Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2022

आर्यसमाज के भूषण पण्डित गुरुदत्तजी का अद्भुत जीवन

आर्यसमाज के भूषण पण्डित गुरुदत्तजी के अद्भुत जीवन का कारण क्या था? -राज्यरत्न आत्माराम अमृतसरी प्रेषक- प्रियांशु सेठ , डॉ० विवेक आर्य  महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के सच्चे भक्त विद्यानिधि, तर्कवाचस्पति, मुनिवर, पण्डित गुरुदत्त जी विद्यार्थी, एम०ए० का जन्म २६ अप्रैल सन् १८६४ ई० को मुलतान नगर में और देहान्त २६ वर्ष की आयु में लाहौर नगर में १९ मार्च सन् १८९० ई० को हुआ था। आर्य्य जगत् में कौन मनुष्य है, जो उनकी अद्भुत विद्या योग्यता, सच्ची धर्मवृत्ति और परोपकार को नहीं जानता? उनके शुद्ध जीवन, उग्र बुद्धि और दंभरहित त्याग को वह पुरुष जिसने उनको एक बेर भी देखा हो बतला सकता है। महर्षि दयानन्द के ऋषिजीवन रूपी आदर्श को धारण करने की वेगवान् इच्छा, योग समाधि से बुद्धि को निर्मल शुद्ध बनाने के उपाय, और वेदों के पढ़ने पढ़ाने में तद्रूप होने का पुरुषार्थ एक मात्र उनका आर्य्यजीवन बोधन कराता है। अंग्रेजी पदार्थविद्या तथा फिलासोफी के वारपार होने पर उनकी पश्चिमी ज्ञानकाण्ड की सीमा का पता लग चुका था। जब वह पश्चिमी पदार्थविद्या और फिलासोफी क उत्तम से उत्तम पुस्तक पाठ करते थे, तो उनको भलीभांति विदित होत