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Showing posts from July, 2018

सत्यार्थप्रकाश पर नियोग का मिथ्या दोषारोपण

सत्यार्थप्रकाश पर नियोग का मिथ्या दोषारोपण प्रियांशु सेठ गुरुडम, पाखण्ड, अन्धविश्वास आदि के सागर में डूबते हुए हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने वाले, वेद-वेदाङ्गों के प्रकाण्ड विद्वान्, समाज-सुधारक एवं आर्यसमाज के प्रवर्त्तक, सत्यान्वेषी महर्षि दयानंद जी एवं उनके पुस्तक सत्यार्थप्रकाश का मनुष्यजाति हेतु योगदान अवर्णनीय एवं अविस्मरणीय है। यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् लोग विभिन्न मतों में हैं, जो पक्षपाती होकर वैदिक धर्म एवं सत्यार्थप्रकाश की निंदा करने में लगे रहते हैं। जिन्होंने भी सत्यार्थप्रकाश पर आक्षेप किया है, सबसे पहला आक्षेप नियोग विषय को लेकर ही किया है। परन्तु 'सत्यमेव जयति नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयान:' अर्थात् सर्वदा सत्य का विजय और असत्य का पराजय और सत्य से ही विद्वानों का मार्ग विस्तृत होता है। इस लेख में नियोग विषय पर लगे प्रत्येक आक्षेपों का जवाब क्रमबद्ध दिया जायेगा। नियोग: नियोग उसको कहते हैं जिस से विधवा स्त्री और जिस पुरुष की स्त्री मर गई हो वह पुरुष, ये दोनों परस्पर नियोग करके सन्तानोत्पत्ति करते हैं। प्रश्न- नियोग में क्या-क्या...

क्या वास्तव में वेदों में मूर्तिपूजा है?

क्या वास्तव में वेदों में मूर्तिपूजा है? कीथ आदि पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार निम्न मन्त्र में पत्थर की मूर्ति बैठे हुए देवता का वर्णन है- ऋषीणां प्रस्तरोअसि नमोअस्तु दैवाय प्रस्तराय। -अथर्व० १६-२-६ ऋग्वेदीय निम्नलिखित मन्त्र में भी मूर्तिपूजा का स्पष्ट वर्णन है- क इमं दशभिर्ममेन्द्रं क्रीणाति धेनुभि:। -ऋ० ४-२४-१० अर्थात् मेरे इन्द्र को दश गौओं के बदले कौन खरीदेगा? इस प्रकार का इन्द्र पत्थर मूर्ति के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकता। आइए, हम इन मन्त्रों के वास्तविक अर्थों को देखें। अथर्ववेदीय मन्त्र में 'प्रस्तर' का अर्थ है आसन। ग्रिफिथ महोदय ने भी इसका अर्थ Couch आसन ही किया है। यहां आसन से तात्पर्य शरण और आश्रय से है। इस प्रकार मन्त्र का भाव होगा- हे परमात्मन्! आप मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के आश्रय हैं, समस्त संसार के आश्रय दिव्यस्वरूप आपको नमस्कार हो। इस प्रकार मन्त्र में मूर्तिपूजा की गन्ध भी नहीं है। प्रस्तर का अर्थ पत्थर की मूर्ति वेद की किसी भी अन्तः साक्षी से सिद्ध नहीं होता। अब ऋग्वेदीय मन्त्र को लीजिए। वैदिक साहित्य में इन्द्र का अर्थ है परमात्मा, आत...