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निर्भीकता और वीरता के साथ-साथ धार्मिकता की भी प्रतिमूर्ति थे मंगल पाण्डे



निर्भीकता और वीरता के साथ-साथ धार्मिकता की भी प्रतिमूर्ति थे मंगल पाण्डे

(आज 8 अप्रैल क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे के बलिदान दिवस पर प्रकाशित)

सन् 1857 की क्रान्ति का जिक्र सामने आते ही क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे का नाम सामने आता है। वास्तव में आपने प्रथम बार भारत में सही अर्थों में क्रान्ति का शुरुआत किया। आप बलिया के एक ब्राह्मण परिवार से थे। आप में वीरोचित भावना थी, इसलिए सेना में भर्ती हुए। आपकी उम्र तीस साल की भी न हुई थी कि आपने भारत माता की गोद में 8 अप्रैल 1857 को अपना बलिदान देकर देशभर में क्रान्ति की ज्वाला धधका दी।

आप बैरकपुर छावनी में 34वीं एन०आई० बटालियन में तैनात थे। आपको खबर मिली कि जो कारतूस सैनिकों को हथियारों में इस्तेमाल के लिए दिए जाते हैं, उनमें गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग होता है। धार्मिक भावना से आहत होकर आपने ऐसे कारतूसों को लेने से मना कर दिया। अंग्रेज अधिकारी कारतूस इस्तेमाल की मनाही की खबर पाते ही कुपित हो उठे।
लेफ्टीनेंट हेनरी बाग के सैनिक परेड के बाद सैनिकों से सीधे सवाल किया- "तुममें से कौन कारतूस इस्तेमाल करने से इनकार करता है?"
इससे पहले कि अन्य कोई सैनिक बोलता, आपने निर्भीकता से आगे बढ़कर बोला- "मैं...।"
यह 29 मार्च, 1857 ई० की घटना है। लेफ्टीनेंट हेनरी बाग उसी नेटिव इन्फ्रैन्टि का अधिकारी था। एक हिन्दुस्तानी सैनिक के इस दुःसाहसिक जवाब के साथ बढ़कर सामने आने पर लेफ्टीनेंट के होश गुम हो गये। बात यह थी कि सिपाही के तेवर बहुत सख्त और तीखे थे।
उसने किसी तरह अपने क्रोध को काबू करते हुए पूछा- "इन्कार की क्या वजह...?"
"धार्मिक भावना का आहत होना।" मंगल पाण्डे के स्वर में पहले जैसा ही वीरता का झलक दिखलाई दे रहा था।
आपने आगे कारण बताया- "हमें मालूम हुआ है कि जो कारतूस हमें इस्तेमाल करने हैं, उनमें सुअर और गाय की चर्बी मिली होती है। ऐसे कारतूसों से हम हिन्दुस्तानियों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।"
लेफ्टीनेंट हेनरी को कोई स्पष्टीकरण न सूझा, वह पूरी तरह तिलमिला उठा था। उसने परेड में अन्य सैनिकों के तीखे तेवर भी मंगल पाण्डे की तरह देखे थे। उसने फौरन अपने ऊंचे ऑफिसर मेजर ह्यूसन तक खबर पहुंचाई।
मेजर ह्यूसन ने आते ही सिपाही मंगल पाण्डे के विद्रोही तेवर के बारे में सुना, तो तुरन्त उसको कैद करने का हुक्म दिया। मंगल पाण्डे के विरुद्ध मेजर के सुनाए गए हुक्म के विरोध में अन्य सैनिकों ने नारा लगाया-
"(हिन्दू सैनिक) हर-हर महादेव! (मुस्लिम सैनिक) अल्ला हो अकबर!"
मेजर ह्यूसन ने चिल्लाकर हुक्म दिया- "बागी सिपाही मंगल पाण्डे को तुरन्त कैद कर लो।"
किसी भी इण्डियन सैनिक ने मेजर की आज्ञा नहीं मानी लेकिन लेफ्टीनेंट हेनरी बाग तो अंग्रेज अधिकारी था, वह मंगल पाण्डे की ओर रिवॉल्वर तानकर उसे कैद करने के लिए झपटा (यहां देखिए! मंगल पाण्डे की वीरता अद्भुत है कि एक मेजर को बन्दूक तानकर कैद करना पड़ रहा है)।
लेकिन मंगल पाण्डे के विद्रोही तेवर आसानी से कैद नहीं हो पाए थे आपने उस मेजर को शेर की भांति झपटकर उसे वहीं मौत के घाट उतार दिया।
सैनिकों का जोशीला नारा- "हर-हर महादेव! अल्ला हो अकबर!" एक बार फिर से ऊंचे स्वर में गूंजा और इसी के साथ अंग्रेज और सैनिकों में युद्ध शुरु हो गया था।
यह थी क्रान्ति की पहली चिंगारी...सैनिक बगावत, जो आपके नेतृत्व में आरम्भ हुई थी।
अब आपका दूसरा शिकार लेफ्टीनेंट हेनरी बाग बन गया और आपने मौका देखकर उसे भी मार दिया।
इस तरह एक क्षण में दो अंग्रेज ऑफिसरों की जान एक वीर हिन्दुस्तानी के हाथों चली गई थी।
अंग्रेजों के मारे जाने की खबर, जंगल में आग की भांति पूरे बैरकपुर छावनी में फैल गयी पर उस शेर पर किसी भी भारतीय सैनिक ने बढ़कर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की। इसकी वजह यह थी कि उस सैनिक ने वही किया था जो उन सबके मन में था, वही कहा जो उनके दिल में था लेकिन सब भय के कारण बोलने में असमर्थ थे।
मंगल पाण्डे बगावत कर, हाथों में हथियार सम्भाले छावनी से निकलने को बेचैन थे लेकिन जब तक आप निकलते तब तक कर्नल व्हीलर ने अंग्रेज पलटन बुला ली। अब अकेला शेर, चारों ओर से घिर चुका था अन्ततः आपको कैद कर लिया गया। कर्नल व्हीलर तो एक क्षण में दो अंग्रेजों की हत्या की खबर सुनकर बदहवाश हो गया था, उसने पूरी-की-पूरी चौंतीसवीं रेजीमेंट को बन्द करवाकर वीर मंगल पाण्डे को गिरफ्तार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि पूरे देश में हिन्दुस्तानी सैनिकों में ज्वालामुखी फुट पड़ा।
गिरफ्तार किये जाने के बाद, दस दिन के अन्दर मंगल पाण्डे के विरुद्ध सैनिक कोर्ट ने मुकदमे का फैसला सुनाते हुए फांसी की सजा सुना दी लेकिन आप इतने साहसी और वीर थे कि आपकी वीरता और देशप्रेम की भावना को देखकर, फांसी देनेवाला जल्लाद भी नत्मस्तक हो गया और उसने आपको फांसी पर चढ़ाने से मना कर दिया और उस दिन आपको फांसी नहीं लगी। दूसरे रोज़ कोलकाता से मोटी रकम देकर दूसरा जल्लाद बुलाया गया और इस तरह 8 अप्रैल, 1857 को आपको फांसी पर चढ़ा दिया गया और भारत मां का यह वीर पुत्र अपने धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हो गया।

आधुनिक युग में भी मंगल पाण्डे

मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। आपके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ शासन बुरी तरह हिल गया। हालाँकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा दिया पर मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए उसने अंग्रेजी हुकुमत को 100 साल के अन्दर ही भारत से उखाड़ फेका। मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही थे। सन् 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फ़ैल गया। यह भले ही भारत के स्वाधीनता का प्रथम संग्राम न रहा हो पर यह क्रांति निरंतर आगे बढ़ती गयी। अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी पर मंगल पांडे प्रत्येक भारतीय के लिए एक महानायक हैं। वास्तव में आप जैसे वीर क्रान्तिकारी के वीरता से प्रभावित होकर फ़िल्म जगत एवं अनेक लेखक भी उन्हें याद करता है। आपकी वीरता भरी स्मृतियों को नमन करते हुए आपके जीवन पर फिल्म और नाटक भी प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं।
सन् 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा "अभिनित मंगल पांडे: द राइजिंग प्रदर्शित हुई"। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही "द रोटी रिबेलियन" नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था। जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास "वाइट टीथ" में भी मंगल पांडे का जिक्र है। सन 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों के बीच पैंडी शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही। भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।

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