Skip to main content

योगीराज श्री कृष्ण की उपासना विधि


योगीराज श्री कृष्ण की उपासना विधि

लेखक- श्री पं० बिहारीलाल जी शास्त्री
प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ

प्रायः महापुरुषों के तीन रूप हुआ करते हैं। लोक रञ्जक रुप, यथा श्री कृष्ण जी की वृन्दावन की लीलाएं इस रूप का, शस्त्र होता है- वंशी। दूसरा रूप होता है लोक शिक्षक रूप, यथा महाभारत युद्ध में गीतोपदेश तथा उधव को धर्मोपदेश। इस रूप में शंख धारण किया जाता है, यथा युद्ध में 'पाञ्चजन्यम हृषीकेशं' भगवान् कृष्ण का पांचजन्य शंख। तीसरा रूप होता है महापुरुषों का लोक रक्षक, यथा दुष्ट संहारक युद्धों में। इसका शस्त्र होता है- चक्र। सुदर्शन चक्र से ही शिशुपालादि असुरों का संहार किया।

भगवान् कृष्ण ने तीनों रूपों में जनता को दर्शन दिये और कल्याण किया। उनके जीवन की घटनाएं, कविताओं में है अतः उनके भाव को समझना कठिन हो जाता है। जैसे वृन्दावन के चरित्र में राजनैतिक भूमिकाएं थीं उन्हें श्रृंगार रस में डुबोकर भक्तों ने आक्षेप योग्य बना डाला है। आनन्द मठ के राष्ट्रीय गान के निर्माता श्री बंकिम चन्द्र जी चट्टोपाध्याय ने लिखा है कि मैं महाभारत के श्री कृष्ण को तो मान सकता हूं, पर गीत गोबिन्द के श्री कृष्ण को नहीं।
गीत गोबिन्द में जयदेव ने श्री कृष्ण के लोक रञ्जक रूप को श्रृंगार में डुबोकर विकृत कर दिया है। भगवान् के नाम पर अपने मन के श्रृंगारी भावों की भड़ास निकाली है। श्री कृष्ण भगवान् के विषय में ऋषि दयानन्द का विचार कितना उच्च भावों से भरा है-

"देखो! श्रीकृष्ण जी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है। उन का गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है। जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्री कृष्ण जी ने जन्म से मरणपर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो, ऐसा नहीं लिखा।" (सत्यार्थप्रकाश ११ वां समु०)

वास्तव में श्री कृष्ण भगवान् वैदिक आर्य थे। यह उनकी उपासना विधि से विदित हो जाता है। यदि कोई मनुष्य नमाज पढ़ता हो तो मुसलमान माना जाएगा। मूर्तिपूजक हैं तो जैन, बुद्ध, पौराणिक या कैथोलिक, ईसाई ठहरेगा। इसी प्रकार सन्ध्या, अग्निहोत्र, गायत्री जप करने वाले को वैदिकधर्मी आर्य कहा जायेगा।
अब देखिये, श्रीमद्भागवत् में श्री कृष्ण भगवान् की दिनचर्या- दशम स्कन्ध, अध्याय ७० में-

ब्राह्मो मुहूर्ते उत्थाय वार्युपस्पृश्यमाधव:।
दध्यौ प्रसन्नकरण: आत्मानं तमस: परम्।।४।।
एकं स्वयं ज्योतिरनन्तमव्ययं स्व संस्थ्या नित्य निरस्त कल्मषम्।
ब्रह्माख्यमस्योद्भवनाश हेतुभि: स्व शक्तिभिलर्क्षितभाव निर्वृतिम्।।५।।
अथाप्लुतोऽम्भस्यमले यथा विधि क्रिया कलापं परिधाय वाससी।
चकार सन्ध्योपगमादि सत्तमो हुतानलो ब्रह्म जजाप वाग् यत:।।६।।

अर्थ- श्री कृष्ण जी ब्रह्म मुहूर्त (उषा काल में) उठे और शौच आदि से निवृत हो प्रसन्न अन्तःकरण से तमस से परे आत्मा अर्थात् परमात्मा का ध्यान किया।।४।।
परमात्मा के विशेषण
जो एक है, स्वयं ज्योति स्वरूप है, अनन्त है, अव्यय परिवर्तन रहित है, अपनी स्थिति से भक्तों के पापों को नष्ट करता है, उसका नाम ब्रह्म है, इस संसार की रचना और विनाश के हेतुओं से अपने अस्तित्व का प्रमाण दे रहा है और भक्तों को सुखी करता है।।५।।
और निर्मल जल में स्नान करके यथा विधि क्रिया के साथ दो वस्त्र धारण करके सन्ध्या की विधि की और श्रेष्ठ श्री कृष्ण ने हवन किया और मौन होकर गायत्री का जाप किया।।६।।

श्लोक में आये ब्रह्म शब्द का अर्थ श्रीमद्भागवत् की संस्कृत टीका में श्रीधर स्वामी ने गायत्री जजाप इत्यर्थः- गायत्री किया है। गीताप्रेस की हिन्दी टीका में भी ऐसे ही अर्थ हैं। श्रीमद्भागवत् में कहीं भी श्री कृष्ण द्वारा मूर्तिपूजा करना नहीं मिलता है और वाल्मीकि रामायण में कहीं श्री राम द्वारा मूर्तिपूजा का नाम नहीं।

अब ईश्वर के नाम के विषय में देखिये- गीता के ८वें अध्याय का श्लोक है-
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् मामऽनुस्मरन्
य: प्रयाति त्यजनदेहं स याति परमां गतिम्।
अर्थ- ओ३म् इस एक अक्षर ब्रह्म (शब्द) बार-बार जपता हुआ और मेरा अनुस्मरण करता हुआ जो शरीर को छोड़कर परलोक को जाता है, वह मोक्ष को पाता है।

Comments

Popular posts from this blog

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो!

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो! वर्तमान समय में मनुष्यों ने भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय अपनी मूर्खता से बना लिए हैं एवं इसी आधार पर कल्पित धर्म-ग्रन्थ भी बन रहे हैं जो केवल इनके अपने-अपने धर्म-ग्रन्थ के अनुसार आचरण करने का आदेश दे रहा है। जैसे- ईसाई समाज का सदा से ही उद्देश्य रहा है कि सभी को "ईसाई बनाओ" क्योंकि ये इनका ग्रन्थ बाइबिल कहता है। कुरान के अनुसार केवल "मुस्लिम बनाओ"। कोई मिशनरियां चलाकर धर्म परिवर्तन कर रहा है तो कोई बलपूर्वक दबाव डालकर धर्म परिवर्तन हेतु विवश कर रहा है। इसी प्रकार प्रत्येक सम्प्रदाय साधारण व्यक्तियों को अपने धर्म में मिला रहे हैं। सभी धर्म हमें स्वयं में शामिल तो कर ले रहे हैं और विभिन्न धर्मों का अनुयायी आदि तो बना दे रहे हैं लेकिन मनुष्य बनना इनमें से कोई नहीं सिखाता। एक उदाहरण लीजिए! एक भेड़िया एक भेड़ को उठाकर ले जा रहा था कि तभी एक व्यक्ति ने उसे देख लिया। भेड़ तेजी से चिल्ला रहा था कि उस व्यक्ति को उस भेड़ को देखकर दया आ गयी और दया करके उसको भेड़िये के चंगुल से छुड़ा लिया और अपने घर ले आया। रात के समय उस व्यक्ति ने छुरी तेज की और उस

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर प्रियांशु सेठ हमारे पौराणिक भाइयों का कहना है कि मूर्तिपूजा प्राचीन काल से चली आ रही है और तो और वेदों में भी मूर्ति पूजा का विधान है। ईश्वरीय ज्ञान वेद में मूर्तिपूजा को अमान्य कहा है। कारण ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है। इसलिए सृष्टि के कण-कण में व्याप्त ईश्वर को केवल एक मूर्ति में सीमित करना ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव के विपरीत है। वैदिक काल में केवल निराकार ईश्वर की उपासना का प्रावधान था। वेद तो घोषणापूर्वक कहते हैं- न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।। -यजु० ३२/३ शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है। (यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे बढ़कर कोई उत्पन्न नहीं हुआ, ऐसा जो प्रसिद्ध है। स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्य

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती प्रियांशु सेठ आजकल सदैव देखने में आता है कि संस्कृत-व्याकरण से अनभिज्ञ विधर्मी लोग संस्कृत के शब्दों का अनर्थ कर जन-सामान्य में उपद्रव मचा रहे हैं। ऐसा ही एक इस्लामी फक्कड़ सैयद अबुलत हसन अहमद है। जिसने जानबूझकर द्वेष और खुन्नस निकालने के लिए गायत्री मन्त्र पर अश्लील इफ्तिरा लगाया है। इन्होंने अपना मोबाइल नम्बर (09438618027 और 07780737831) लिखते हुए हमें इनके लेख के खण्डन करने की चुनौती दी है। मुल्ला जी का आक्षेप हम संक्षेप में लिख देते हैं [https://m.facebook.com/groups/1006433592713013?view=permalink&id=214352287567074]- 【गायत्री मंत्र की अश्लीलता- आप सभी 'गायत्री-मंत्र' के बारे में अवश्य ही परिचित हैं, लेकिन क्या आपने इस मंत्र के अर्थ पर गौर किया? शायद नहीं! जिस गायत्री मंत्र और उसके भावार्थ को हम बचपन से सुनते और पढ़ते आये हैं, वह भावार्थ इसके मूल शब्दों से बिल्कुल अलग है। वास्तव में यह मंत्र 'नव-योनि' तांत्रिक क्रियाओं में बोले जाने वाले मन्त्रों में से एक है। इस मंत्र के मूल शब्दों पर गौर किया जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही अश्लील व