-दुनिया की होड़ प्रियांशु सेठ आज चारों तरफ बॉलीवुड, हॉलीवुड आदि भिन्न-भिन्न तरह के चलचित्रों की होड़ लगी हुई है। हमारे देश में ही नहीं अपितु प्रत्येक देश में फ़िल्म-जगत ने बच्चों, युवाओं, महिलाओं, वृद्धों आदि सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। प्रायः लोग यह समझते हैं कि फ़िल्म देखना कोई बुरी बात नहीं क्योंकि यह तो सिर्फ एक मनोरंजन है और इससे हमारे देश का नाम ऊंचा होता है, किसी देश के देशवासियों को सम्मानित किया जाता है, इस देश में रहने वाले व्यक्ति उच्च श्रेणी के कलाकार हैं, इन्हें 'बेस्ट-फ़िल्म' का अवार्ड मिलना चाहिए इत्यादि लेकिन इस बात पर ध्यान कोई नहीं देता कि "हमारे देश की संस्कृति को बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ इन फ़िल्म-जगत वालों का है"। आज के समय तरह-तरह के फिल्मों में अश्लील/कॉमेडी/रोमांस/एक्शन आदि के चलते अधिकांश व्यक्तियों को उनके जीवन का उद्देश्य तक पता नहीं होता। यहां तक की बच्चों को भी एक "कैरियर काउन्सलर" की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन संस्कृति और परम्परा तो खत्म हो चुकी है। अध्यात्म तो विलुप्त ही हो चुका है। व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग को छोड़कर भौतिक

Refutation of Sita's Agni-Pariksha

Refutation of Sita's Agni-Pariksha -Priyanshu Seth Sita, the central character of the epic Ramayana is one of the most defining role model for womanhood in the world. The Ramayana describes that Sita had virtuousness, conscientiousness, delightful, adventuress, skilled in household works all these excellent qualities. But the episode of the Sita's Agni-Pariksha (Test by Fire) is marked as a disputed context in the Ramayana. This incident is mentioned in sargas 115 to 118 of the Yuddhakanda. According to this reference, after defeating Ravana in the war, Ram had taken Sita's Agni-Pariksha for accepting her. To accepting Sita it has been said by Ram that "your chastity has come under suspicion. Which man born in a noble family will take back a woman who had lived in another man's house?... I cannot take you back. I have no more any affection for you; you may go wherever you wish (115/17-21)". Sita then asks Lakshmana to light a fire and enters it, calling upon A

ऋषि दयानन्द का इतिहास विषयक चिन्तन

ऋषि दयानन्द का इतिहास विषयक चिन्तन प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ ऋषि दयानन्द योगी, पण्डित, ब्रह्मचारी, समाजसुधारक, न्यायप्रिय आदि होने के साथ ही इतिहास के एक कुशल चिन्तक भी थे। उन्होंने अपने ग्रन्थों में मात्र वेदकाल का निर्णय ही नहीं स्थापित किया अपितु आर्यावर्तीय चक्रवर्ती राजाओं की शासनसारिणी भी यथाक्रम प्रकाशित की है। प्यारे पाठक! यदि तुम ऋषि दयानन्द के इतिहास विषयक चिन्तन पर दृष्टिपात करो, तो तुम आर्यवार्त्त के इतिहास की यथार्थता से भलीभांति परिचित होगे। इसलिए पक्षपातरहित होकर इस लेख को पढ़ो और अपने इतिहास विषयक ज्ञान का उपार्जन करो। १. प्रश्न- जगत् की उत्पत्ति में कितना समय व्यतीत हुआ? उत्तर- एक अर्ब, छानवें क्रोड़, कई लाख कई सहस्र वर्ष (आज तक के हिसाब से १९७२९४९०६३ वर्ष) जगत् की उत्पत्ति और वेदों के प्रकाश होने में हुए हैं। इसका स्पष्ट व्याख्यान मेरी बनाई भूमिका (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में लिखा है देख लीजिये। स०प्र० ८ समुल्लास) २. प्रश्न- जिन वेदों का इस लोक में प्रकाश है उन्हीं का उन लोकों में भी प्रकाश है वा नहीं? उत्तर- उन्हीं का है। जैसे एक राजा की राज्यव्यवस्था नीति सब देशों में समा

Jesus - The Biggest Lie

Jesus - The Biggest Lie (A Debate Between A Christian Pastor and Arya) Author- Priyanshu Seth Translated In English by- DS Balaji Arya Pastor - Jesus was an incarnation of God, who came between us to bless Humanity.  Arya - Tell me, Can Lord ever die? If no then how did Jesus die? If he wanted to help Humanity, then was it only then that Humans needed help? Humans have suffered even worse many times? Where was Jesus all those times? Pastor - Jesus did not die, he returned to life after three days Arya - Ok, let's assume for a moment that he did come back to life. Then tell me where is he now? Did he become disoriented? If yes then why? IS eh scared for getting crucified again? Pastor - No he is in all of our hearts. Arya - If he is in our hearts right now? Was he out of our hearts when he was crucified? Pastor - We are all incarnation of God, as said in Genesis - 1:23, I have created the Human as my Image, and fishes in the sea, birds in the sky, and domestic animals an

Swami Dayanand On Bhakti

Swami Dayanand On Bhakti Author- Tarachand D. Gajra Presented By- Priyanshu Seth Of the many charges that are repeatedly brought against the Arya Samajists, one is want of Bhakti. 'With an Arya Samajist', so says the critic, 'Dharma is synonymous with discussion. Devotion he has none and Shradha finds no place in the programme of his reform work. Vehemently criticising other sects, he spends his time in picking holes in the pockets of his antagonists and depicting in darkest hues the prophets of religious other than his own. Such a man, by his very nature, is incapable of developing a devout heart and a devoted soul. But the critic does not stop here. From the Arya Samajist he turns to his Guru. Finishing with the living members of the Samaj, he engages himself in digging out the bones of the dead and devoted Dayanand. "The Arya Samajist is not a Bhakta because his Guru Swami Dayanand never preached Bhakti. He spent his time in railing against other religious

महाराणा प्रताप के पूर्वजों की शौर्यगाथा

महाराणा प्रताप के पूर्वजों की शौर्यगाथा -प्रियांशु सेठ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं की सन्तान ही राजपूत लोग हैं। मेवाड़ के शासनकर्त्ता सूर्यवंशी राजपूत हैं। ये लोग सिसोंदिया कहलाते हैं; जो श्रीरामचन्द्र जी के पुत्र लव की सन्तान हैं। वाल्मीकि रामायण में आया है कि श्रीराम जी ने अपने अन्तिम समय लव को दक्षिण कौशल और कुश को उत्तरीय कौशल का राज्य दे दिया था। कर्नलटाडसाहब की राय है कि मेवाड़ के वर्तमान शासनकर्त्ता के वंश के पूर्वज राजा कनकसेन ने ही पहले पहल जननी जन्मभूमि का त्याग किया था और इसी के किसी बेटे पोते ने सौराष्ट्र और बलभीपुर में अपने राज्य की नींव डाली थी। जिस समय शिलादित्य नामक राजा बलभीपुर में राज्य करता था, उस समय इन्होंने बलभीपुर पर आक्रमण करके उसको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। युद्ध में बेचारा राजा भी काम न आया। इसकी रानी पुष्पवती गर्भवती थी। सन्तान की रक्षा के विचार से इसने एक गुफा में शरण ली। वहीं इसके गर्भ से एक पुत्ररत्न पैदा हुआ, जो गुह नाम से प्रसिद्ध हुआ। मेवाड़ के राजपूत लोग गुह के वंशधर होने के कारण गुहलौत कहलाते हैं। बहुत समय के बाद इसी राजा गुह के वंश में नागा