Skip to main content

"लाला लाजपतराय की शिमला में स्थापित प्रतिमा" एवं "आर्य स्वराज्य सभा" का इतिहास



"लाला लाजपतराय की शिमला में स्थापित प्रतिमा" एवं "आर्य स्वराज्य सभा" का इतिहास

डॉ विवेक आर्य, प्रियांशु सेठ

आप सभी शिमला रिज की सैर करने जाते हैं, तो आपको लाला लाजपतराय की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। लाला जी की प्रतिमा के नीचे लिखे पट्ट पर आपको आर्य स्वराज्य सभा द्वारा स्थापित लिखा मिलता है। यह आर्य स्वराज्य सभा क्या थी? इसकी स्थापना किसने की थी?

"आर्य स्वराज्य सभा" की स्थापना - क्यों और कार्य"

1947 से पहले लाहौर आर्यसमाज का गढ़ था। आर्यसमाज के अनेक मंदिर, DAV संस्थाएं, पंडित गुरुदत्त भवन, विरजानन्द आश्रम, दयानन्द ब्रह्म विद्यालय, हज़ारों कार्यकर्ता आदि लाहौर में थे। आर्यसमाज के अनेक कार्यकर्ताओं में एक थे पंडित रामगोपाल जी शास्त्री वैद्य। आप पहले डीएवी में शिक्षक, शोध विभाग आदि में कार्यरत थे। आपने भगत सिंह को कभी नेशनल कॉलेज में पढ़ाया भी था।  कुशल और सफल चिकित्सक होने के अतिरिक्त श्री पं० रामगोपालजी शास्त्री वैद्य एक आस्थाशील दृढ़ आर्यसमाजी, ऋषि दयानन्द के अटूट भक्त और रक्त की अन्तिम बूंद तक हिन्दुत्व के सजग प्रहरी तथा अडिग राष्ट्रसेवक थे। देश में जब गांधीजी और कांग्रेस के नेतृत्व में इस सदी के दूसरे दशक में- जलियांवाला बाग, अमृतसर हत्याकाण्ड के बाद स्वराज्य का तीव्र आन्दोलन चल रहा था, उस समय गांधीजी ने स्वराज्य प्राप्ति के लक्ष्य के साथ मुसलमानों को खुश करने के लिए खिलाफत का मसला भी जोड़ दिया था, यद्यपि विश्व के समस्त मुसलमानों का -केवल भारत के मुसलमानों का नहीं- खलीफा टर्की में रहता था और उसे पदच्युत टर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने ही किया था। भारत की स्वतन्त्रता का इस प्रश्न के साथ दूर का भी सरोकार नहीं था। गांधीजी की इस अदूरदर्शिता का परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस हर कीमत पर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को अपनाकर भारत की बहुसंख्यक हिन्दु-जाति को पद दलित करने लगी। फलतः मुसलमानों में मजहबी जोश इतना भड़क गया कि उनके द्वारा कोहाट, सहारनपुर, मुलतान, बरेली, शाहजहांपुर इत्यादि उत्तर भारत के नगरों में भयंकर दङ्गे हुए, सैकड़ों हिन्दु मारे गये, लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हुई, हिन्दु अबलाओं पर नृशंस और रोमांचकारी अत्याचार, बलात् धर्मपरिवर्तन, नारी-अपहरण, स्वामी श्रद्धानन्दजी सहित दर्जनों आर्य हिन्दु नेताओं की हत्या इत्यादि अनेक अमानुषिक अत्याचार हुए। मलाबार का मोपला काण्ड तो औरंगजेब के अत्याचारों को भी मात कर गया था। मुसलमान स्वराज्य का अभिप्राय इस्लामी सल्तनत समझने लग गये थे।

1922  में "आर्य स्वराज्य सभा" की स्थापना वैद्य पं० रामगोपालजी शास्त्री तथा उनके अन्य  सहयोगियों ने की थी। आप यद्यपि कट्टर देशभक्त, राष्ट्रप्रेमी स्वराज्य प्राप्ति के लिये अधिक से अधिक त्याग करने में अग्रगण्य थे पर उनका यह कथन था कि मुसलमानों के विपरीत हिन्दू ही एक ऐसा सुदृढ़ वर्ग है जो बहुसंख्यक होता हुआ इस भारत भूमि को ही लाखों-करोड़ों वर्षों से अपनी मातृभूमि और पितृभूमि समझता रहा है और अब भी समझता है। उसे दूसरे स्तर का नागरिक बना, उसके अधिकारों को कुचल कर अल्पसंख्यक बना देना सर्वथा असह्य, अमान्य और सतत संघर्ष के बीज का वपन करना है। "आर्य स्वराज्य सभा" ने शुद्धि, नारी-रक्षा, हरिजन-सेवा, अस्पृश्यता-निवारण सर्वजातीय प्रीति-भोज, कूंओं पर से हरिजनों को जल लेने देना इत्यादि उपायों द्वारा लाहौर और पंजाब में प्रशंसनीय कार्य किया। आर्य स्वराज्य सभा की ओर से एक केन्द्रीय आश्रम (रामकृष्ण सेवा आश्रम) लाहौर में रावी मार्ग पर स्थित था, जहां प्रतिदिन यज्ञ, सत्संग, शिक्षण इत्यादि कार्यों के अतिरिक्त हिन्दुत्वरक्षक और हिन्दुत्वप्रवर्धक विविध प्रवृत्तियां निरन्तर चलती रहती थीं।

सभा की ओर से लाला लाजपतराय की प्रतिमा का अनावरण

1929 दिसम्बर में पं० जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर कई कांग्रेसी नेताओं के विरोध के बावजूद आर्य स्वराज्य सभा की ओर से लाहौर के गोल बाग में स्थापित ला० लाजपतराय की प्रतिमा का अनावरण केन्द्रीय धारा सभा के अध्यक्ष श्री विट्ठल भाई पटेल (सरदार पटेल के बड़े भाई) द्वारा कराया गया। यह समारोह अत्यन्त सफल और प्रभावी था। विभाजन के बाद यह प्रतिमा लाहौर से शिमला में स्थानांतरित कर दी गई। इसी प्रतिमा के आपको रिज पर दर्शन होते हैं।

रामगोपाल शास्त्री जी विभाजन के उपरांत लाहौर से करोलबाग दिल्ली में बस गए। आपकी स्मृति में आर्यसमाज करोलबाग में प्रतिवर्ष वैदिक स्मृति व्याख्यान होता है।

Comments

Popular posts from this blog

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो!

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो! वर्तमान समय में मनुष्यों ने भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय अपनी मूर्खता से बना लिए हैं एवं इसी आधार पर कल्पित धर्म-ग्रन्थ भी बन रहे हैं जो केवल इनके अपने-अपने धर्म-ग्रन्थ के अनुसार आचरण करने का आदेश दे रहा है। जैसे- ईसाई समाज का सदा से ही उद्देश्य रहा है कि सभी को "ईसाई बनाओ" क्योंकि ये इनका ग्रन्थ बाइबिल कहता है। कुरान के अनुसार केवल "मुस्लिम बनाओ"। कोई मिशनरियां चलाकर धर्म परिवर्तन कर रहा है तो कोई बलपूर्वक दबाव डालकर धर्म परिवर्तन हेतु विवश कर रहा है। इसी प्रकार प्रत्येक सम्प्रदाय साधारण व्यक्तियों को अपने धर्म में मिला रहे हैं। सभी धर्म हमें स्वयं में शामिल तो कर ले रहे हैं और विभिन्न धर्मों का अनुयायी आदि तो बना दे रहे हैं लेकिन मनुष्य बनना इनमें से कोई नहीं सिखाता। एक उदाहरण लीजिए! एक भेड़िया एक भेड़ को उठाकर ले जा रहा था कि तभी एक व्यक्ति ने उसे देख लिया। भेड़ तेजी से चिल्ला रहा था कि उस व्यक्ति को उस भेड़ को देखकर दया आ गयी और दया करके उसको भेड़िये के चंगुल से छुड़ा लिया और अपने घर ले आया। रात के समय उस व्यक्ति ने छुरी तेज की और उस

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर प्रियांशु सेठ हमारे पौराणिक भाइयों का कहना है कि मूर्तिपूजा प्राचीन काल से चली आ रही है और तो और वेदों में भी मूर्ति पूजा का विधान है। ईश्वरीय ज्ञान वेद में मूर्तिपूजा को अमान्य कहा है। कारण ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है। इसलिए सृष्टि के कण-कण में व्याप्त ईश्वर को केवल एक मूर्ति में सीमित करना ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव के विपरीत है। वैदिक काल में केवल निराकार ईश्वर की उपासना का प्रावधान था। वेद तो घोषणापूर्वक कहते हैं- न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।। -यजु० ३२/३ शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है। (यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे बढ़कर कोई उत्पन्न नहीं हुआ, ऐसा जो प्रसिद्ध है। स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्य

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती प्रियांशु सेठ आजकल सदैव देखने में आता है कि संस्कृत-व्याकरण से अनभिज्ञ विधर्मी लोग संस्कृत के शब्दों का अनर्थ कर जन-सामान्य में उपद्रव मचा रहे हैं। ऐसा ही एक इस्लामी फक्कड़ सैयद अबुलत हसन अहमद है। जिसने जानबूझकर द्वेष और खुन्नस निकालने के लिए गायत्री मन्त्र पर अश्लील इफ्तिरा लगाया है। इन्होंने अपना मोबाइल नम्बर (09438618027 और 07780737831) लिखते हुए हमें इनके लेख के खण्डन करने की चुनौती दी है। मुल्ला जी का आक्षेप हम संक्षेप में लिख देते हैं [https://m.facebook.com/groups/1006433592713013?view=permalink&id=214352287567074]- 【गायत्री मंत्र की अश्लीलता- आप सभी 'गायत्री-मंत्र' के बारे में अवश्य ही परिचित हैं, लेकिन क्या आपने इस मंत्र के अर्थ पर गौर किया? शायद नहीं! जिस गायत्री मंत्र और उसके भावार्थ को हम बचपन से सुनते और पढ़ते आये हैं, वह भावार्थ इसके मूल शब्दों से बिल्कुल अलग है। वास्तव में यह मंत्र 'नव-योनि' तांत्रिक क्रियाओं में बोले जाने वाले मन्त्रों में से एक है। इस मंत्र के मूल शब्दों पर गौर किया जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही अश्लील व