आर्यसमाज में साहित्य की स्थिति लेखक- डॉ० भवानीलाल भारतीय [वैदिक साहित्य आर्यसमाज का स्तम्भ रहा है। आर्यसमाज के उद्भट विद्वानों ने उच्च कोटि के ग्रन्थ लिखकर लेखनी को सदैव प्राथमिकता दी है। पंडित लेखराम जी की वसीयत में लिखा यह वाक्य "तहरीर (लेखन) और तकरीर (शास्त्रार्थ) का कार्य बन्द नहीं होना चाहिए" से आप लेखन कार्य की उपयोगिता भांप सकते हैं। आज आर्यसमाज में साहित्य की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। हमारे महान् नेताओं और प्रधानों की देन से लगभग सभी प्रदेशों की प्रमुख आर्यसमाजों में ताले लटके हुए हैं। इनका वाचनालय तो दीमक के हवाले चल रहा है। यह स्थिति प्रत्येक स्वाध्यायशील आर्यों के लिए सीने में सुई चुभोने जैसी है। अब भी समय रहते हमें अपने साहित्य के सम्बंध में गम्भीरता से विचार करना होगा, अन्यथा इस निरन्तर ह्रास के चलते भविष्य में आर्यसमाज को बौद्धिक स्तर पर अहितकारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उक्त विषय पर आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध लेखक डॉ० भवानीलाल भारतीय जी की वेदना उन्हीं की कलम से पढ़िए। प्रस्तुत लेख 'आर्य मर्यादा साप्ताहिक' (२९ नवम्बर - २ दिसम्बर) १९९०...