नियोग और पुनर्विवाह
शंका (कमलकांत कंसरा बुद्ध जी द्वारा)- नियोग से श्रेष्ठ पुनर्विवाह का विकल्प है। पुनर्विवाह में कोई दोष नहीं है, अतः नियोग व्यवस्था गलत है।
समाधान- नियोग व्यवस्था से अनभिज्ञ व्यक्ति पुनर्विवाह ही को श्रेष्ठ मानता है जबकि नियोग में कोई दोष नहीं है लेकिन पुनर्विवाह में अनेक दोष हैं। देखिए-
१. पुनर्विवाह में विधवा स्त्री को पुनर्विवाहित पुरुष के घर जाकर रहना पड़ेगा। नियोग में विधवा स्त्री अपने पूर्व विवाहित पति के घर रहती है।
२. नियोग से उत्पन्न सन्तान पुनर्विवाहित पति के माने जाते हैं और पूर्व पति के ही दयाभागी होते हैं। पुनर्विवाह से उत्पन्न सन्तानों की यह स्थिति नहीं हो सकती।
३. नियुक्त पुरुष से उत्पन्न सन्तान का गोत्र तथा स्वत्व नियुक्त पुरुष का नहीं माना जाता। पूर्व पति का गोत्र ही उस सन्तान का भी गोत्र माना जाता है। पुनर्विवाह से उत्पन्न सन्तानों में यह नियम नहीं हो सकता।
४. पुनर्विवाहित स्त्री पुरुष को परस्पर सेवा तथा पालन करना होता है। नियुक्त स्त्री पुरुष का आपस में कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता।
५. नियुक्त स्त्री पुरुष का सम्बन्ध ऋतुकाल में वीर्यदान और गर्भधारण पर्यन्त ही रहता है। पुनर्विवाहित स्त्री पुरुष का सम्बन्ध इस विवाह सम्बन्ध के विच्छेद होने तक रहता है। विवाह विच्छेद न होने की स्थिति में मरणपर्यन्त सम्बन्ध रहेगा।
६. पुनर्विवाहित स्त्री पुरुष आपस में गृह के कार्यों की सिध्दि में यत्न किया करते हैं। नियुक्त स्त्री पुरुष अपने अपने घर के काम किया करते हैं।
७. विधवा स्त्री के पुनर्विवाह होने में पूर्व पति के पदार्थों को लेकर उसके परिवार (कुटुम्ब) वालों से झगड़ा होना नियोग में कोई कलह नहीं होता तथा पूर्वपति-गृह के पदार्थ छिन्न भिन्न नहीं होते।
८. विधवा के पुनर्विवाह में भद्रकुलों का नष्ट होना, उनके नाम चिन्ह तथा वंश के समाप्त हो जाने का भय है। नियोग में भद्रकुल, नाम, चिन्ह तथा वंश-परम्परा प्रचलित रहती है।
९. पतिव्रत तथा स्त्रीव्रत धर्म नष्ट होने की सम्भावना युवती विधवा तथा युवक विधुर के लिए बनी रहेगी यदि पुनर्विवाह या नियोग की अनुमति न मिले। किन्तु पुनर्विवाह में अन्य उपर्युक्त दोष (क्रम ७ तथा ८) होंगे। नियोग में कोई दोष नहीं है।
निष्कर्ष- स्वामी दयानंद जी के अनुसार "ईश्वर की सृष्टिक्रमानुकूल स्त्री पुरुष का स्वाभाविक व्यवहार रुक नहीं सकता, सिवाय वैराग्यवान् पूर्ण विद्वान् योगियों के"।
...जब तक वे (विधवा स्त्री और मृत-स्त्रीक पुरुष अर्थात् विधुर) युवावस्था में है, तब तक मन में सन्तानोत्पत्ति और विषय की चाहना होने वालों को किसी राज्य व्यवहार या जाति व्यवहार से रुकावट होने से गुप्त-गुप्त कुकर्म बुरी चाल से होते रहते हैं। (सत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समुल्लास) अतः उन्हें सम्बन्ध की अनुमति देनी चाहिए। पुनर्विवाह की अनुमति में अनेक दोष हैं। नियोग में कोई दोष नहीं है अतः नियोग का राज्य नियम तथा जाति नियम होना चाहिए।
प्रियांशु सेठ
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