आत्मा के साकार-निराकार विषयक पक्ष का निर्णय लेखक- प्रियांशु सेठ [इस लेख में प्रमाण-संग्रह में स्वाध्यायशील विद्वान् श्री भावेश मेरजा जी ने मेरी पर्याप्त सहायता की है। अतः उनको सहर्ष धन्यवाद देता हूं।] अनेक दार्शनिक विद्वानों का आत्मा के साकार-निराकार विषयक पक्ष में विचार भेद है। एक पक्ष आत्मा के निराकार होने का दावा करता है, तो दूसरा पक्ष आत्मा के साकार होने का दावा करता है। दर्शन का सिद्धान्त है कि जिस पक्ष का प्रतिषेध हो गया, वह निवृत्त हो जाता है; जो अवस्थित रह गया, निर्णय का स्वरूप उसी से अभिव्यक्त होता है। न्यायदर्शन में कहा है कि जिन हेतुओं से अपने पक्ष की सिद्ध का प्रमाण और दूसरे के पक्ष का खण्डन करना है, वह निर्णय कहलाता है। इस सैद्धान्तिक दृष्टि से हम दोनों पक्षों को तर्क और प्रमाण की कोटि में रखकर सत्याऽसत्य का निर्णय करेंगे। पूर्वपक्षी- आत्मा एकदेशी होने से साकार है। उत्तरपक्षी- यह आवश्यक नहीं है कि यदि एकदेशी वस्तुएं साकार होती हैं, तो व्यापक वस्तुएं साकार नहीं होती हैं। प्रकृति पूरे ब्रह्माण्ड में व्यापक है फिर भी वे साकार है; अतः आपका पक्ष हेत्वाभास के होने से अग्राह्य है...