संस्कृत भाषा का महत्त्व और उसका शिक्षण लेखक- डॉ० भवानीलाल भारतीय प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ, डॉ० विवेक आर्य सहयोगी- डॉ० ब्रजेश गौतमजी स्वामी दयानन्द संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार को स्वदेश की उन्नति के लिए अत्यावश्यक समझते थे। उनका यह सत्य विश्वास था कि भारत की प्राचीन परम्परा और संस्कृति संस्कृत साहित्य में सुरक्षित है। आर्यों के प्राचीन धर्म, दर्शन, अध्यात्म तथा जीवन दर्शन को यदि समझना हो तो संस्कृत का ज्ञान होना अपरिहार्य है। उन्होंने स्वयं तो संस्कृत का प्रचार किया ही, अन्यों को भी इस कार्य में प्रवृत्त होने के लिए कहा। स्वामीजी ने जब इस देश में जन्म लिया उस समय यहां विदेशी अंग्रेजों का राज्य था। राज कार्य की भाषा अंग्रेजी थी और उर्दू-फ़ारसी का प्रचलन पढ़े लिखे लोगों में अधिक था। संस्कृत का अध्ययन ब्राह्मणों तक सीमित रह गया था और उनमें भी मात्र काम चलाऊ संस्कृत ज्ञान को ही पर्याप्त समझा जाता था जो पौरोहित्य कर्म में उनका सहायक होता। ऐसी स्थिति में संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन तथा प्रचार-प्रसार के लिए बद्ध परिकर होना, स्वामी दयानन्द की एक महती देन थी। आदिम सत्य...