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दूध और मांसाहार



दूध और मांसाहार

आज एक भा ने यह शंका रखी है कि दूध मांस से ही बनता है अतः वह मांसाहारी भोजन हुआ।

समाधान- क्या दूध और मांस एक है? आप बचपन में अपनी माता का दूध पीते थे तो क्या आप यह कह सकते हैं कि आपने अपनी माता का मांस खाया है? बकरी का बच्चा अपनी माता का दूध पीता है तो क्या वह उसका मांस खाता है? गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीता है तो क्या वह उसका मांस खाता है? आप सब गाय का दूध पीते हैं तो क्या आप गाय का मांस खाते हैं?
अब आपका कहना है कि दूध मांस से बनता है।
नहीं, मांस और दूध एक नहीं।
परमात्मा स्त्री जाति के प्राणियों में उनकी सन्तान की सम्वृद्धि के लिए उसी भोजन का सूक्ष्म रूप दूध उत्पन्न कर देता है, जिससे बच्चों का शरीर पुष्ट रहे। आप ही बताइये अगर बचपन में बच्चे को दूध न दें तो क्या वह जीवित रह सकता है? प्रत्येक मां अपने बच्चों को खुशी-खुशी दूध पिलाती हैं। गोश्त तो नहीं खिलाती न! यदि बच्चा दांत निकालने की अवस्था में मां की छाती काट लेता है तो माँ मारती है। दूध पिलाने में मां को कष्ट नहीं होता।
अब रह गया मांस का बात तो मांस बिना पीड़ा दिए मिल ही नहीं सकता। सभी प्राणी अपनी मां का दूध पीते हैं, परन्तु कोई भी अपनी मां का मांस नहीं खाता। इसलिए दूध को मांसाहारी कहना सर्वथा भ्रान्ति-मूलक है।

शंका२.- जीव का आहार जीव है। छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है, चूहे को बिल्ली खा जाती है, छिपकली सैकड़ों पतंगों का चर्बण कर जाती है अतः प्रकृति भी हमें यही सिखलाती है कि बड़ा जीव छोटे जीवों को मारकर खा लेता है तो मनुष्य सबसे बड़ा जीव होने के कारण यदि सबको खा ले तो कोई आश्चर्य नहीं। ईश्वर ने सब जीव हमारी खुराक के लिए बनाए हैं।

समाधान- यदि इसका अर्थ यह लिया जाए कि प्रत्येक जीव अपने जीवन के लिए दूसरे जीवों का आश्रय लेता है तो ठीक है, परन्तु यह बात ठीक नहीं कि प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन की स्थिति के लिए दूसरे प्राणियों की हत्या किया करे।
शेर तो मनुष्य को भी खा लेता है इससे तो शेर ही सबसे बड़ा सिद्ध हुआ। मनुष्य नहीं। मनुष्य अवश्य सब प्राणियों में उत्तम है, परन्तु अपनी निर्दयता के कारण नहीं, अपितु अपनी विद्या, बुद्धि, दया और सभ्यता के कारण। कुछ जंगली जातियां मनुष्य को मारकर भी खा जाती है, आप उनको अपने से उत्तम नहीं कहते। मनुष्य में जो मनुष्य अत्यन्त क्रूर होता है, उसे सब बुरा कहते हैं। अतएव क्रूर और जंगली पशुओं का अनुकरण करना अथवा उनका दृष्टान्त देना सर्वथा अनुचित है।
संस्कृत की कहावत है-"महाजनो येन गत: स पन्था"।।
यह कहीं नहीं कहा कि,"हिसंक जीवो येन गत: स पन्था:"।
हमारे वैदिक ग्रन्थ भी मांस खाने को मना करते हैं-

व्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्।
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दन्तौ मा हिंसिष्टँ पितरं मातरं च।। -(अथर्व० ६/१४०/२)
हे दांतो! तुम्हारा भोजन 'चावल, जौ, उड़द व तिल' है। तुम्हें मांसाहार से दूर रहना है। इसी से शरीर में रस-रूधिर आदि रत्नों का स्थापन होगा।

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी।
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातका:।। -(मनु० ५/५१)
अनुमति देनेवाला, अङ्गों को काटनेवाला, मारनेवाला, मोल लेनेवाला, बेचनेवाला, पकानेवाला, परोसनेवाला, खानेवाला यह आठों घातक हैं और इन सबको पाप लगता है।

-प्रियांशु सेठ

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