मैं आर्य समाजी कैसे बना? [भाग ६] -महात्मा आनन्द स्वामी जी मैं आर्य समाजी बना नहीं हूं अपितु जन्म से आर्यसमाजी हूं। इस संसार में वर्तमान शरीर के साथ आंखें खोलते ही मैंने अपने आप को आर्यसमाजी पाया। जातकर्म संस्कार से लेकर शेष समस्त संस्कार वैदिक रीति से हुए। अतः मैं मैनुफैक्चर्ड (Manufactured) आर्यसमाजी नहीं हूं। मुझे किसी दूसरे कारखाने में आर्य समाजी नहीं बनाया गया, अपितु माता-पिता की कृपा से मेरा जन्म आर्य-समाजियों के पवित्र घर में हुआ। हां मेरे पूज्य पिता जी आर्य-समाजी बने और आर्य-समाजी भी स्वामी दयानन्द जी महाराज के हाथों बने। यह घटना इस प्रकार है- उन दिनों पंजाब में आर्य-समाज का नाम नहीं था, ईसाइयत जोर पकड़ रही थी। हिन्दू नवयुवक ईसाई बनते चले जा रहे थे और नवीन शिक्षा हिन्दु नवयुवकों को हिन्दु धर्म से विमुख कर रही थी। मेरे पिता लाला गणेशदास जी को प्रारम्भ से मतों की छान-बीन का शौक था। हमारे नगर जलाल पुर जट्टां में ईसाइयों का स्कूल था। गुजरात के पादरी प्रायः जलाल पुर जट्टाँ आते रहते थे और पिताजी उनसे बातें करते थे। इन वार्तालापों का परिणाम यह निकला कि पिता जी ईसाइयत स्वीका...