Skip to main content

कुरान और गोवध



कुरान और गोवध

लेखक- आचार्य डॉ० श्रीराम आर्य, कासगंज, उ०प०

[अनेक मुस्लिम विद्वान् गोबध को कुरान सम्मत बताकर गौहत्या जैसे घोर पाप का समर्थन करते हैं तथा हिन्दुओं की गौ के प्रति आस्था पर चोट पहुंचाते हैं। इस्लाम के होनहार विद्वानों ने अपने इस मूर्खतापूर्ण हरकतों के पीछे अल्लाह को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। इन्होंने अल्लाह को इस प्रश्न से कलंकित कर दिया कि अल्लाह निर्दयी वा करुणा शून्य है। अल्लाह पशुओं का संरक्षक नहीं बल्कि दुश्मन है। यदि वास्तव में कुरान का खुदा पशुओं का रक्षक होता तो वह मनुष्यों को पशुओं की हत्या करने के बजाय उनपर दया और प्रेम करने की शिक्षा देता। साथ ही कुरान में मूसा और इब्राहीम द्वारा गोबध का समर्थन अल्लाह के ईश्वरीय वाणी पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि अल्लाह दयालु न होने के कारण ईश्वर नहीं हो सकता। खण्डन-मण्डन साहित्य के प्रणेता और समीक्षक आचार्य डॉ० श्रीराम आर्य जी की लेखनी से अल्लाह के पैग़म्बरों के काले कारनामे पढ़िए, जो सार्वदेशिक (साप्ताहिक) के अप्रैल १९६६ के अंक में प्रकाशित हुआ था। -प्रियांशु सेठ]

इस्लाम के धर्म ग्रन्थ 'कुरान शरीफ़' का हमने अनेक बार परायण किया है उसमें हमको एक भी ऐसा स्थल नहीं मिला है जिस में गोवध का आदेश दिया गया हो। कुछ स्थल ऐसे तो हैं जिनमें गोवध की घटना का उल्लेख है, पर उनसे इस कर्म की व्यवस्था सिद्ध नहीं होती है। हम वे सभी स्थल नीचे उद्धृत करते हैं-

"फिर तुमने उनके पीछे (पूजने के लिए) बछड़ा बना लिया, और तुम जुल्म कर रहे थे।५१। जब मूसा ने अपनी जाति से कहा कि तुमने बछड़े की पूजा करके अपने ऊपर जुल्म किया तो अपने सृष्टिकर्ता के सामने तौबा करो...।५४। मूसा ने अपनी कौम से कहा कि अल्लाह तुम से फर्माता है कि एक गाय हलाल करो। वह कहने लगे कि क्या तुम हम से हसी करते हो। (मूसा ने) कहा कि खुदा मुझ को अपनी पनाह में रखे कि मैं ऐसा नादान न बनूं।६७। वह बोले अपने परवरदिगार से हमारे लिए दरख़्वास्त करो कि हमें भली भांति समझा दे कि वह कैसी हो। (मूसा ने) कहा कि खुदा फ़र्माता है कि वह गाय न बूढ़ी हो और न बछिया हो, दोनों के बीच की रास, पस तुम को जो हुक्म दिया गया है उस को पूरा करो।६८। ...मूसा ने कहा कि उस का रंग खूब गहरा ज़र्द हो कि देखने वालों को भला लगे।६९। वह न तो कमेरी हो कि जमीन जोतती हो और न खेतों को पानी देती हो, सही सालिम उसमें किसी तरह का दाग (धब्बा) न हो। वह बोले, हां! अब तुम ठीक पता लाये। ग़रज़ उन्होंने गाय हलाल की, और उनसे उम्मीद न थी कि ऐसा करेंगे।७१। (और ऐ याकूब के बेटों) जब तुमने एक शख्स को मार डाला और झगड़ने लगे...।७२। पस हमने कहा कि गाय का कोई टुकड़ा मुर्दे को चढ़ा दो इसी तरह खुदा कयामत में मुर्दों को जिलायगा। वह तुमको अपनी कुदरत का चमत्कार दिखाता है ताकि तुम समझो।७३।" कु० सूरे बक़र पारा १।।
"इब्राहीम ने देर न की और भुना हुआ बछेड़ा ले आया।१९।" कु० सूरे हूद पा० १२।। "इब्राहीम अपने घर को दौड़ा और एक बछेड़ा घी में तला हुआ ले आया।२६। फिर उनके सामने रखा और (महमानों से) पूछा क्या तुम नहीं खाते?" कु० सूरे धारियात पारा २७।।

समीक्षा- ऊपर की आयतों से स्पष्ट है कि अरब में उस युग में गौ की पूजा हुआ करती थी। लोग उस का बड़ा आदर किया करते थे। कुरान शरीफ में गाय या बछड़े की ही पूजा होने का उल्लेख मिलता है, अन्य किसी भी पशु के सत्कार का उसमें उल्लेख नहीं है। यह दूसरी बात है कि मांसाहारी होने से अरब के मूसा व इब्राहीम परिवार के लोग अन्य ऊंट आदि पशुओं के समान गौ व बछड़े को भी मार खा जाते थे। समस्त कुरान में ऊपर की एक घटना के उल्लेख के अतिरिक्त गौ वध की कोई व्यवस्था वा आदेश नहीं मिलता है। गौ वध के लिए मूसा ने गौ भक्त लोगों के हृदय में से गौ पूजा की भावना निकालने के लिए खुदा के नाम पर उन भोले लोगों को बहका कर गौहत्या करा दी थी, यह बात उक्त वर्णन से स्पष्ट है। क्योंकि लोगों ने पहिले मूसा की बात को मजाक समझा था। वे हत्या को तैयार नहीं थे। खुदा को भी कुरान में कहना पड़ा था कि 'अगर्चे' उनसे यह उम्मीद नहीं थी कि वे गौवध कर डालेंगे। कुरान के अनुसार लोग मूसा के झांसे में आ गये थे।

इसके बाद कुरान बताता है कि गाय के गोश्त के स्पर्श से ही मुर्दा जिन्दा हो गया था। इसका अर्थ यह हुआ कि गाय के दूध-रक्त-गोश्त सभी की उपयोगिता कुरान को स्वीकार है। ऐसी दशा में गौ की हत्या करके उसे समाप्त करने की मूर्खता न करके उसके दुग्ध से प्राणियों का कल्याण किया जाये यही सर्वोत्तम बात होगी।
कुरान सूरे अध धारियात के ऊपर के उदाहरणों से केवल इब्राहीम के गौ भक्षक होने का प्रमाण मिलता है। साथ ही इब्राहीम के महमानों से यह पूछने से कि 'क्या तुम (गौ मांस) को नहीं खाते हो' यह प्रगट है कि अरब के उस युग के लोग भारत के आर्यों के समान ही गौ पूजक (गौ भक्त) थे। वे गौवध को पाप मानते थे। इब्राहीम और मूसा ने शरारत करके गौवध की प्रथा अरब में चालू कराकर जनता में से गौ भक्ति की भावना को मिटाने का पाप किया था।

कुरान या किसी भी पुस्तक में किसी अच्छी या बुरी ऐतिहासिक घटना का अथवा कपोलकल्पित वर्णन हो जाने से कोई बात व्यवस्था अथवा सर्वमान्य तथा अनुकरणीय नहीं बन सकती है जब तक कि उस बात के आचरण की स्पष्ट व्यवस्था न हो। अतः सिद्ध है कि गौवध कुरान सम्मत नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो!

मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो! वर्तमान समय में मनुष्यों ने भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय अपनी मूर्खता से बना लिए हैं एवं इसी आधार पर कल्पित धर्म-ग्रन्थ भी बन रहे हैं जो केवल इनके अपने-अपने धर्म-ग्रन्थ के अनुसार आचरण करने का आदेश दे रहा है। जैसे- ईसाई समाज का सदा से ही उद्देश्य रहा है कि सभी को "ईसाई बनाओ" क्योंकि ये इनका ग्रन्थ बाइबिल कहता है। कुरान के अनुसार केवल "मुस्लिम बनाओ"। कोई मिशनरियां चलाकर धर्म परिवर्तन कर रहा है तो कोई बलपूर्वक दबाव डालकर धर्म परिवर्तन हेतु विवश कर रहा है। इसी प्रकार प्रत्येक सम्प्रदाय साधारण व्यक्तियों को अपने धर्म में मिला रहे हैं। सभी धर्म हमें स्वयं में शामिल तो कर ले रहे हैं और विभिन्न धर्मों का अनुयायी आदि तो बना दे रहे हैं लेकिन मनुष्य बनना इनमें से कोई नहीं सिखाता। एक उदाहरण लीजिए! एक भेड़िया एक भेड़ को उठाकर ले जा रहा था कि तभी एक व्यक्ति ने उसे देख लिया। भेड़ तेजी से चिल्ला रहा था कि उस व्यक्ति को उस भेड़ को देखकर दया आ गयी और दया करके उसको भेड़िये के चंगुल से छुड़ा लिया और अपने घर ले आया। रात के समय उस व्यक्ति ने छुरी तेज की और उस

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर प्रियांशु सेठ हमारे पौराणिक भाइयों का कहना है कि मूर्तिपूजा प्राचीन काल से चली आ रही है और तो और वेदों में भी मूर्ति पूजा का विधान है। ईश्वरीय ज्ञान वेद में मूर्तिपूजा को अमान्य कहा है। कारण ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है। इसलिए सृष्टि के कण-कण में व्याप्त ईश्वर को केवल एक मूर्ति में सीमित करना ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव के विपरीत है। वैदिक काल में केवल निराकार ईश्वर की उपासना का प्रावधान था। वेद तो घोषणापूर्वक कहते हैं- न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।। -यजु० ३२/३ शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है। (यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे बढ़कर कोई उत्पन्न नहीं हुआ, ऐसा जो प्रसिद्ध है। स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्य

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती प्रियांशु सेठ आजकल सदैव देखने में आता है कि संस्कृत-व्याकरण से अनभिज्ञ विधर्मी लोग संस्कृत के शब्दों का अनर्थ कर जन-सामान्य में उपद्रव मचा रहे हैं। ऐसा ही एक इस्लामी फक्कड़ सैयद अबुलत हसन अहमद है। जिसने जानबूझकर द्वेष और खुन्नस निकालने के लिए गायत्री मन्त्र पर अश्लील इफ्तिरा लगाया है। इन्होंने अपना मोबाइल नम्बर (09438618027 और 07780737831) लिखते हुए हमें इनके लेख के खण्डन करने की चुनौती दी है। मुल्ला जी का आक्षेप हम संक्षेप में लिख देते हैं [https://m.facebook.com/groups/1006433592713013?view=permalink&id=214352287567074]- 【गायत्री मंत्र की अश्लीलता- आप सभी 'गायत्री-मंत्र' के बारे में अवश्य ही परिचित हैं, लेकिन क्या आपने इस मंत्र के अर्थ पर गौर किया? शायद नहीं! जिस गायत्री मंत्र और उसके भावार्थ को हम बचपन से सुनते और पढ़ते आये हैं, वह भावार्थ इसके मूल शब्दों से बिल्कुल अलग है। वास्तव में यह मंत्र 'नव-योनि' तांत्रिक क्रियाओं में बोले जाने वाले मन्त्रों में से एक है। इस मंत्र के मूल शब्दों पर गौर किया जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही अश्लील व