चलता-फिरता आदमी रोगी हो गया!
(7 April विश्व स्वास्थ्य दिवस "World Health Day" पर विशेष रूप से प्रकाशित)
(7 April विश्व स्वास्थ्य दिवस "World Health Day" पर विशेष रूप से प्रकाशित)
प्रियांशु सेठ
आज का युग
ऐसा है कि
हर कोई किसी
न किसी रोग
से पीड़ित है,
यह एक गम्भीर समस्या है। भारत
सरकार ने भी
सरकारी अस्पतालों
में मुफ्त दवाइयां बांटने का प्रतिबन्ध कर दिया है।
घरों, विद्यालयों
आदि स्थानों
पर मुफ्त दवाइयां भी वितरण करती
हैं ताकि रोग
होने से पूर्व
ही खत्म हो
जाये।
वर्तमान समय में
एक चलता-फिरता
मनुष्य भी रोगी
हो रहा है।
हम रोग से
इसलिए नहीं मुक्त
हो पा रहे
क्योंकि जब हमें
कोई रोग हो
भी जाता है
तो हम उसी
के बारे में
सोचते रहते हैं।
आप यह तो
जानते होंगे
"अगर पेड़ को
जड़ से कांटकर फेंक दिया जाए
तो वह विकसित नहीं हो सकता"।
इस रोग नामक
जड़ को खत्म
कैसे करें?
यदि आप रोग
से छुटकारा
पाना चाहते हैं
तो आपको अपना
मन स्वस्थ
करना होगा।
"जिसका
मन रोगी नहीं,
उसका तन कभी
रोगी नहीं होता।"
अस्वस्थ तन में
स्वस्थ मन तो
रह सकता है,
परन्तु अस्वस्थ
मन तन को
कभी स्वस्थ
नहीं रहने देता।
छान्दोग्य-उपनिषद्
में स्पष्ट
कहा है कि
दृढ़ संकल्प
वाला पुरुष ११६
वर्षों तक जीवित
रह सकता है।
आपको इतिहास
की एक घटना
से अवगत कराता
हूं-
महिदास ऐतरेय को
भीषण रोग ने
आ दबाया।
उसका तन रोगी
हो गया, परन्तु मन स्वस्थ
रहा। उसने रोग
को चुनौती
दी। कहा-
स किं म
एतदुपतपसि, योऽहमनेन
न प्रेष्यामीति।
"रे
रोग! क्या तू
मुझे तपा रहा
है। मैं तुझसे
नहीं मरूंगा।"
और वह नहीं
मरा। ११६ वर्ष
तक जीता रहा।
स्वस्थ रहने का
उपाय :- प्रातः
जागने से सुन्दर स्वास्थ्य और आनन्द
की प्राप्ति
होती है। प्रातः काल की हवा
स्वच्छ और ताजी
होती है इसलिए
खुली और स्वच्छ हवा में भ्रमण
करने से मनुष्य दिन भर ताजगी
अनुभव करता है।
प्रातःकालीन शुद्ध वायु
न केवल फेफड़ों को शुद्ध करती
है, अपितु हमें
नवजीवन प्रदान
करती है। हमारा
मन भी प्रफुल्लित हो जाता है।
इसके अलावा प्रातःकाल की शांति में
दिमाग ज्यादा
अच्छा कार्य करता
है। स्वाभाविक
है ऐसे समय
में किया गया
अध्ययन ज्यादा
प्रभावी होता है।
इसके विपरित
देर से जागने
वालों को रात
में देर तक
कार्य करना पड़ता
है। लेकिन देर
रात तक जागना
स्वास्थ्य के लिए
अच्छा नहीं होता।
साथ ही देर
रात में दिमाग
की क्षमता
कम हो जाती
है। कम ही
लोग ऐसे होते
हैं जिनका मस्तिष्क रात में बिना
परेशानी के कार्य
कर सकता है।
हमारे बुजुर्ग
लोग अक्सर कहा
करते हैं कि
"जो जल्दी सोता
है और जल्दी
उठता है, वह
कभी बीमार नहीं
पड़ता।" जो
व्यक्ति सुबह सोकर
जल्दी नहीं उठता,
वह जीवन का
वास्तविक आनन्द नहीं
पाता है। इसीलिए प्राचीनकाल से ही
दुनिया भर के
महापुरुष सबेरे जल्दी
जागने पर जोर
देते रहे हैं।
क्रोध, चिन्ता,
ईर्ष्या और लालच
जैसी भावनाओं
के कारण लोग
कई प्रकार
के रोगों से
ग्रस्त हो जाते
हैं। बुद्धिमान
व्यक्ति अपने आपको
इन भावनाओं
से दूर रखते
हैं। यदि आप
स्वस्थ रहना चाहते
हैं तो अपने
मस्तिष्क और विचारों को अच्छी दशा
में रखिए। सुखद
और जीवन्त
विचारों के सम्बन्ध में सोचिए।
यदि आप आनन्दपूर्वक विचार करते हैं
तो आपको किसी
दवा की आवश्यकता नहीं होगी।
वेद भगवान्
ने हमारे कल्याण हेतु उपदेश दिया
है- क्रत्वा
चेतिष्ठो विशामुषर्भुत्।
-ऋ० १/६५/५
अर्थात् प्रातः
जागने वाला प्रबुद्ध होता है, उसे
सब स्नेह करते
हैं।
नाम नाम्ना
जोहवीति पुरा सूर्यात् पुरोषस: यदज: प्रथमं संबभूव।
स ह तत्स्वराज्यमियाय यस्मान्नान्यत्परमस्ति
भूतम्।। -अथर्व०
१०/७/३१
भावार्थ:- जब एक
साधक ब्राह्ममुहूर्त
में प्रभु का
स्मरण करता है
तब वह बुराइयों को दूर करके
प्रभु के साथ
मेलवाला होता है।
यह प्रभु-सम्पर्क इसे इन्द्रियों
का स्वामी
(न कि दास)
बनाता है। यह
आत्मशासन-स्वराज्य-सर्वोत्तम वस्तु है।
नमो वात्याय
च रेष्म्याय
च नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय
च नम: सोमाय
च रुद्राय
च नमस्ताम्रार
चारुणाय च।। -यजु०
१६/३९
भावार्थ:- जब मनुष्य वायु आदि के
गुणों को जान
के व्यवहारों
में लगावें,
तब अनेक सुखों
को प्राप्त
हों।
विदेशी डॉक्टरों
का 'रोगियों'
पर एक अनुभव:-
Doctor
Sno writes, "The most majority of cases of cancer, specially of heart and
uterine-cancer, are due to mental anxiety, is reported by Dr. Churten in the
British Medical Journal. Dr. Murchison, an eminent authority says- "I have
been surprised, how often patients with primary cancer of the liver, have
traced the causes of their ill-health to protracted grief or anxiety. The cases
have been far too numerous to be accounted for as more coincidences. The
functions of the skin are seriously affected by the emotions."
Sir B.W.
Richordson, in his work 'The Field of Diseases' says- "Eruptions of the
skin will follow excessive mental strain. In all these and in cancer, epilepsy,
and mania from mental causes, there is a pre-disposition. It is remarkable how
little question of the origin of physical disease from mental influences has
been studied."
Note:-
"Sound mind can reside in sick body, but sick mind can never let the body
be sound."
आपने बड़ों को
कहते सुना होगा
कि 'न रहेगा
बांस न बजेगी
बांसुरी'। रोग रोकने
का सबसे बड़ा
साधन यही है
कि रोग के
विचार को मन
में न आने
दिया जाए। आज
से निश्चय
कर लीजिए कि
प्रतिदिन योग-व्यायाम, टहलना, खेलना,
शारीरिक मेहनत करेंगे और रोग के
विचार को मन
में नहीं आने
देंगे क्योंकि
स्वस्थ विचार संसार
की अमूल्य
सम्पत्ति है।
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