महर्षि दयानन्द की दृष्टि में धर्म क्या है? लेखक- श्री आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ धर्म क्या है और अधर्म क्या है? यह एक विवेच्य विषय है। नीतिवादों का विचार यह है कि भक्षण और रक्षण आदि चेतनमात्र में स्वभावतः है और पशु एवं मानव इन विषयों में समान है। परन्तु रक्षण का विषय एक ऐसी विशेषता है जो मानव में ही पायी जाती है। मानव रक्षण करने में अपनी विशेषता रखता है। धर्म का मानव से सीधा सम्बन्ध है अतः इसका भी लक्षण करना उसके लिए अनिवार्य था। विविध लक्षण धर्म हमारे शास्त्रों में पाये जाते हैं। जो अपने अपने दृष्टिकोणों में परिपूर्ण हैं। परन्तु जहां अन्य आचार्यों ने इस धर्म के विविध सुन्दर लक्षण किये हैं वहाँ भगवान् दयानन्द ने लक्षणों को स्वीकार करते हुए धर्म का सुधरा और निखरा हुआ स्वरूप रखा है। वे स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश में लिखते हैं- "जो पक्षपात रहित न्यायाचरण सत्यभाषणादियुक्त ईश्वराज्ञा वेदों से अविरुद्ध है, उसको धर्म और जो पक्षपात सहित, अन्यायाचरण मिथ्याभाषणादि ईश्वराज्ञा भंग वेद-विरुद्ध है उसको अधर्म मानता हूं।" इसके अतिरिक्त अपने ग्रन्थों में उन्ह...