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वेदों में "हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द की कल्पना


वेदों में "हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द की कल्पना

समीक्षक- प्रियांशु सेठ

राज्यसभा सांसद डॉ० सुब्रह्मण्यम स्वामी ने "हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द की उत्पत्ति को लेकर दिनांक २५ मार्च, २०२१ को अपनी फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट शेयर किया जिसमें उन्होंने अपने साथी अरुंधति वशिष्ठ अनुसन्धान पीठ के निदेशक डॉ० चन्द्रप्रकाश को धन्यवाद देते हुए लिखा कि हमने "हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द की उत्पत्ति को ऋग्वेद के श्लोक से हल कर लिया।
[Link- https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2747823252195874&id=1577113465933531]

समीक्षा-
सर्वप्रथम यहां यह स्पष्ट कर देना अत्यावश्यक है कि वेद की ऋचाओं को मन्त्र कहते हैं, श्लोक नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि वेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है, मनुष्यकृत नहीं। उनका नाम मन्त्र इसलिए है कि उनसे सत्यविद्याओं का ज्ञान होता है। सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य में ऐसा एक भी संस्कृत वाक्य नहीं है जो सिद्ध कर सके कि श्लोक ही वेद हैं। इसके विपरीत ऐसे वाक्य अवश्य हैं जिनसे सिद्ध होता है कि मन्त्र नाम वेद के हैं। अष्टाध्यायी में आया यह सूत्र "मन्त्रे घसह्वरणश्वृदहाद्वृच्कृगमिजनिभ्यो ले: (२/४/८०)" मेरे कथन का प्रबल प्रमाण है।

मैं आप दोनों के संज्ञान के लिए यह स्पष्ट कर दूँ कि "हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द का वेदों में कहीं वर्णन नहीं है। आपने अपनी पोस्ट में जो प्रमाण दिया है उसे मैं यथावत लिखता हूँ-

• ऋग्वेद के बृहस्पति आगम में हिन्दू शब्द-
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
हिमालय पर्वत से शुरू होकर भारतीय महासागर तक फैला हुआ ईश्वर निर्मित देश को "हिन्दुस्थान" कहा जाता है।

आपका शोध बिल्कुल वैसा ही है जैसे बन्दर के हाथ में आईना। आपके दिए प्रमाण से प्रतीत होता है कि आपने कभी वेदों के दर्शन भी नहीं किये हैं। प्रथम तो यह बतलाने का कष्ट करें कि बृहस्पति आगम का ऋग्वेद से क्या सम्बन्ध है? क्या अपने श्लोक का पूरा सन्दर्भ लिखते समय आपके हाथ काँप रहे थे? आपने अपने कपोलकल्पित श्लोक को पवित्र ग्रन्थ वेद से जोड़कर वेदों की अवहेलना की है। हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द वेद तो क्या, दर्शनशास्त्र, उपनिषद्, महाभाष्य, स्मृतिग्रन्थ, सूत्रग्रन्थ, नीतिशास्त्र इत्यादि में भी नहीं मिलता। वैदिक साहित्य में मनुष्यों के लिए "आर्य" शब्द का प्रयुक्त हुआ है और इनका निवास स्थान "आर्यावर्त्त" बतलाया है। बाद में यहां एक प्रतापी चक्रवर्ती राजा "भारत" के नाम से हुआ, और इनके नाम पर ही यही आर्यावर्त्त "भारतवर्ष" के नाम से जाना गया। "हिन्दू और हिन्दुस्तान" का संस्कृत साहित्य से कोई लेना-देना नहीं है। मैं इस पक्ष में भारतीय इतिहासकारों तथा हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकारों के भी विचार प्रस्तुत करता हूँ-

१. हिन्दी भाषा के सुविख्यात लेखक श्रीयुत रायबहादुर पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा अपनी पुस्तक राजपूताने का इतिहास में लिखते हैं-
"हिन्दू नाम विक्रम संवत् की ८वीं शताब्दी से पूर्व के ग्रन्थों में नहीं मिलता है।" -पहली जिल्द, पृष्ठ ४२, टिप्पणी सं० ३, द्वितीय संस्करण १९३७, वैदिक यन्त्रालय, अजमेर से प्रकाशित

२. इतना ही नहीं, हिन्दी सहित्य सम्मेलन के सभापति और सनातन धर्म के परम प्रेमी स्वर्गीय श्रीयुत पं० गोविन्दनारायण मिश्र जी का आप वह निबन्ध पढ़ें जिसे पण्डित जी ने सन् १९११ में सम्पन्न द्वितीय हिन्दी सम्मेलन के सभापति की स्थिति में पढ़ा था-
"इसमें कोई सन्देह नहीं कि फारसी भाषा में गुलाम वा काले रंग के अर्थ में प्रयुक्त होने के अतिरिक्त हिन्दू शब्द का गौरववाचक अर्थ से सम्बन्ध मात्र नहीं है। इधर प्राचीन शास्त्रों में वेद या मनु आदि स्मृति, पुराण, उपपुराण आदि ग्रन्थों में उक्त हिन्दू शब्द का कहीं नामोल्लेख नहीं दीखता।"

३. यहां एक और ऐतिहासिक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा। घटना सन् १८७० की है अर्थात् आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती का काशी के पण्डितों से शास्त्रार्थ के एक वर्ष बाद की। जब काशी के पौराणिक पण्डितों ने संस्कृत शास्त्रों में हिन्दू शब्द नहीं पाया तो स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती समेत कई पण्डितों ने काशी के टेढ़ी नीम तले श्रीमहाराजाधिराज संरक्षित धर्म-सभा में एक बैठक किया। जिसमें ४४ पण्डितों ने इस पक्ष में हस्ताक्षर किया कि हिन्दू कहावना सर्वथा अनुचित है। इसमें ४४वां हस्ताक्षर प्रसिद्ध कविराज श्री दुर्गादत्त शर्मा का था, जिन्होंने यह पंक्तियाँ लिखते हुए हस्ताक्षर किया था-
काफ़िर को हिन्दू कहत, यवन स्व भाषा माहिं।
ताते हिन्दू नाम यह, उचित कहैबो नाहिं।।

यह व्यवस्थापत्र स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा संगृहीत पुराने काग़ज़ों में प्राप्त हुआ था जिसे सहयोगी अर्जुन ने प्रकाशित कराया था। यह जानकारी दैनिक भारतमित्र ता० २०/५/१९२५ में भी प्रकाशित हुई थी।

"हिन्दू और हिन्दुस्तान" शब्द का उल्लेख प्राचीन संस्कृत साहित्यों में नहीं है, इसे सिद्ध करने के लिए उपरोक्त प्रमाण पर्याप्त हैं। इसके अतिरिक्त मेरी आपको खुली चुनौती भी है कि हमें बस शास्त्रों में वो प्रकरण दिखा दें जहाँ भगवान् शिव, भगवान् राम, भगवान् कृष्ण, माता सीता, माता रुक्मिणी, पवनपुत्र हनुमान आदि को हिन्दू कहकर सम्बोधित किया गया हो। हमें समस्या इससे नहीं है कि हम हिन्दू शब्द का भार ढो रहे हैं, बल्कि समस्या इससे है कि आप लोग बिना किसी प्रमाण वा शोध के कुछ भी बरगलाते हैं और उसकी आड़ में हमारे धर्मग्रन्थों को दूषित करते हैं, उनकी अवहेलना करते हैं। हिन्दू तो हमारे ही भाई हैं। हमें उनसे कोई वैर नहीं है लेकिन यदि कोई वेदों पर व्यर्थ का आक्षेप करेगा तो उसके मुखमर्दन हेतु हमारी लेखनी सदैव चलती रहेगी, फिर चाहे वह कोई राजनेता या किस अन्य सम्प्रदाय का ही व्यक्ति क्यों न हो। अब आप दोनों के प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा रहेगी। आगे आवश्यकतानुसार अन्य शास्त्रीय प्रमाण भी दिए जायेंगे।

।।इत्योम् शम्।।

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