सत्यार्थप्रकाश पर नियोग का मिथ्या दोषारोपण प्रियांशु सेठ गुरुडम, पाखण्ड, अन्धविश्वास आदि के सागर में डूबते हुए हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने वाले, वेद-वेदाङ्गों के प्रकाण्ड विद्वान्, समाज-सुधारक एवं आर्यसमाज के प्रवर्त्तक, सत्यान्वेषी महर्षि दयानंद जी एवं उनके पुस्तक सत्यार्थप्रकाश का मनुष्यजाति हेतु योगदान अवर्णनीय एवं अविस्मरणीय है। यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् लोग विभिन्न मतों में हैं, जो पक्षपाती होकर वैदिक धर्म एवं सत्यार्थप्रकाश की निंदा करने में लगे रहते हैं। जिन्होंने भी सत्यार्थप्रकाश पर आक्षेप किया है, सबसे पहला आक्षेप नियोग विषय को लेकर ही किया है। परन्तु 'सत्यमेव जयति नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयान:' अर्थात् सर्वदा सत्य का विजय और असत्य का पराजय और सत्य से ही विद्वानों का मार्ग विस्तृत होता है। इस लेख में नियोग विषय पर लगे प्रत्येक आक्षेपों का जवाब क्रमबद्ध दिया जायेगा। नियोग: नियोग उसको कहते हैं जिस से विधवा स्त्री और जिस पुरुष की स्त्री मर गई हो वह पुरुष, ये दोनों परस्पर नियोग करके सन्तानोत्पत्ति करते हैं। प्रश्न- नियोग में क्या-क्या...