महर्षि दयानन्दकृत ओंकार-अर्थ-अनुशीलन लेखक- प्रियांशु सेठ (वाराणसी) ईश्वर का निज नाम 'ओ३म्' है। इस नाम में ईश्वर के सम्पूर्ण स्वरूप का वर्णन है। यदि परमात्मा कहें तो इसके कहने से सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा इसी अर्थ का बोध होता है, न कि सर्वशक्ति, सर्वज्ञान आदि गुणों का। सर्वज्ञ कहने से सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिमान् कहने से ईश्वर सर्वशक्तियुक्त है, इन्हीं गुणों का बोध होता है, शेष गुण-कर्म-स्वभाव का नहीं। 'ओ३म्' नाम में ईश्वर के सर्व गुण-कर्म-स्वभाव प्रकट हो जाते हैं। जैसे एक छोटे-से बीज में सम्पूर्ण वृक्ष समाया होता है, वैसे ही 'ओ३म्' में ईश्वर के सर्वगुण प्रकट हो जाते हैं। महर्षि दयानन्दजी महाराज अपने ग्रन्थ 'सत्यार्थप्रकाश' के प्रथम समुल्लास में ओ३म् को "अ, उ, म्" इन तीन अक्षरों का समुदाय मानते हैं। स्वामीजी को अ से अकार, उ से उकार तथा म् से मकार अर्थ अभीष्ट है। इन शब्दों से उन्होंने परमात्मा के अलग-अलग नामों का ग्रहण किया है- अकार से विराट, अग्नि और विश्वादि। उकार से हिरण्यगर्भ, वायु और तैजसादि। मकार से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञादि। ...