ऋषि की मथुरा जन्म-शताब्दी का ऐतिहासिक भाषण श्री पं० चमूपति जी का व्याख्यान देवियो और भद्र पुरुषो! मैं तो मथुरा नगरी में शिष्य रूप से आया था, न कि इस वेदी पर खड़ा होकर व्याख्यान देने के लिए। मैं तो यह विचार मन में रखकर आया था कि अब गुरु की नगरी में चलता हूं। वहां पद-पद पर शिक्षा ग्रहण करूंगा और उन शिक्षाओं को अपने जीवन का आधार बनाकर घर को लौटूंगा, परन्तु अब यह कार्य सौंपा गया है कि इस वेदी पर खड़ा होऊं। मैं लिखने प्रयत्न कर अपने को उपदेशक नहीं बना सका। मेरे हृदय का इस समय यही भाव है जो इधर-उधर प्रचार करके अपने माता-पिता के घर पर पहुंचने वाले व्यक्ति का होता है। मैं लाखों बार उपदेशक बनने का विचार करता हूं, परन्तु नहीं बन पाता। यह वही स्थान है, जहां मैंने उपदेश धारण किया और हमारे गुरु ने उपदेश दिया था। यह स्थान कृष्ण का मकसूद समझा जाता है। जब यहां कंस राजा था, तब यहां की प्रजा दुखी थी और प्रजा के कष्ट निवारणार्थ एक तंग कोठरी में कृष्ण ने जन्म लिया था। वे ब्रजपाल थे। लोगों के ऊपर होने वाले बलात्कारों और अत्याचारों को दूर करने के लिए उनका जन्म हुआ था। मुरली द्वारा स्वाधीनता के सन्देश...