ईश्वर का स्वरूप [ईश्वर के स्वरूप को लेखनीबद्ध करना सागर से जल को खाली करने के तुल्य है। मनुष्य ईश्वर की अनुभूति तो कर सकता है लेकिन उसके समस्त गुणों को लेखनीबद्ध करना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। ईश्वर अनन्त गुणोंवाला है। हम लेखनी के माध्यम से उसके स्वरूप के कुछ भाग का ही वर्णन कर सकते हैं। ईश्वर के स्वरूप को परिभाषित करते हुए आर्यसमाज के अद्वितीय विद्वान् 'शास्त्रार्थ महारथी श्री पण्डित शान्तिप्रकाश जी' ने एक बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख लिखा था। यह लेख 'आर्योदय' के श्रावणी माह, विक्रम संवत् २०२१ के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस लेख की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। -प्रियांशु सेठ] (१) ईश्वरीय सत्ता सर्वमान्य है। नास्तिक भी उसके संचालित नियमों का उल्लंघन नहीं कर पाते। ईश्वर नियामक होने से यम कहलाता है। यम का दूत मृत्यु है- मृत्युर्यमस्यासी द् दूत: प्रचेत:। चेताने वाला मृत्यु, यम नाम के नियामक परमेश्वर का दूत है। जो सर्वत्र मनुष्य और चौपाए पर छाया हुआ है। मृत्युरी द्वि पदां चतुष्पदाम्। मृत्यु दो पाऊं और चार पाऊं वाले सभी...