अन्धविश्वास के पोषक तुलसीदास लेखक- प्रियांशु सेठ हिन्दी साहित्य में तुलसीदास का नाम एक आदर्शपूर्ण पद पर अंकित है। कहा जाता है कि पुरातन परम्परा को उजागर करने में तुलसीदास ने विशेष योगदान दिया था। अपने जीवन के सम्पूर्ण अनुभवों के सहारे इकहत्तर वर्ष की अवस्था में उन्होंने ‘रामचरितमानस’ का प्रणयन किया था। रामचरितमानस को हिन्दू समाज में स्थान विशेष प्राप्त होने के कारण कालान्तर में यह 'तुलसी-रामायण' के नाम से प्रख्यात है तथा पौराणिक समाज इसे अपनी सनातन संस्कृति की छवि मानता है। इसी रामचरितमानस को रामानन्द सागर ने 'रामायण' नाम देकर अपने टीवी सीरियल में दर्शकों को रामराज्य का वर्णन दिखाया था। तुलसीदासकृत यह ग्रन्थ पुरुषोत्तम श्रीराम के समकालीन न होने के कारण प्रमाणिक तथा विश्वसनीय नहीं है, यह बात पौराणिक पण्डित जानते हुए भी इसकी प्रशंसा के पुल बांधने शुरू कर दिए। परिणामस्वरूप जन सामान्य अपनी वैदिक संस्कृति, सभ्यता व परम्पराओं से भटकती चली गई और आज अकर्मण्यता के सागर में गोते लगा रही है। नीर-क्षीर विवेकी परमहंस स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ...