शौर्य, पराक्रम और क्षात्रधर्म का पर्व : विजय दशमी -डॉ० भवानीलाल भारतीय आर्यों के प्रमुख पर्वों में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि विजयदशमी के नाम से जानी जाती है। यह एक वैदिक पर्व है जो आर्य जाति के शौर्य, तेज, बल तथा क्षात्रवृत्ति का परिचायक है। अज्ञानवश इसे राम द्वारा लंकाधिपति रावण को युद्ध में पराजित करने का दिवस मान लिया है। वस्तुतः इस पर्व का राम की लंका विजय से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह तो भगवान् राम के आविर्भाव से पहले से चला आ रहा क्षात्रधर्म का प्रतीक पर्व है। वैदिक धर्म में ब्रह्म शक्ति और क्षत्र शक्ति के समन्वित विकास की बात कही गई है। यजुर्वेद में कहा गया है- यत्र ब्रह्मं च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरत: सह:। जहां ब्रह्म और क्षत्र विद्वता और पराक्रम का समुचित समन्वय रहता है वहां पुण्य, प्रज्ञा तथा अग्नि तुल्य तेज और ओज रहता है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार लंका पर राम की विजय चैत्र मास में हुई थी अतः आश्विन मास की दशमी का लंका विजय से कोई सम्बन्ध नहीं है। विजयदशमी तक वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है। प्राचीन काल में लगभग तीन चार मास तक निरन्तर वर्षा होती रहती थी। वीरों ...