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ग्रहों का चक्रव्यू



ग्रहों का चक्रव्यू

प्रियांशु सेठ

जब किसी परिवार में दुःख के बादल बरसते हैं तो उनका मानना होता है कि हमारे ऊपर ग्रह मंडरा रहा है। सभी नामधारी पण्डित (जो पण्डित/ब्राह्मण का स्थान लेकर बैठें हैं) वह यही बताते हैं कि शांति-ग्रह की पूजा करानी पड़ती है। शहर में बाबाओं द्वारा फैलाये अन्धविश्वास की वजह से साधारण लोग उनके चंगुल में फंस जाते हैं, बाबा लोग धर्म के नाम पर बस केवल मूर्ख बनाते हैं। आइये आपको इन बाबा लोगों द्वारा बनाए कुछ ग्रहों से परिचित कराता हूं--

१. दुःख का ग्रह।
२. व्यापार में हानि का ग्रह।
३. मकान के छत पर ग्रह।
४. पेट दर्द करे तो गोमेद पहनो नहीं तो ग्रह।
५. सन्तान न होने का ग्रह।
६. परीक्षा उत्तीर्ण न होने का ग्रह।
७. बच्चे का शारीरिक/मानसिक विकास न होने का ग्रह।
८. पूजा करते रहें लेकिन ईश्वर के कृपा न होने का ग्रह।
९. दवाइयां खाने पर असर न करने का ग्रह।
१०. व्यक्ति के साथ बार-बार दुर्घटना होने का ग्रह।
११. पन्ने का अंगूठी पहनो नहीं तो विवाह नहीं होगा, यह भी ग्रह।
१२. इतना उपाय करने के पश्चात् भी लोग सन्तुष्ट नहीं हुए तो कौआ, गधा, कुत्ता आदि को अपना ग्रह टालने हेतु भोजन कराते हैं।
१३. इससे भी मन को सन्तुष्टि नहीं मिली तो अलग-अलग ग्रहों का चित्र दीवार पर चिपकाकर मदिरा चढ़ाने लगते हैं ताकि ग्रह मदिरा के नशे में उनका कुछ बिगाड़ न पाएं।
१४. इससे भी नहीं तो कब्रों पर सर पटकना।
१५. फिर भी नहीं तो धर्म ही बदल लिया।

गिनाते-गिनाते एक पुस्तक बन जायेगा लेकिन यह ग्रह का सूची खत्म नहीं होने वाला और ऐसे अनेक ग्रह हैं जो हमारे जीवन में बाधा डालते हैं और इस बाधा को दूर करने हेतु अनेक बाबा बैठे हुए हैं। सबसे मजे की बात तो यह है कि केवल कुछ ग्रह ही चढ़ते हैं; जैसे- बुद्ध, मंगल, राहु, केतु, शनि।
कोई यह भी बता दीजिए कि बृहस्पति, अरुण, वरुण, यम, शुक्र, पृथ्वी यह सब क्यों नहीं चढ़ता? क्या यह ग्रह नहीं? या बड़े हैं या फिर बहुत दूर हैं।
यदि दूर है तो मंगल आदि यह सब कैसे चढ़ जाता है?
यदि आप अपनी थोड़ी-सी भी अक्ल लगाए तो उसे पता होना चाहिए कि यह ग्रह हमसे कितने बड़े-बड़े हैं? हमारे ऊपर बैठेंगे तो हम जीवित रहेंगे या चटनी बन जाएगी।
आपको लग रहा है कि मैं झूठ बोल रहा हूं? तो यहां ग्रहों का संक्षेप में विवरण दे देता हूँ-

१. बुद्ध- यह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है। इस ग्रह पर दिन काफी गर्म एवं रात बर्फीली होती है। बुद्ध अपने अक्ष के साथ साथ सूर्य की भी परिक्रमा लगाता है, इसे अपने अक्ष पर एक चक्कर लगाने में ५८.६५ दिन एवं सूर्य की परिक्रमा करने में ८८ दिन का समय लगता है। अगर आप इसके आकार की बात करें तो यह पृथ्वी के आकार का १८वां भाग है जहां गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का ३/८ है।

२. शुक्र- इस ग्रह पर रात एवं दिन दोनों का तापमान लगभग सामान्य होता है। यह सूर्य की परिक्रमा २४३ दिन में पूरा करता है।

३. पृथ्वी- इस ग्रह का वातावरण जीवन के अनुकूल है। यह अपने धुरी पर एक चक्कर २३ घण्टे ५६ मिनट एवं ४ सेकेंड में पूरा करती है एवं सूर्य की परिक्रमा ३६५ दिन, ५ घण्टे, ४८ मिनट एवं ४६ सेकेंड में पूरा करती है।

४. मंगल- इसके दो उपग्रह हैं phobos & deimos। यह ग्रह पृथ्वी की भांति अपनी ध्रुव पर झुकी हुई है जो ऋतु परिवर्तन का कारण है।

५. बृहस्पति- इसके सबसे ज्यादा प्राकृतिक उपग्रह हैं जिनकी संख्या ६९ है। यह ग्रह सूर्य की परिक्रमा ११.९ वर्ष में करती है।

६. शनि- इस ग्रह के कुल ६२ उपग्रह हैं। यह अपने संरचना के कारण भिन्न है, इसके वायुमंडल में कई प्रकार के तत्व मौजूद हैं जिससे ग्रह के चारों ओर एक ring की उपस्थिति दिखती है।

७. अरुण- यह कुल १५ उपग्रह के साथ हमारे सौरमण्डल में उपस्थित है। यह ग्रह सूर्य की एक परिक्रमा ८४वर्ष में पूरा करता है।

८. वरुण- इस ग्रह के दो ज्ञात उपग्रह है triton & Proteus. वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां जागृत ज्वालामुखी (active volcano) पाया जाता है।

९. यम- यह सूर्य की परिक्रमा करने में २४८ वर्ष का समय लगाता है।

उपरोक्त में आप पढ़ रहे हैं कि सभी ग्रह विशाल एवं दूर हैं। अब कोई बताएगा कि यह हमारे ऊपर कैसे बैठ सकता है? यदि बाबा लोग वास्तव में बैठा सकते हैं तो ऐसा क्यों नहीं करते कि इन्हें आतंकवादियों पर बैठा दें? घूसखोर नेताओं, अधिकारियों आदि पर बैठा दें? क्या कोई बाबा यह बता सकता है कि वनवास के अन्तर्गत जब श्रीराम पर अनेक विपरीत परिस्थितियां आयीं थीं तो उन्होंने भी कोई ग्रह-पूजा कराया था? इत्यादि। क्या कोई इसका जवाब देगा?
अब आइये! मैं बतलाता हूं कि यह सब केवल एक षड्यन्त्र है, हमसे पैसा खाने का या धर्म परिवर्तन करने का। खुले आम ये पोंगे हमें मूर्ख बनाते हैं और कई लोग बनते भी हैं। कोई काली का गण्डा पहनाकर, कोई कालभैरव का भभूत लगाकर तो कोई शनि पर तेल चढ़ाकर। वो कहते हैं न कि "मूर्ख, मूर्ख को ही मूर्ख बना सकता है समझदार/विद्वानों को नहीं"।

वेद भगवन् हमें आदेश देते हैं:-

कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो मे सव्य आहित:।
गोजिद्भूयासमश्वजिद्धनंजयो हिरण्यजित्।। -अथर्व० ७/५०/८
अर्थात्
मेरे दाएं हाथ में विचारपूवर्क कर्म करना है। मेरे बाएं हाथ में विजय है। पुरुषार्थ से ही विजय की प्राप्ति होती है। यह हमें गोजित्, अश्वजित्, धनंजय और हिरण्यजित् अर्थात् स्वर्ण का जीतने वाला बनाता है।

यहां वेद भगवन् ने हमें बहुत मार्मिक शब्दों से हमें पुरुषार्थ करते रहने का आदेश दिया है। पुरुषार्थ से हम विजयी बन सकते हैं। किन्तु खेद है कि लोग वेदमार्ग से भटककर बाबा जी के ग्रह मार्ग जैसी बातों पर विश्वास करने लग रहे हैं।

ओ३म् स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि।। -ऋ० ५/५१/१५
अर्थात्
हम सूर्य और चन्द्रमा की भांति कल्याण-युक्त मार्ग पर चलते रहें। दानी, अहिंसाकारी, ज्ञानी जनों तथा परमात्मा से हम मेल कर सदा सुख प्राप्त करें।

विशेष:-
जब ग्रह चढ़ता ही नहीं है तो बैठेगा कैसे? आप एक भी ग्रह मुझे चढ़ाकर दिखा दो। मैं सभी बाबाओं को खुली चुनौती देता हूं।

इन पाखंडियों द्वारा रचित ग्रहों के चक्रव्यू से निकलिए, सत्य को जानिए!

।।आओ लौटें वेदों की ओर।।

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