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Showing posts from June, 2020

आर्यसमाज का सेवक 'श्री हाजी अल्ला रखीया रहीम तुल्ला'

आर्यसमाज का सेवक 'श्री हाजी अल्ला रखीया रहीम तुल्ला' -प्रियांशु सेठ आर्यसमाज ने विभिन्न सम्प्रदायों के अनुयायियों की शुद्धि कर उन्हें वैदिक धर्म में दीक्षित करके उनपर महान् उपकार किये हैं। ईश्वर के सत्य स्वरूप से परिचित कराकर उसको पाने का वेदोक्त मार्ग बतलाना आर्यसमाज का जन सामान्य पर सबसे बड़ा उपकार है। आर्यसमाज के वेदोक्त विचारों ने जहां अपना प्रभाव सत्यप्रेमी और निष्पक्ष जनों के हृदय में स्थापित किया, उन्हीं में इसके एक समर्थक और प्रशंसक श्री हाजी साहब थे। हाजी साहब कच्छ के रहने वाले थे। पेशे से आप सोने का व्यापार किया करते थे। आप सर्वदा कहा करते थे कि संसार में धर्म वैदिक धर्म ही है। जब कोई आपसे कहता था कि आप शुद्ध क्यों नहीं होते तो आप उत्तर दिया करते थे कि मैं अशुद्ध नहीं हूं। आप आर्यसमाज के सत्संग में नियमपूर्वक जाया करते थे और आर्यसमाज के सिद्धान्तों से अभिज्ञ थे। आप सर्वदा विद्यार्थियों को पुस्तकें और छात्रवृत्ति दिया करते थे। निर्धनों को सहायता आपसे प्राप्त होती थी। आप आर्यसमाज में कई बार अपने पुत्रों को भी ले जाया करते थे। एक बार आपने एक स्नातक से कोई प्रश...

झांसी की अधीश्वरी वीरांगना लक्ष्मीबाई

झांसी की अधीश्वरी वीरांगना लक्ष्मीबाई -प्रियांशु सेठ स्वराज्य की रक्षा में अपना सर्वस्व निछावर कर देने वाली महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन की स्मृतियों का स्मरण कर प्रत्येक देशप्रेमियों का मन पुलकित हो उठता है। उनकी जीवनी से हम इस बात की प्रेरणा ग्रहण करते हैं कि यदि स्वराज्य पर कभी आंच आये या उसका गौरव संकट में हो, तो हम अपना सर्वस्वार्पण करके उसकी रक्षा करें। महारानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास में उस वीरता और विश्वास की पहचान हैं, जिनका चरित्र पवित्रता और आत्मोत्सर्ग के पुण्यशील विचारों पर अवलम्बित हैं। उन्होंने निर्भयतापूर्वक राज्य का रथ चलाया और युद्ध क्रांति के क्षेत्र में उतरकर यह भी सिद्ध किया कि स्वराज्य के गौरव को बचाना केवल पुरुषों का ही नहीं अपितु स्त्रियों का भी कर्त्तव्य है। मृत्यु के समय उनकी अवस्था २२ वर्ष ७ महीने और २७ दिन की थी। यह अवस्था ऐसी है, जिसमें वह देश की आजादी, उसे स्वतन्त्र कराने और उसके लिए मर-मिटने की भावना से परे हटकर अपने सुख, ऐश्वर्य और मनोविनोद को प्रधानता देकर आराम से अपना जीवनयापन कर सकती थीं। लेकिन उस महान् साम्राज्ञी के सामने देश का वह मानचित्...

कुरान और गोवध

कुरान और गोवध लेखक- आचार्य डॉ० श्रीराम आर्य, कासगंज, उ०प० [अनेक मुस्लिम विद्वान् गोबध को कुरान सम्मत बताकर गौहत्या जैसे घोर पाप का समर्थन करते हैं तथा हिन्दुओं की गौ के प्रति आस्था पर चोट पहुंचाते हैं। इस्लाम के होनहार विद्वानों ने अपने इस मूर्खतापूर्ण हरकतों के पीछे अल्लाह को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। इन्होंने अल्लाह को इस प्रश्न से कलंकित कर दिया कि अल्लाह निर्दयी वा करुणा शून्य है। अल्लाह पशुओं का संरक्षक नहीं बल्कि दुश्मन है। यदि वास्तव में कुरान का खुदा पशुओं का रक्षक होता तो वह मनुष्यों को पशुओं की हत्या करने के बजाय उनपर दया और प्रेम करने की शिक्षा देता। साथ ही कुरान में मूसा और इब्राहीम द्वारा गोबध का समर्थन अल्लाह के ईश्वरीय वाणी पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि अल्लाह दयालु न होने के कारण ईश्वर नहीं हो सकता। खण्डन-मण्डन साहित्य के प्रणेता और समीक्षक आचार्य डॉ० श्रीराम आर्य जी की लेखनी से अल्लाह के पैग़म्बरों के काले कारनामे पढ़िए, जो सार्वदेशिक (साप्ताहिक) के अप्रैल १९६६ के अंक में प्रकाशित हुआ था। -प्रियांशु सेठ] इस्लाम के धर्म ग्रन्थ 'कुरान श...

वैदिक धर्म अतुलनीय

वैदिक धर्म अतुलनीय -स्व० चौधरी चरण सिंह (भू० पूर्व प्रधानमन्त्री, भारत सरकार) मैं जहां राजनीतिक क्षेत्र में महात्मा गांधी को अपना गुरु या प्रेरक मानता हूं, वहां धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में मुझे सबसे अधिक प्रेरणा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने दी। इन दोनों विभूतियों से प्रेरणा प्राप्त कर मैंने धार्मिक व राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण किया था। एक ओर आर्य समाज के मंच से हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध मैं सक्रिय रहा, वहीं कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में भारत की स्वाधीनता के यज्ञ में मैंने यथाशक्ति आहुतियां डालने का प्रयास किया। मंगलाचरण स्वदेशी, स्वभाषा व स्वधर्म का गौरव छात्र जीवन में, लगभग १९-२० वर्ष की आयु में स्वामी सत्यानन्द लिखित महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। मुझे लगा कि बहुत समय बाद भारत में सम्पूर्ण मानव गुणों से युक्त एक तेजस्वी विभूति महर्षि के रूप में प्रकट हुई है। उनके जीवन की एक-एक घटना ने मुझे प्रभावित किया, प्रेरणा दी। स्वधर्म (वैदिक धर्म), स्वभाषा, स्वराष्ट्र, सादगी, सभी भावनाओं से ओत-प्रोत था महर्षि का जीवन। राष्ट्रीयता की भावनाएं तो जैसे उनकी रग-रग में ही ...