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Showing posts from November, 2020

दिव्य दीपावली

दिव्य दीपावली लेखक- आचार्य अभयदेव जी प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ ध्रुवं ज्योतिर्निहितं दृशये कं -ऋग्वेद ६/९/५ (एक नित्य ज्योति है जो कि देखने के लिये अन्दर रखी गयी है) दीपावली आयी। प्रतीक्षा करते हुए और उत्सुक बच्चे (दिन में ही तेल बत्ती से तैय्यार किये) अपने-अपने दीपक लाकर सांझ होते ही मां से कहने लगे 'मेरा भी दीपक जला दे, मां, मेरा भी दीपक जला दे'। मां अपने जलते दीपक से उनके भी दीपक जलाने लगी। खूब आनन्द से दीपावली मनाई गई। मेरे हृदय में रहने वाले 'बालक' ने भी प्रति ध्वनि की 'मां, मेरा दीपक भी जला दे'। हम और बड़े हुवे। प्रतिवर्ष ही कार्तिक अमावस पर दीपावली आने लगी और खूब मजे से मनाई जाने लगी। इतने में महात्मा गांधी की वाणी सुनायी दी 'दीवाली की खुशी कैसी? हम गुलाम क्या दीवाली मनायें? दीवाली तो तब मनायी जायगी जब भारत स्वाधीन हो जायगा'। मैंने कार्तिक अमावस को दीपक जलाने छोड़ दिये और भारतमाता से प्रतिवर्ष प्रार्थना करने लगा, 'मां, तू मेरा स्वाधीनता का दीपक जला दे'। "ओह, वह सच्ची दीपावली कब आवेगी जब कि हम स्वाधीन हुये तेरे पुत्र सचमुच आनन्द से दीपक ज...

पारिवारिक व्रत एवं आचरण

पारिवारिक व्रत एवं आचरण लेखक- पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय ओ३म् अनुव्रत: पितु: पुत्रो माता भवतु संमना:। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शान्तिवाम्।। -अथर्ववेद ३/३०/२ अन्वय- पुत्र: पितु: अनुव्रत: भवतु। पुत्रः माता सह संमना: भवतु। जाया पत्ये मधुमतीं शान्तिवां वाचं वदतु।। अर्थ- (पुत्र:) पुत्र (पितु:) पिता का (अनुव्रत:) अनुव्रत हो अर्थात् उसके व्रतों को पूर्ण करे। पुत्र (मात्रा) माता के साथ (संमना:) उत्तम मनवाला (भवतु) हो अर्थात् माता के मन को संतुष्ट करने वाला हो। (जाया) पत्नी को चाहिए कि वह (पत्ये) पति के साथ (माधुमतीम्) मीठी और (शान्तिवाम्) शान्तिप्रद (वाचम्) वाणी (वदतु) बोले। व्याख्या- इस वेदमंत्र में वे आरम्भिक साधन बताये हैं जिनसे गृहस्थ सुव्यवस्थित रह सकता है। ऊपरी दृष्टि से ऐसा लगता है कि जिन बातों का इस मन्त्र में प्रतिपादन है वे अतिसाधारण और चालू हैं। उनको असभ्य और अशिक्षित लोग भी समझते हैं। उनके लिए वेदमंत्र की आवश्यकता नहीं। परन्तु गम्भीर दृष्टि से पता चलेगा कि बहुत सी बातें विचारणीय और ज्ञातव्य हैं। उदाहरण के लिए दो शब्दों पर विचार कीजिए- एक 'पुत्र' और दूसरा 'अ...