वेद और ऋषि दयानन्द पं० मदनमोहन विद्यासागर [जब हम 'वेद' को भूलकर अपने को भुला चुके थे तब ऋषिवर दयानन्द ने लुप्त ज्ञान भंडार 'वेद' पुनः संसार को दिया, इसके लिए मानव-जाति सदा ऋषि की ऋणी रहेगी। इस लेख के लेखक पं० मदनमोहन विद्यासागर जी ने ऋषि दयानन्द जी के मत से वेद की महत्ता का वर्णन किया है, पाठक इस ऐतिहासिक लेख का स्वाध्याय करके लाभ उठायें। -डॉ० सुरेन्द्रकुमार] आर्ष वाङ्मय की ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के बनते समय, 'कविर्मनीषी', सृष्टिकर्त्ता परमात्मा ने जनमात्र के लिए 'कल्याणी वेदवाणी' का विधान किया। उन्हें अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, इन चार ऋषियों के हृदय में स्थापित किया; हृद्यज्ञैरादधे (ऋग्)। इन चार ऋषियों से वेदप्रचार प्रारम्भ हुआ। इनसे वेद चतुष्टय के ज्ञान को प्राप्त करके 'ब्रह्मा' नामक सर्वप्रथम वैदिक विद्वान् ने (ब्रह्मा देवानां प्रथम: सम्बभूव) वेदों के नियमित पठन-पाठन की परिपाटी चलाई। इसके बाद मनु महाराज ने वेदों के सिद्धान्तों के अनुसार समाज-शास्त्र का विधान किया और 'मानव धर्मशास्त्र'- मानव धर्म संहिता या 'मनुस्म...