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क़लम तलवार है


क़लम तलवार है

कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए०
प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ

काग़ज़ के रावण पै आग की बौछाड़ देख,
हँसते हँसौड़ यह वीरता अपार है।
कौन कौन रोक सके इन वाणी के बवण्डरों को?
वेग में गिराके तेज़ तर्कणा की धार है।
है नवीन युद्ध-युग नीति की निपुणता का,
वीर वागभट्ट, बाण वेधक विचार है।
निरा ठाठ बाठ युद्ध का हैं तोप औ' विमान,
काग़ज़ का खेत है, क़लम तलवार है।
लेखराम राजपाल जय-माल पा निहाल,
वीर श्रद्धानन्द-उर विकासी बाहर है।
धर्मवीर की चिता है? या खिली अमरता है।
अमरपुरी में जयनाद् की ग़ुंजार है।
शीघ्र प्रतिकार करो शत्रु का संहार करो।
आर्य हों अनार्य - यह आर्य प्रतिकार है।
वैर कुविचार से है काम सुप्रचार से है,
आर्य वीर की उठी क़लम तलवार है।।

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