वेद की दृष्टि में जल अमृतरूप ओषधि है प्रियांशु सेठ वेद के अनेक मन्त्र जल को आरोग्य, दीर्घजीवी व बल का संवर्धन करनेवाला इत्यादि बताते हुए जल की महत्ता का वर्णन करते हैं। वेदज्ञों की दृष्टि में जल को एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है किन्तु जल का आवश्यकता से अधिक प्रयोग या अनावश्यक प्रयोग करने वाला आज का भौतिकवाद जल की महत्ता से पूर्णतः अपरिचित है। उन्हें जल के चमत्कारों से परिचित व उनके बचाव के प्रति जागृत केवल वेद ही कर सकता है। आइए, इस लेख के माध्यम से जल की उपयोगिता वेद की दृष्टि में जानें- आपोऽअस्मान् मातरः शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्व: पुनन्तु। विश्वं हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्य: शुचिरा पूतऽएमि। दीक्षातपसोस्तनूरसि तां त्वा शिवा: शग्मां परिदधे भद्रं वर्णं पुष्यन्।। -यजु० ४/२ महर्षि दयानन्दजीकृत भाष्य- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। मनुष्यों को उचित है कि जो सब सुखों को प्राप्त करने, प्राणों को धारण करने तथा माता के समान पालन के हेतु जल हैं, उनसे सब प्रकार पवित्र होके, इनको शोध कर मनुष्यों को नित्य सेवन करने चाहियें, जिससे सुन्दर वर्ण, रोगरहित शरीर को स...