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Showing posts from July, 2020

महर्षि दयानन्दकृत ओंकार-अर्थ-अनुशीलन

महर्षि दयानन्दकृत ओंकार-अर्थ-अनुशीलन लेखक- प्रियांशु सेठ (वाराणसी) ईश्वर का निज नाम 'ओ३म्' है। इस नाम में ईश्वर के सम्पूर्ण स्वरूप का वर्णन है। यदि परमात्मा कहें तो इसके कहने से सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा इसी अर्थ का बोध होता है, न कि सर्वशक्ति, सर्वज्ञान आदि गुणों का। सर्वज्ञ कहने से सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिमान् कहने से ईश्वर सर्वशक्तियुक्त है, इन्हीं गुणों का बोध होता है, शेष गुण-कर्म-स्वभाव का नहीं। 'ओ३म्' नाम में ईश्वर के सर्व गुण-कर्म-स्वभाव प्रकट हो जाते हैं। जैसे एक छोटे-से बीज में सम्पूर्ण वृक्ष समाया होता है, वैसे ही 'ओ३म्' में ईश्वर के सर्वगुण प्रकट हो जाते हैं। महर्षि दयानन्दजी महाराज अपने ग्रन्थ 'सत्यार्थप्रकाश' के प्रथम समुल्लास में ओ३म् को "अ, उ, म्" इन तीन अक्षरों का समुदाय मानते हैं। स्वामीजी को अ से अकार, उ से उकार तथा म् से मकार अर्थ अभीष्ट है। इन शब्दों से उन्होंने परमात्मा के अलग-अलग नामों का ग्रहण किया है- अकार से विराट, अग्नि और विश्वादि। उकार से हिरण्यगर्भ, वायु और तैजसादि। मकार से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञादि।

फूलों का चित्र और भौंरा

फूलों का चित्र और भौंरा -महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती एक भव्य महल के सजे हुए कमरे में एक सुन्दर युवक अकेला बैठा है। वह कमरे में लगे हुए चित्रों को ध्यानपूर्वक देख रहा है। दीवारों पर विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों, उद्यानों, गुलदस्तों-फूलों के गुच्छों, युद्धों और नाना प्रकार के दृश्यों के चित्र हैं। देखते-देखते उसकी दृष्टि एक पुष्प के चित्र पर रुक गई। चित्रकार ने उस फूल का चित्र बनाने में कमाल किया था। पंखुड़ियों में वैसी ही सुर्खी थी। नीला और हरापन भी उसी मात्रा में दिखाई देते थे। दण्डी और उसके साथ लगे हुए कांटे तथा पत्ते भी वैसे ही दिखाई देते थे। लड़का चित्रकार की चित्रकला पर चकित हो रहा था और मन-ही-मन सोच रहा था कि सचमुच इस फूल के असली और नकली होने का विवेक करना तनिक कठिन है। इतने में उसने देखा कि एक भौंरा उड़ता हुआ कमरे में आया। उसने सारे कमरे में चक्कर लगाया और बड़ी व्याकुलता से फूल के चित्र पर बैठ गया, परन्तु वह शीघ्र ही फिर उड़ा और फूल के चित्र के इधर-उधर घूमने लगा। भौंरा एक बार पुनः चित्र पर बैठा, परन्तु बैठते ही फिर उड़ा। उसकी उड़ान और उसकी चेष्टाएं स्पष्ट बताती हैं कि उसका मन