श्रद्धानन्द-सप्तक
कवि- श्री पं० चमूपति जी एम०ए०
प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ
स्वदेश स्वजाति का, सीस वार उद्धार।
अश्रद्धा-युग में हुए, श्रद्धा के अवतार।।
लोग वकील हा! छोड़ रहा घरबार।
हिमगिरि सुरसरि सोचते, अहो! बढ़ा परिवार।।
भारत के सब जाय हैं, जग जननी के पूत।
छूमन्तर से शुद्धि के, करदी छूत अछूत।।
घर में जा अल्लाह के, दिया खूब उपदेश।
अल्लह औ' प्रभु एक हैं, तजो द्वैत औ' द्वेष।।
घुस न सकी सरकार की, जिस उर में संगीन।
देश-बन्धु की गोलियां, हुई वहीं लव-लीन।।
दयानन्द की वेदी पर, दिया सीस-बलिदान।
लेखराम के सत्सखा, मुन्शीराम महान्।।
आर्य-तत्व के स्नेह का, जलता जहां प्रदीप।
उस निज प्रिय कुल के रहो, स्वामिन्! सदा समीप।।
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